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आनंद मोहन की रिहाई मामले में 26 सितंबर को सुनवाई:एडिशनल काउंटर एफिडेविट फाइल करने का निर्देश

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बिहार के बाहुबली नेता आनंद मोहन की रिहाई को चुनौती देने वाली याचिका पर आज एक बार फिर सुनवाई हुई. इस मामले में अदालत ने सुनवाई के लिए 26 सितंबर को अगली तिथि निर्धारित की है. शुक्रवार को अदालत ने पार्टियों को अतिरिक्त हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है. याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा ने अदालत से कहा कि राज्य को उन्हें उन आरोपियों की सूची उपलब्ध कराने का निर्देश दिया जाए, जिन्हें उसी दिन रिहा किया गया है. वहीं न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता ने बिहार सरकार के वकील रंजीत कुमार से पूछा कि क्या रिहा किये गये सभी 97 आरोपी ड्यूटी पर तैनात एक लोक सेवक की हत्या के आरोपी हैं? जवाब निगेटिव था. इसके बाद न्यायाधीशों ने सूची को दो भागों में बांटने को कहा.

बता दें सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस दीपांकर दत्ता की बेंच इस मामले की सुनवाई कर रही है. इससे पहले आनंद मोहन ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी रिहाई को सही ठहराया है. 1994 में बिहार के गोपालगंज जिले के तत्कालीन डीएम जी कृष्णैया ह’त्या मामले में आनंद मोहन दोषी करार दिए गए थे. 2007 में निचली अदालत ने इस मामले में आनंद मोहन को फांसी की सजा सुनाई थी.

सजा के फैसले को चुनौती हाई कोर्ट में दी गई तो वहां से राहत मिली और सजा आजीवन कारावास में बदल गई. इसके बाद बिहार सरकार ने लेकिन 27 अप्रैल को उन्हें 14 साल जेल में बिताने के आधार पर रिहा कर दिया. सरकार के इसी फैसले का विरोध सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा है. 8 अगस्त को इस मामले में कोर्ट में सुनवाई होनी थी लेकिन वो आज यानी 11 अगस्त तक के लिए टल गई थी. अब 11 अगस्त को सुनवाई के बाद अगली सुनवाई 26 सितंबर को होगी.

जी कृष्णैया की पत्नी कर रही विरोध

आनंद मोहन पर जिस अधिकारी की हत्या का आरोप है, उसकी पत्नी उमा कृष्णैया ने उनकी रिहाई का विरोध किया है। उमा कृष्णैया ने अपनी याचिका में बिहार सरकार का आदेश रद्द करने की मांग की है। उनका कहना है कि मौत की सज़ा को जब उम्र कैद में बदला जाता है, तब दोषी को आजीवन जेल में रखा जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट भी ऐसे फैसले दे चुका है, लेकिन आनंद मोहन को सिर्फ राजनीतिक कारणों से बिहार सरकार ने जेल नियमावली के नियम 481(1)(a) को बदल कर रिहा कर दिया.

सरकार के नियम बदलने से मिली थी रिहाई

आपको बता दें कि आनंद मोहन बिहार में पूर्व से चली आ रही जेल नियमावली के आधार पर कभी रिहा नहीं हो पाते. 2012 में बिहार सरकार की तरफ से बनाई गई जेल नियमावली में सरकारी कर्मचारी की ह’त्या को जघन्य अपराध माना गया था. इस अपराध में उम्र कैद पाने वालों को 20 साल से पहले किसी तरह की छूट न देने का प्रावधान था. लेकिन बिहार सरकार ने इसी साल जेल नियमावली में बदलाव कर दिया. नई नियमावली में सरकारी कर्मचारी की ह’त्या को भी सामान्य ह’त्या की श्रेणी में रख दिया गया. इसी कारण आनंद मोहन की जेल से रिहाई का रास्ता साफ हुआ.

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