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साहित्य सम्मेलन में स्मृतिशेष कवयित्री डॉ. सुभद्रा वीरेन्द्र के गजल-संग्रह 'हम सफर' का हुआ लोकार्पण

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विदुषी कवयित्री सुभद्रा वीरेंद्र की प्रत्येक रचना में कोई न कोई स्वप्नदर्शी क्षण अवश्य लक्षित होता है. उनके शब्द और संवेदनाएं पाठकों के हृदय को सहज ही द्रवित करती हैं. वो एक ऐसी तपस्विनी काव्य-साधिका थीं, जिन पर हिन्दी और भोजपुरी भाषाएं गर्व करती हैं. उनको देखना और सुनना किसी वैदिक-कालीन ऋषिका के मुख से सामवेद की ऋचाओं को सुनने के जैसा पावन हुआ करता था. वो संगीत की एक सिद्धा आचार्या थीं. इसलिए उनके काव्य-पाठ में मर्म-स्पर्शी अनुगूंजभरी भाव-राशि का आनन्द था.

यह बातें रविवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में स्मृतिशेष कवयित्री डॉ. सुभद्रा वीरेंद्र के ग़ज़ल-संग्रह 'हम सफ़र' के लोकार्पण समारोह की अध्यक्षता करते हुए सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही. उन्होंने कहा कि, नारी-मन की व्यथा की अत्यंत सघन अनुभूति को अभिव्यक्त करती उनकी ग़ज़लें नयी पीढ़ी का मार्ग-दर्शन भी करती हैं. उनकी रचनाओं का मूल धर्म उदात्त प्रेम और समर्पण है. उनकी भाव-संपदा कैसी है, उसे उनकी इन पंक्तियों से समझा जा सकता है कि - “मैंने चाहा था तुमसे हंस कर मिलूं/ पर ये आंसू हमारे छलक ही पड़े !”

कवयित्री के विद्वान पति और सुप्रसिद्ध समालोचक प्रो. कुमार वीरेंद्र ने कहा कि, सुभद्रा जी की इन ग़ज़लों, जिन्हें मैंने 'गजलिका' कहा है, में सन्निहित विषय नितान्त वैयक्तिक न होकर सामाजिक स्थिति की वास्तविकताओं की ईमानदार अभिव्यक्ति है. सुभद्रा जी मंच की अत्यंत लोकप्रिय कवयित्री थीं. देश के कोने-कोने से उनको बुलाबा आता था और वो सभी मंचों की शोभा होती थी. यह संग्रह उनकी उन ग़ज़लों का है, जिन्हें उन्होंने पन्नों पर लिखकर यत्र-तत्र छोड़ दिया था. उनके निधन के पश्चात उनके बिस्तर के नीचे, रसोई घर के किसी ताखे से उनकी अनेक रचनाएं प्राप्त हुई हैं, जिनका क्रमशः प्रकाशन किया जा रहा है. 

इसके पूर्व समारोह का उद्घाटन करते हुए पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. सीपी ठाकुर ने कहा कि, सुभद्रा जी के साहित्य में समाज का सभी पक्ष प्रमुखता से आया है. समाज का सारा तबका उनका विषय है. चिकित्सक और चिकित्सा भी. सुभद्रा जी का कंठ अत्यंत मधुर था. उनके शब्द भी मनोहर हैं. सम्मेलन के उपाध्यक्ष डॉ. शंकर प्रसाद, डॉ. मधु वर्मा, डॉ. प्रेम नारायण सिंह, डॉ. रत्नेश्वर सिंह, डॉ. पुष्पा जमुआर, डॉ. सुमेधा पाठक, कुमार अनुपम तथा सुधा मिश्र ने भी अपने विचार व्यक्त किए. 

इस अवसर पर आयोजित कवि-सम्मेलन का आरंभ चंदा मिश्र की वाणी-वंदना से हुआ. गीत के चर्चित कवि आचार्य विजय गुंजन, वरिष्ठ कवि डॉ. सुनील कुमार उपाध्याय, डॉ. मीना कुमारी परिहार, डॉ. शालिनी पाण्डेय, डॉ. ऋचा वर्मा, डॉ. रेणु मिश्रा, मृत्युंजय गोविन्द, सिद्धेश्वर, डॉ. रमाकान्त पाण्डेय, उत्तरा सिंह, डॉ. आर प्रवेश आदि कवियों और कवयित्रियों ने अपने गीत और ग़ज़लों के मधुर पाठ से आयोजन को तरल और स्पंदित किया. मंच का संचालन कवि ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन सम्मेलन के प्रबंध मंत्री कृष्ण रंजन सिंह ने किया.

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