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कला की नींव पर खड़ा उत्सव, सरस मेला बना बिहार का उत्सव

A festival built on the foundation of art, Saras Mela has be

पटना: पटना का गांधी मैदान इस समय रंगों और खुशबूओं से जगमगा उठा है,  जी हाँ, बिहार का सरस मेला आया है, उम्मीदों और हुनर को साथ लाया है। लिट्टी–चोखा की खुशबू से लेकर हाथों की कला तक हर स्टॉल बोल रहा है, ये मेला सिर्फ बाज़ार नहीं, बिहार की रूह और पहचान खोल रहा है।
12 दिसंबर से शुरू हुआ यह मेला 28 दिसंबर तक चलेगा और हर साल की तरह इस साल भी पटना वासियों के लिए खास आकर्षण बना हुआ है। मेले का थीम इस बार है—“हुनरमंद हाथों से सजता बिहार”, जो बिहार की कला, मेहनत और हुनर को सामने लाता है। इस मेले में देश के 25 राज्यों के स्वयं सहायता समूह भाग ले रहे हैं। पांच सौ से अधिक स्टॉल लगे हैं, जिनमें महिला उद्यमी अपने प्रदेश के हस्तशिल्प, लोक कला और देशी व्यंजन प्रदर्शित और बिक्री के लिए रख रही हैं। मेले में घर सजाने का सामान, फूलों से बने डिजाइन, मिट्टी, लकड़ी और जूट का काम, कपड़े और अन्य हस्तशिल्प उत्पाद भी देखने को मिल रहे हैं।

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खाने का भी है खास इंतजाम किया गया है । मक्का की रोटी, सरसों का साग, लिट्टी–चोखा और बिहार के अन्य देसी व्यंजन के साथ चाईनीज़ और इटालियन खाने मेले की शान बढ़ा रहे हैं। इसके साथ ही हेल्प और स्वास्थ्य डेस्क की सुविधा भी मेले में मौजूद है। सरस मेला सिर्फ खरीदारी का केंद्र नहीं है। यहाँ प्रतिदिन लोकगीत, लोकनृत्य, सम-सामयिक मुद्दों पर सेमिनार और सामाजिक जागरूकता के लिए नुक्कड़ नाटक आयोजित किए जा रहे हैं। जीविका दीदियों द्वारा संचालित शिल्पग्राम के हस्तशिल्प उत्पाद और मधुग्राम के मधु उत्पाद मेले की खासियत हैं। जीविका के मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी हिमांशु शर्मा ने बुधवार को मेले का निरीक्षण किया। उनका कहना था कि सरस मेला बिहार की संस्कृति, महिला सशक्तिकरण और ग्रामीण हुनर को देश-विदेश तक पहुँचाने का महत्वपूर्ण माध्यम है। सरस मेला 2025 न केवल बिहार की परंपरा और हुनर का उत्सव है, बल्कि यह पटना वासियों के लिए साल का प्रतीक्षित त्योहार भी बन चुका है।

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