Patna :- बिहार के नए गवर्नर आरिफ अहमद खान पटना पहुंचे,एयरपोर्ट पर उनका भव्य स्वागत किया गया. बिहार सरकार के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी, मंत्री विजेंद्र प्रसाद यादव,विजय कुमार चौधरी, नितिन नवीन समेत कई वरिष्ठ मंत्रियों ने नए राज्यपाल का स्वागत किया. वही सरकार के मुख्य सचिव अमृतलाल मीणा और डीजीपी विनय कुमार ने भी नए राज्यपाल का वेलकम किया.
मिली जानकारी के अनुसार नए राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान को नए साल में 2 जनवरी को शपथ दिलाई जाएगी. पटना हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश उन्हें पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाएंगे.
आरिफ मोहम्मद खान को राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर की जगह बिहार का केरल का राज्यपाल बनाया गया है .जबकि राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर को केरल भेजा गया है. 1998 के बाद किसी मुस्लिम को बिहार का राज्यपाल बनाए जाने के बाद यहां की राजनीति को लेकर कई तरह की चर्चाओं का बाजार गर्म है. आरिफ मोहम्मद मुस्लिम समाज से आने के बावजूद कई मुद्दों पर अपनी बेवाक राय रखते हैं जो बीजेपी की राजनीति को काफी सूट करती है.
आरिफ मोहम्मद खान के जीवनी पर अगर चर्चा करें तो उनका जन्म 18 नवंबर 1951 को उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में हुआ था. उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से बी.ए. (ऑनर्स) (1972-73) और लखनऊ विश्वविद्यालय, उत्तर प्रदेश से एलएलबी (1977) की डिग्री प्राप्त की. आरिफ मोहम्मद खान की राजनीति में एंट्री 1972-73 के दौरान विश्वविद्यालय के महासचिव और 1973-74 के दौरान अध्यक्ष के रूप में हुई. इसके बाद 1977 में वह बुलंदशहर के सियाना विधानसभा सीट से पहली बार विधायकी का चुनाव जीते और यूपी सरकार में मंत्री बन गए. वे चार बार 1980,1984,1989 और 1998 में लोकसभा सांसद बने. इसी दौरान वे दो बार केन्द्रीय मंत्री भी रहे. पहली बार राजीव गांधी की कैबिनेट में वे कानून राज्यमंत्री ( 1984-1986) तथा दूसरी बार वीपी सिंह की सरकार में 1989-1991 तक कैबिनेट मंत्री रहे.
शाहबानो केस को लेकर उनकी अपने ही राजीव गांधी की सरकार से ठन गई और उन्होंने राजीव गांधी की कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया. कांग्रेस से इस्तीफा देने के बाद आरिफ मोहम्मद खान की वापसी 1989 में वीपी सिंह की सरकार में कैबिनेट मंत्री के तौर पर हुई. बता दें कि इस सरकार में बिहार के वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी मंत्री बने थे. यानी दोनों एक साथ सरकार में मंत्री थे. इसके बाद वह 1998 में आखिरी बार सांसद बने. कांग्रेस, बसपा से होते हुए 2004 में भाजपा में शामिल हो गए. लेकिन यहां भी वह ज्यादा दिन नहीं टिके और 3 साल बाद ही भाजपा से अलग भी हो गए. इस दौरान वहे सक्रिय राजनीति से तो दूर रहे.पर मुस्लिम समाज में व्याप्त कुरीतियों पर खुलकर बोलते रहे. जिसका फायदा उन्हें आगे चलकर मिला. तीन तलाक के मुद्दे पर बीजेपी का समर्थन किया. बीजेपी ने 2019 में उन्हें केरल का राज्यपाल बनाया. राज्यपाल के पद पर रहते हुए उनका केरल के मुख्यमंत्री से कई बार विभिन्न मुद्दों पर विवाद भी हुआ. अब भाजपा ने 2025 के विधानसभा चुनाव को देखते हुए प्रोग्रेसिव मुस्लिम को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए आरिफ मोहम्मद खान को बिहार का राज्यपाल बनाया है देखना है कि बीजेपी की यह रणनीति कितनी कारगर साबित होती है.