Gaya Ji : गया के एक शख्स ने पर्यावरण के लिए अपना सब कुछ समर्पित कर दिया। आज यह शख्स और इसका परिवार मुफलिसी की जिंदगी जी रहा है किंतु, उसने जो काम कर दिखाया है, वह किसी विरले के वश की ही बात है। ब्रह्मयोनी और उसके आसपास के बंजर भूमि में सिकंदर ने हजारों पेड़ उगा दिए हैं। कभी बंजर कहे जाने वाले इस जगह में अब हरियाली दिख रही है।
गया के 'ग्रीन मैन' से प्रसिद्ध दिलीप कुमार सिकंदर जिसने निर्जन पहाड़ को लाखों पेड़ लगाकर हरा भरा कर दिया है। गया के रहने वाले दिलीप कुमार सिकंदर ने शहर में स्थित ब्रह्मयोनि पर्वत पर लाखों पौधारोपण कर वीरान जगह को हराभरा बना दिया है। गया को लेकर धारणा है कि, यहां की नदियों में पानी नहीं रहता है और पहाड़ निर्जन रहता है। इस धारणा को सिकन्दर ने बदल दिया। अब गया का पहाड़ हराभरा रहता है।
इसके पीछे कोई प्राकृतिक घटना नहीं, बस एक व्यक्ति की जुनून और मेहनत है। मजदूर सिकंदर बिना सरकारी मदद लिए पहाड़ों पर जहां मिट्टी और पानी का साधन नहीं है उस जगह को हरा भरा कर दिया है। ब्रह्मयोनि पहाड़ का कई क्षेत्र सिकंदर की मेहनत से जंगलनुमा बन गया है। सिकंदर बताते हैं कि 'ब्रह्मयोनी पहाड़ पर 1982 से अब तक 45 साल बीत जाने पर भी हर दिन पौधारोपण करते हैं। पुराने पेड़ का देखभाल करते हैं। उन्होंने बताया कि, अबतक अनगिनत पौधा लगा चुके हैं। एक अंदाज से एक लाख से ज्यादा पौधा लगा दिया हूं। मुझे पौधा लगाने का या पेड़ों की देखभाल करने के लिए कोई वेतन नहीं मिलता है। मुझे इनसे प्यार है, मैं इन पेड़ पौधों को अपने संतान जैसा पालता हूं।
सिकंदर बताते हैं कि, उन्हें यह बात खल गयी. उन्होंने आगे कहा, 'मैंने उस दिन से ठान लिया कि मैं इस पहाड़ को हरा भरा कर दूंगा। घर से जेब खर्च से एक खोदने वाला खंती बनाया और चोरी करके पौधा लाकर इस पहाड़ पर लगाने लगा। ये दिनचर्या में बन गया घर से खेलने के बहाने निकलता और यहां पहाड़ में पेड़ पौधा लगाता था। ये सिलसिला 45 सालों से चला आ रहा है। अब तक अनगिनत पेड़ पौधे लगा चुका हूं, आज पूरा ब्रह्मयोनि पर्वत हरा-भरा है। दिलीप कुमार ने कहा कि, 'मैं दिन में मजदूरी का काम करता हूं। मुझे पेड़ पौधा की सेवा करने के लिए पैसे आ जाते हैं तो इस पहाड़ पर आकर घंटो काम करता हूं। इस बरसात में जितना काम करूंगा, उतना ही फायदा होगा। इसलिए मैं रात में 3 बजे तक तो कभी-कभी सुबह तक काम करता हूं। मेरा बस एक लक्ष्य है हर तरफ सिर्फ हरा भरा रहे। सिकंदर बताते हैं कि 'मैं इन पहाड़ों पर ज्यादातर नीम का पेड़ लगाया हूं। इसके पीछे कारण है निम का बीज आसानी से मिल जाता है। उसे बोकर हजारों निम के पौधे लगाए जा सकते हैं। उसके बाद फलदार में आम का पेड़ लगाया हूं। मुझे अभी एक पौधरोपण करने में 200 रुपये के लगभग खर्च होता है। मैं हर दिन अखबार पढ़ता हूं।
अगर मुझे पता चलता है कि कोई सैनिक शहीद हो गया है तो उसके नाम से छायादार या फलदार पौधा लगाता हूं। मैं एक स्वंत्रता सेनानी और शहीदों के नाम फलदार पेड़ों का पार्क बनाया हूं। इसमें ज्यादा से ज्यादा स्वंतत्रता सेनानियों के नाम पर पेड़ हैं। देश पर जान कुर्बान करने वाले सैनिकों क नाम हरेक पेड़ हैं।
ब्रह्मयोनि पर्वत के बगल में बसा दलित बस्ती का एक युवक बताता है कि, 'मेरी उम्र 19 वर्ष है। जब से होश संभाला हूं तबसे इनको इन पहाड़ों में काम करते देखता हूं। ये पूरी रात काम करते हैं, इन्हें इस घनघोर जंगल में किसी का डर नहीं लगता है। विडंबना तो इस बात की है कि दिलीप कुमार सिकंदर के कामों की सरकार, टाउन विधायक डॉ. प्रेम कुमार और जिला प्रशासन ने कई बार सराहना की है। लेकिन, आज तक कोई आर्थिक मदद या बड़ा सम्मान नहीं दिया है। वैसे एक बार सम्मानित हुए हैं। इसके बारे में दिलीप बताते हैं कि, 'उपमुख्यमंत्री मेरे कामों को देखने आये थे, मेरे द्वारा किए गए कामों को देखा हैष। मुझे एक बार श्री कृष्ण मेमोरियल हॉल में प्रशस्ति पत्र भी दिया गया है। सिंकन्दर कहते हैं मुझे सरकार से सम्मान नहीं चाहिए। सम्मान तो ये पेड़-पौधे हैं। सम्मान एक प्रेरणा है। दूसरे लोगों के लिए मैं एक प्रेरणा बन जागृत करना चाहता हूं।