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इस बार देशी गाय के गोबर से बनी इको फ्रेंडली राखियां बढ़ाएगी कलाई की शोभा

This time eco friendly rakhis made from cow dung will enhanc

रक्षाबंधन आने में अब बस कुछ ही दिन शेष रह गए हैं. अभी से ही बाजार रंग-बिरंगी राखियों से सजने लगी है. इस बीच इको फ्रेंडली राखी खूब चर्चे में है. दरअसल, औरंगाबाद जिले के कुटुंबा प्रखंड चपरा गांव स्थित पंचदेव मंदिर में देशी गाय के गोबर से बनी इको फ्रेंडली राखियां अब जिले में ही नहीं बल्कि देश के विभिन्न हिस्सों में बहनों के द्वारा भाइयों की कलाई में बांधी जाएंगी. इतना ही नहीं, यहां की राखियां फौजी भाइयों की भी कलाई की शोभा बढ़ाएगी. 


झारखंड के जमशेदपुर से औरंगाबाद के पंचदेव धाम आकर सीमा पांडेय यहां की युवतियों एवं महिलाओं को न सिर्फ गोबर से राखियां बनाना सीखा रही है बल्कि गोबर से दीपक, खिलौने, देवी देवताओं की मूर्तियां, अगरबत्ती, धूप बत्ती, डाइबिटिज एवं बीपी मैट, मोबाइल रेडिएशन प्रोटेक्शन सहित कई प्रकार की सामग्रियां बनाकर आत्मनिर्भर हो रही हैं. मंदिर कमिटी के द्वारा सभी महिलाओं को उनके काम के आधार पर दैनिक भुगतान किया जाता है. 

सीमा पांडेय ने बताया कि, आधुनिकता की होड़ में हम चाईनीज एवं फैंसी राखियों को उपयोग में ला रहे हैं. मगर गाय के गोबर से बनी राखियां न सिर्फ इको फ्रैंडली है बल्कि इसे गमले में डालकर खाद के रूप में भी उपयोग में लाया जा सकता है. इन राखियों में किसी ने किसी पौधे के बीज भी समाहित रहते हैं जो एक पौधा के रूप में पर्यावरण संरक्षण में अपनी अहम भूमिका निभाते हैं. उनका यह भी कहना है कि, 700 राखी की डिमांड बद्रीनाथ से आया है. 

पांच सौ राखियां पटना के एक चिकित्सक के द्वारा डिमांड की गई हैं, जो महादलित बच्चों के बीच वितरित की जाएंगी. ऐसे ही 500 राखियां दिल्ली की एक संस्था द्वारा तथा औरंगाबाद की भी कई संस्थाओं के द्वारा डिमांड की गई है. लगभग तीन हजार राखियों के बनाने का कार्य जोर शोर से चल रहा है. यह भी बताया कि गोबर के कंडे से अग्निहोत्र बनाया जाता है, जिसकी राख कई प्रकार की बीमारियों को दूर करने में सहायक होता है.

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