Patna :- चुनावी साल में बिहार की सभी राजनीतिक पार्टियां शतरंज की चाल चलनी शुरू कर दी है. एक और जहां एनडीए और महागठबंधन से जुड़े पार्टी के नेता चट्टानी एकता के साथ चुनाव लड़कर अपनी-अपनी गठबंधन की जीत के दावे कर रहे हैं वहीं दूसरी ओर ये राजनीतिक दल अपने गठबंधन में अपना वर्चस्व बढ़ने के लिए भी राजनीतिक चालें चल रही है. सबसे ताजा बयान केंद्रीय मंत्री और लोजपा रामविलास पार्टी के सुप्रीमो चिराग पासवान का है जिन्होंने इच्छा जताई है कि वे केंद्र की राजनीति के बजाय बिहार को प्राथमिकता देना चाहते हैं. चिराग पासवान ने कहा कि मेरे पिता स्वर्गीय रामविलास पासवान केंद्र की राजनीति में ज्यादा सक्रियता थी, लेकिन मेरी प्राथमिकता बिहार फर्स्ट है मैं ज्यादा समय तक केंद्र में नहीं रहना चाहता मेरा प्रदेश मुझे बुला रहा है. इससे पहले वे राजनीति में एंट्री करने के दौरान 2013 में ही बिहार फर्स्ट बिहारी फर्स्ट का नारा दिया था. 2020 के विधानसभा चुनाव में भी इस नारे के साथ वे अलग चुनाव लड़े थे लेकिन उसका फायदा नहीं मिल पाया था, लेकिन जेडीयू को काफी नुकसान हुआ था. 2025 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले फिर से चिराग पासवान इस नारे के साथ बिहार की राजनीति में सक्रिय होना चाह रहे हैं.इसका मतलब है कि अब वे महागठबंधन के युवा नेता तेजस्वी यादव को चैलेंज कर सकेंगे. वहीं दूसरी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बेटे निशांत कुमार भी भले ही जदयू औपचारिक रूप से अभी ज्वाइन नहीं की हो लेकिन बिहार की राजनीति को लेकर वह अक्सर बयान दे रहे हैं. इससे यह संभावना जताई जा रही है कि चुनाव के आसपास निशांत कुमार भी सक्रिय राजनीति में आएंगे.
चिराग पासवान के बिहार की राजनीति में सक्रिय भागीदारी के बयान पर भाजपा ने स्वागत किया है जबकि जदयू की अभी प्रतिक्रिया नपी तुली ही है. राजद ने कहा है कि BJP की शह पर 2020 की तरह ही अब 2025 में भी चिराग पासवान जदयू और नीतीश कुमार को किनारा लगाना चाहते हैं. यानी आने वाले दिनों में विधानसभा चुनाव से पहले बिहार की राजनीति में बड़ा बदलाव हो सकता है.
बताते चलें कि इससे पहले मुकेश साहनी के महागठबंधन छोड़कर एनडीए के साथ आने की बात परोक्ष रूप से बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष ने की थी, मुकेश साहनी वेट एंड वॉच की स्थिति में हैं, आखिर उन्हें महागठबंधन में कितने सीटें मिलती है उन्होंने डिप्टी सीएम समेत 60 सीटों की मांग की है यानी मुकेश साहनी भी शतरंज की गोटिया सेट करने में लगे हैं. जीतन राम मांझी ने भी अपनी तरफ से 35 से 40 सीटों पर दावा कर दिया है.
वही महागठबंधन की मुख्य सहयोगी कांग्रेस की बात करें तो वह एक साथ चुनाव लड़ने की बात तो कह रही है लेकिन तेजस्वी यादव के मुख्यमंत्री पद के चेहरे को लेकर वह अभी समर्थन देने के मूड में नहीं दिखती है यानी कांग्रेस भी अपनी चाल चल रही है, ताकि उन्हें मोलजोल करने में ज्यादा सहूलियत हो.
NDA और महागठबंधन के राजनीतिक दलों के नेताओं के बयान और उनके व्यवहार में अंतर यह बता रहा है कि सभी दले अपनी-अपनी पार्टी को लेकर विशेष रणनीति पर काम कर रही है अब ये रणनीति आने वाले दिनों में बिहार की राजनीति में कितना बदलाव लाती है, या कितना असर डालती है यह देखने वाली होगी.