Bagaha:- आधुनिकता की दौड़ में जहां लोग पुरानी परंपराएं भूलते जा रहे हैं, वहीं पश्चिम चंपारण के नौरंगिया गांव में आज भी एक अनोखी परंपरा निभाई जाती है। हर साल बैसाख नवमी यानी सीता नवमी के दिन गांव के सभी लोग अपने मवेशियों समेत घर छोड़ जंगल चले जाते हैं। गांव 12 घंटे के लिए पूरी तरह खाली हो जाता है।
मान्यता है कि वर्षों पहले अगलगी और महामारी से परेशान गांव को बचाने के लिए बाबा परमहंस ने देवी मां की साधना की थी। देवी ने स्वप्न में गांव खाली करने का आदेश दिया, तभी से ये परंपरा चल रही है.गांववाले सुबह 6 बजे से पहले वाल्मीकि टाइगर रिजर्व स्थित भजनी कुट्टी स्थान पहुंचते हैं। वहां मां दुर्गा की पूजा कर प्रसाद चढ़ाया जाता है और फिर सामूहिक भोजन होता है। जंगल में इस दिन त्योहार जैसा माहौल होता है। वही लोग खाना पकाते हैं और मिल-जुलकर दिन बिताते हैं।गांव के स्थानीय लोग कहते हैं कि ये हमारी आस्था का सवाल है। कोई भी बीमार हो, उसे भी जंगल ले जाया जाता है।
यह परंपरा न केवल आस्था बल्कि सामाजिक एकता और प्रकृति से जुड़ाव का प्रतीक भी है।
बगहा से अजय की रिपोर्ट