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सुखाड़ से किसानों के बीच हाहाकार, अब भूख मिटाने की सता रही चिंता

Outcry among the farmers due to drought, now there is a conc

बिहार में इन दिनों एक तरफ जहां लोग बाढ़ का प्रकोप झेल रहे हैं तो वहीं दूसरे तरफ सुखाड़ का भी दंश झेलने के लिए मजबूर हैं. दरअसल, खबर बक्सर जिले से हैं जहां सुखाड़ के कारण हाहाकार मचा हुआ है. आसमान से बरसती आग और खेतों में लगी फसल पर पछुआ हवा कहर बरपा रहा है. खेतो में लगी खरीफ की फसल के साथ किसानों की उम्मीदें भी सूखने लगी है. न इंद्रा की कृपा बरस रही और ना ही नेताओं एवं अधिकारियों की कुम्भकर्णी निंद्रा टूट रही है. एसी कमरे में बैठे अधिकारी कागजों पर केवल नियम बना रहे हैं. इधर, किसान अब कृषि कार्य छोड़कर बड़े शहरों में मजदूरी करने के लिए पलायन करने की तैयारी में हैं.

पस्त होने लगे हैं अन्नदाताओं के हौसले

जिले में कल रजिस्टर्ड किसानों की संख्या 1 लाख 47 हजार, 449 है. जिनके द्वारा 1 लाख 6 हजार हेक्टेयर भूमि पर केवल धान की फसल उगाई गई है, जो अब सूखने लगा है. रोग के भेंट चढ़ने लगा है. न नहर में पानी है और ना ही वर्षा हो रही है. भूगर्भ का जलस्तर इतना नीचे चला गया है कि ट्यूबवेल भी फेल करने लगे हैं. उसके बाद भी इन किसानों की समस्याओं को सुनने और जानने वाला कोई नहीं है. कर्ज के बोझ तले दबे किसान अब शहर की ओर पलायन करने की तैयारी में हैं.

क्या कहते हैं अन्नदाता

वहीं, जिले के सदर प्रखंड के ग्रामीण इलाकों में खेतों में काम कर रहे किसानों ने बताया कि, जब से रोपनी हुई है तब से एक बूंद भी नहर का पानी नहीं आया. सावन मास के शुरुआती दौर में केवल एक दिन अच्छी बारिश हुई थी. इसके बाद अब तक बारिश नहीं हुई और ना ही कोई अधिकारी सुध लेने आया. सूर्य की तपिश और पछुआ हवा खेतों में लगी फसल पर कहर बरपा रहा है. 15 हजार बीघे साहूकार से खेत मालगुजारी पर लेकर इस उम्मीद से फसल लगाया था कि फसल कटने के बाद महाजन को चुकता कर देंगे. लेकिन, जो विकराल स्थिति बनी हुई है. उससे ऐसा लग रहा है कि बड़े शहरों में मजदूरी करने के लिए जाना ही होगा.

दवा दुकानदारों की बल्ले-बल्ले

सूर्य की तपिश और पछुआ हवा के कारण फसल में लग रहे रोग से किसान त्राहिमाम कर रहे हैं तो वहीं दुकानदारों की बल्ले-बल्ले है. दवा दुकानदार दीपू कुमार ने बताया कि, दवा की डिमांड कई गुणा बढ़ गई है और ब्रांडेड दवा की घोर अभाव होने लगी है. जिसके आड़ में कुछ लोग नकली दवा किसानों को थमा दे रहे हैं, जिससे फसल को और भी नुकसान पहुंच रहा है.

गौरतलब है कि, देश में जब लोकसभा और विधानसभा का चुनाव होता है तो चुनाव के केंद्र बिंदु में किसान होते हैं. देश की 140 करोड़ की आबादी में 70% लोग कृषि पर निर्भर हैं. आजादी के 77 साल बाद भी किसान कृषि बाबू के मेहरबानियों के मोहताज हैं. यही कारण है कि, इतनी बड़ी आबादी के थाली तक भोजन पहुंचाने वाले किसान को आज खुद की भूख मिटाने के चिंता सता रही है. किसानों की माने तो, यदि खेतों में लगी फसल सूख गई तो उनके बच्चो की पढ़ाई और मां-बाप की दवाई भी बंद हो जाएगी.

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