एनडीए का बिहार बंद खत्म होते ही सत्ताधारी दल जदयू कार्यालय के बाहर हंगामा शुरू हो गया। अपनी मांगों को लेकर भारी संख्या में वित्तरहित शिक्षक पहुँच कर धरना पर बैठ गए। इस दौरान वित्तरहित शिक्षकों ने कहा कि हमलोग वर्षों से बिना किसी वेतन के अपना काम कर रहे हैं। हमलोग चालीस वर्ष से सेवा दे रहे हैं लेकिन अब हमारे लिए राज्य सरकार की तरफ से कोई वेतनमान नहीं दी जा रही है।
राज्य सरकार के द्वारा नियुक्त शिक्षकों की तरह हम लोग सारी सेवाएँ देते हैं लेकिन बावजूद इसके सरकार हमारे साथ दोहरी नीति अपना रही है। एक महिला शिक्षिका ने कहा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हमारे लिए पिता तुल्य हैं, वे सभी विभाग के कर्मियों को कुछ न कुछ दे रहे हैं और हमें भी उम्मीद है कि नीतीश हमें भी कुछ न कुछ देंगे और जो भी देंगे वह बहुत ही बेहतर देंगे। धरना के दौरान वित्तरहित शिक्षक एक गाना भी गा रहे थे 'ले जायेंगे- ले जायेंगे, वित्तरहित शिक्षक वेतन ले जायेंगे।' शिक्षकों ने कहा कि हमलोग बिहार के विभिन्न जिलों से आये हैं, हमलोग विभिन्न कॉलेज में अपनी सेवा दे रहे हैं। छात्रों को हमलोग पूरी तन्मयता से पढ़ाते हैं।
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हमें विश्वास है कि नीतीश कुमार की सरकार ने हमें अनुदान दिया है तो वेतन भी देगी। इस बार जब हमलोग यहां आये हैं तो अब निश्चित है कि अपनी मांग पूरी होने के बाद ही वापस जायेंगे। अगर हमारी बात नहीं मानी गई तो हमलोग 5 सितंबर के बाद पटना में आमरण अनशन करेंगे और जरूरत पड़ी तो आत्मदाह भी करेंगे लेकिन अपनी मांग पूरी हुए बगैर अब यहाँ से वापस नहीं जायेंगे। जदयू कार्यालय के बाहर धरना पर बैठे वित्तरहित शिक्षकों में एक तरफ आक्रोश दिखाई दे रहा था तो दूसरी तरफ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सरकार से ही उम्मीद भी।
वित्त रहित शिक्षकों ने कहा कि बिहार में चुनावी वर्ष है और सरकार सभी संवर्ग के कर्मियों को कुछ न कुछ तोहफा दे रही है। हमलोग भी 40 वर्षों से अपनी सेवा दे रहे हैं। नीतीश सरकार ने मदरसा और अल्पसंख्यक संस्थानों के कर्मियों को सातवां वेतन आयोग का लाभ दे दिया लेकिन वित्तरहित कर्मियों को कोई लाभ नहीं दी यह हमलोगों के साथ अन्याय है। हमारी मांग है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सरकार हमें भी वेतन दे और हमारे परिवार का भरण पोषण करे। हमलोग हर तरह के सरकारी काम करते हैं, अपनी सेवा देते हैं लेकिन हमारे लिए सरकार कुछ नहीं कर रही है।
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पटना से मनीष कुमार की रिपोर्ट