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तिरंगा निर्माण के खानदानी पेशा को आगे बढ़ा रहे हैं बिहार शरीफ के मोहम्मद अब्दुल्ला..

Mohammad Abdullah of Bihar Sharif is carrying forward the fa

Nalanda :- गणतंत्र दिवस के अवसर पर बाजार में तिरंगे की बड़े पैमाने पर खरीद बिक्री हो रही है.बिहारशरीफ के कमरुद्दीनगंज मोहल्ले में रहने वाले 68 वर्षीय मो. अब्दुल्ला देशभक्ति और परंपरा की आज भी मिसाल पेश कर रहे हैं. पिछले 46 वर्षों से वे अपने हाथों से कागज के तिरंगे बनाने का काम कर रहे हैं.

 मोहम्मद अब्दुल्ला का यह खानदानी पेशा है, जिसे उनके दादा-परदादा ने ही शुरू किया था. मो. अब्दुल्ला इस काम को न केवल जीवित रखे हुए हैं, बल्कि इसे अपने बेटों, मो. इमरान और मो. इकराम, के साथ मिलकर आगे बढ़ा रहे हैं. मो. अब्दुल्ला बताते हैं कि एक सीजन में वे 35 से 40 हजार छोटे-बड़े कागज के तिरंगे तैयार कर लेते हैं. उनका हाथ का बना झंडा जिले के सभी प्रखंडों में जाता है. पहले की अपेक्षा इस काम में अब अधिक आय हो रही है, क्योंकि तिरंगों की मांग भी बढ़ी है. इसके साथ ही वे टोपी, बैच, बैंड, स्टिकर आदि भी बनाकर बेचते हैं. हालांकि, अपनी कला को और अधिक विस्तार देने के लिए उन्हें सरकार से मदद की उम्मीद करते हैं. 


 मो. अब्दुल्ला ने बताया कि यदि उन्हें कम ब्याज पर ऋण मिले तो वे अपने काम को दोगुना कर सकते हैं और अधिक रोजगार के अवसर भी पैदा कर सकते हैं. गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस के मौके पर उनके बनाए तिरंगे हर घर, स्कूल और सरकारी कार्यक्रमों की शोभा बढ़ाती है. मो. अब्दुल्ला का मानना है कि तिरंगा न केवल देशभक्ति का प्रतीक है, बल्कि यह उनकी पारिवारिक धरोहर और जीवन का अहम हिस्सा भी है. आज, जब आधुनिक तकनीक और मशीनों ने हस्तशिल्प को लगभग भुला दिया है, मो. अब्दुल्ला अपने पिता और दादा की विरासत को संजोकर देशभक्ति का संदेश फैला रहे हैं. इसके अलावा ऑफ़ सीजन में शादी ब्याह या अन्य मौक़े पर इस्तेमाल किए जाने वाले सामग्री तैयार कर बाज़ारों में भेजते हैं. जिससे उनके परिवार का जीविकोपार्जन बढ़िया से चलता है.


रिपोर्ट - मो. महमूद आलम, नालंदा

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