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पराली जलाने से पर्यावरण को ही नहीं किसान को भी है घाटा, कृषि विभाग ने बताया कैसे ले सकते हैं लाभ..

Burning crop residue is not only harmful to the environment

खेतों में पराली जलाने से मिट्टी की उर्वरता घटती, विभाग ने समझाया वैज्ञानिक कारण, किसानों को स्ट्रॉ बेलर, हैप्पी सीडर सहित कई यंत्रों पर बढ़ी सब्सिडी का लाभ। फसल अवशेष जलाने से पर्यावरण, स्वास्थ्य और मिट्टी–तीनों पर गंभीर असर, एक टन पुआल मिट्टी में मिलाने से मिलता है नाइट्रोजन–पोटाश समेत कई पोषक तत्व

पटना: कृषि विभाग किसानों की आय बढ़ाने और पर्यावरण सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए निरंतर प्रयास कर रहा है। इसी क्रम में विभाग ने फसल अवशेष प्रबंधन के संबंध में विस्तृत सलाह जारी की है। धान की फसल कटने के बाद की पराली को जलाने की बजाय मिट्टी में मिलाकर खाद बनाने की सलाह दी जा रही है। इससे मिट्टी की उर्वरा शक्ति बनी रहती है और पुआल से बड़ी मात्रा में पोषक तत्व खेतों को मिलते हैं।

विभाग ने पुआल को मिट्टी में मिलाने वाले कृषि यंत्रों पर भी अनुदान राशि बढ़ा दी है। इसमें स्ट्रॉ बेलर, हैप्पी सीडर, जीरो टिल सीड-कम-फर्टिलाइज़र ड्रिल, रीपर-कम-बाइंडर, स्ट्रॉ रीपर और रोटरी मल्चर शामिल हैं। इन यंत्रों का उपयोग करके किसान फसल अवशेष को खेत में मिलाकर वर्मी कम्पोस्ट या खाद तैयार कर सकते हैं।

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कृषि विभाग ने बताया कि पराली जलाने से मिट्टी का तापमान बढ़ जाता है, जिससे मिट्टी में मौजूद सूक्ष्म जीवाणु और केंचुआ मर जाते हैं। जैविक कार्बन नष्ट होने से मिट्टी की उर्वरा शक्ति भी कम हो जाती है। वहीं, एक टन पुआल को मिट्टी में मिलाने से नाइट्रोजन 20–30 किलोग्राम, पोटाश 60–100 किलोग्राम, सल्फर 5–7 किलोग्राम और ऑर्गेनिक कार्बन 600 किलोग्राम प्राप्त होते हैं। विभाग ने किसानों से आग्रह किया है कि फसल कटाई के बाद खेत की सफाई के लिए बेलर मशीन या अन्य यंत्रों का उपयोग करें और फसल अवशेष को जलाने की बजाय खाद या वर्मी कम्पोस्ट के रूप में उपयोग करें। यह न केवल खेती की लागत को कम करेगा, बल्कि मिट्टी और पर्यावरण की सुरक्षा भी सुनिश्चित करेगा।

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