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पार्टी के अस्तित्व को बचाने के लिए लिया यह फैसला, उपेंद्र कुशवाहा ने कहा 'हमने पी है जहर...'

पार्टी के अस्तित्व को बचाने के लिए लिया यह फैसला, उपेंद्र कुशवाहा ने कहा 'हमने पी है जहर...'

This decision was taken to save the existence of the party
पार्टी के अस्तित्व को बचाने के लिए लिया यह फैसला, उपेंद्र कुशवाहा ने कहा 'हमने पी है जहर...'- फोटो : Darsh News

पटना: गुरुवार को राजधानी पटना के गांधी मैदान में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने 26 मंत्रियों के साथ शपथ ग्रहण की। शपथ ग्रहण समारोह काफी भव्य था लेकिन मंत्री के रूप में अचानक एक चेहरा देख कर बिहार नहीं बल्कि पूरा देश चौंक गया था और वह चेहरा था पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा के बेटे दीपक प्रकाश। दीपक प्रकाश ने जब मंत्री पद की शपथ ली तो चर्चा यह तेज हो गई कि ये न तो विधायक बने और न ही MLC फिर मंत्री कैसे तो लोगों ने कहा कि 6 महीने के अंदर उपेंद्र कुशवाहा उन्हें विधान परिषद का सदस्य बना देंगे और इस तरह से उन्होंने एक एमएलसी सीट भी सुरक्षित कर ली है।

हालांकि बात यहीं खत्म नहीं हुई, बल्कि यहां से शुरू हो गया विपक्ष का हमला। विपक्ष ने उपेंद्र कुशवाहा को सीधे निशाने पर लिया और पत्नी को विधायक तथा बेटे को मंत्री बनाने को लेकर आलोचना शुरू कर दी। विपक्ष ने सोशल मीडिया समेत मीडिया में परिवारवाद के खिलाफ बोलने वाले उपेंद्र कुशवाहा से सवाल शुरू कर दिया जिसके बाद अब उपेंद्र कुशवाहा ने भी करारा जवाब दिया है। उपेंद्र कुशवाहा ने बेटे को मंत्री बनाने के पीछे पहला कारण पार्टी और पद पर अपना कब्ज़ा जमाये रखने को बताया है तो दूसरी तरफ तेजस्वी यादव एवं राजद पर तंज भी कसा है। 

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उपेंद्र कुशवाहा ने सोशल मीडिया पर पोस्ट कर लिखा है कि कल से ही लगातार मेरे इस निर्णय के लिए आलोचना हो रही है। तो मैं बता दूँ कि पहले भी कई बार ऐसा हो चुका है कि चुनाव में लोगों ने मुझे प्यार और समर्थन दिया लेकिन पद पाने के बाद लोग दूसरी पार्टी में चले गए जिसकी वजह से सदन में हमारी संख्या शून्य हो गई। हमने अपनी पार्टी को बचाए रखने के लिए अपने बेटे को मंत्री बनाने का फैसला लिया है और यह मेरे लिए जहर पीने के बराबर था। अब जब हमने जहर पी ही लिया है तो वैसे लोगों को मैं बता दूँ जो सोच रहे हैं कि जहर पीने के बाद भी जिन्दा कैसे हूँ कि मैंने जिसे मंत्री पद दिया है उसने अपनी मेहनत से कंप्यूटर साइंस से इंजीनियरिंग की डिग्री ली है, वह कोई स्कूल की कक्षा में फेल विद्यार्थी नहीं है। आप उसे थोडा सा वक्त दें, वह अपनी काबिलियत को साबित कर देगा और तब लोगों को पता चलेगा कि मेरा निर्णय सही हो या गलत।

उपेंद्र कुशवाहा ने सोशल मीडिया में पोस्ट कर लिखा है कि 'कल से मैं देख रहा हूं, हमारी पार्टी के निर्णय को लेकर पक्ष और विपक्ष में आ रही प्रतिक्रियाएं....उत्साहवर्धक भी, आलोचनात्मक भी..! आलोचनाएं स्वस्थ भी हैं, कुछ दूषित और पूर्वाग्रह से ग्रसित भी। स्वस्थ आलोचनाओं का मैं हृदय से सम्मान करता हूं। ऐसी आलोचनाएं हमें बहुत कुछ सिखाती हैं, संभालती हैं। क्योंकि ऐसे आलोचकों का मकसद पवित्र होता है। दूषित आलोचनाएं सिर्फ आलोचकों की नियत का चित्रण करती हैं। दोनों प्रकार के आलोचकों से कुछ कहना चाहता हूं। पहले स्वस्थ आलोचकों से:- आपने मेरे उपर परिवारवाद का आरोप लगाया है। मेरा पक्ष है कि अगर आपने हमारे निर्णय को परिवारवाद की श्रेणी में रखा है, तो जरा समझिए मेरी विवशता को।

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पार्टी के अस्तित्व व भविष्य को बचाने व बनाए रखने के लिए मेरा यह कदम जरुरी ही नहीं अपरिहार्य था। मैं तमाम कारणों का सार्वजनिक विश्लेषण नहीं कर सकता, लेकिन आप सभी जानते हैं कि पूर्व में पार्टी के विलय जैसा भी अलोकप्रिय और एक तरह से लगभग आत्मघाती निर्णय लेना पड़ा था। जिसकी तीखी आलोचना बिहार भर में हुई। उस वक्त भी बड़े संघर्ष के बाद आप सभी के आशीर्वाद से पार्टी ने सांसद, विधायक सब बनाए। लोग जीते और निकल लिए।  झोली खाली की खाली रही। शुन्य पर पहूंच गए। पुनः ऐसी स्थिति न आए, सोचना ज़रूरी था। सवाल उठाइए, लेकिन जानिए। आज के हमारे निर्णय की जितनी आलोचना हो, लेकिन इसके बिना फिलहाल कोई दूसरा विकल्प फिर से शुन्य तक पहुंचा सकता था। भविष्य में जनता का आशीर्वाद  कितना मिलेगा, मालूम नहीं। परन्तु खुद के स्टेप से शुन्य तक पहुंचने का विकल्प खोलना उचित नहीं था। इतिहास की घटनाओं से यही मैंने सबक ली है।  समुद्र मंथन से अमृत और ज़हर दोनों निकलता है। कुछ लोगों को तो ज़हर पीना ही पड़ता है।

वर्तमान के निर्णय से परिवारवाद का आरोप मेरे उपर लगेगा। यह जानते/समझते हुए भी निर्णय लेना पड़ा, जो मेरे लिए ज़हर पीने के बराबर था। फिर भी मैंने ऐसा निर्णय लिया। पार्टी को बनाए/बचाए रखने की जिद्द को मैंने प्राथमिकता दी। अपनी लोकप्रियता को कई बार जोखिम में डाले बिना कड़ा/बड़ा निर्णय लेना संभव नहीं होता। सो मैंने लिया।   पूर्वाग्रह से ग्रसित आलोचकों के लिए बस इतना ही:-  "सवाल ज़हर का नहीं था, वो तो मैं पी गया । तकलीफ़ उन्हें तो बस इस बात से है कि मैं फिर से जी गया ।।" अरे भाई, रही बात दीपक प्रकाश की तो जरा समझिए - विद्यालय की कक्षा में फेल विद्यार्थी नहीं है। मेहनत से पढ़ाई करके कंप्यूटर साइंस में इंजीनियरिंग की डिग्री ली है, पूर्वजों से संस्कार पाया है उसने। इंतजार कीजिए, थोड़ा वक्त दीजिए उसे। अपने को साबित करने का। करके दिखाएगा। अवश्य दिखाएगा। आपकी उम्मीदों और भरोसा पर खरा उतरेगा। वैसे भी किसी भी व्यक्ति की पात्रता का मूल्यांकन उसकी जाति या उसके परिवार से नहीं, उसकी काबिलियत और योग्यता से होना चाहिए।'

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