Danapur - दीपावली एवं छठ महापर्व में पीतल के बर्तन का काफी महत्व होता है.क्या आपने कभी सोचा है कि पीतल के बर्तन कैसे बनाए जाते हैं? आखिर इस बर्तन को बनाने की क्या प्रक्रिया रहती होगी? आज हम आपको बिहार के एक ऐसे गांव के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां पीतल के बर्तन बनाए जाते हैं, जहां आपको पीतल के चम्मच से लेकर भगवान तक मिल जाएंगे.राजधानी पटना से लगभग 40 किलोमीटर की दूरी पर बिहटा से सटे परेव एक ऐसा गांव है जिसे पीतल की नगरी से भी संबोधित किया जाता है जहां हर घर में पीतल के बर्तन बनाना ही उनका रोजगार है। पूरा गांव पूरा परिवार मिलकर पीतल के बर्तन को तैयार करता है। यहां की महिलाएं घर के साथ साथ पीतल के बर्तनों में भी चमक लाने का काम करती हैं. वे अपने परिवार के अन्य सदस्यों के साथ एकजुट होकर इस काम को खुशी-खुशी करती हैं।परेव एकलौता ऐसा गांव है, जहां हर घर पीतल के काम से जुड़ा हुआ है।यहां के स्थानीय लोगों का यही सबसे बड़ा रोजगार है। यहां के कारोबार में महिलाएं भी जुड़ी हुई हैं।वे घर का कामकाज खत्म करने के बाद पीतल में चमक देने में जुट जाती हैं।पीतल की नगरी परेव में पीतल की मेटल को गलाई तो कोई पतर तो कोई कटाई तो कोई आकर देने में लगा रहता है।हर घर पीतल के बर्तन बनाने में जुटा रहता है।इस गांव में इसी रोजगार से घर के चूल्हे जलते हैं। परेव में 300 से अधिक कुटीर उद्योग हैं। इनमें 200 से अधिक कुशल कारीगर काम कर रहे हैं। 80 प्रतिशत कार्य हाथों से किया जाता है। शेष 20 प्रतिशत बिजली पर निर्भर है। इस बार भी धनतेरस, दीपावली और छठ के अवसर पर प्रति ईकाई दो से तीन लाख यानी पांच छह करोड़ तक के कारोबार की उम्मीद है।
फैक्ट्री मालिक रोशन को ने बताया कि परेव गांव पीतल नगरी के नाम से यह प्रसिद्ध है यहां पीतल का सारा सामान बनाया जाता है मेरे दादा पर दादा सभी यही बनाते आ रहे हैं 5 साल से हम इस कारोबार को देख रहे हैं बताया कि हमारे पास स्क्रैप आता है उसी को हम लोग भट्टी में गर्म कर गलाते है और विभिन्न प्रकार के बर्तनों का आकर देते हैबबीता देवी ने बताया कि हम लोग 10 वर्षों से काम कर रहे हैं बर्तन को चमक देने वाला काम पुराने बर्तनों को भी हम लोग चमक देते हैं जब हमने पूछा कितने सालों से यह काम हो रहा है तो बताया कि खानदानी चला आ रहा हैस्थानीय रिंकू कुमार ने बताया कि परेव को पीतल नगरी के नाम से जाना जाता है बहुत पुराना हमारा दादा परदादा पिछले का काम करते थे कांसा और पीतल का पहले से यहां काम होता है लेकिन पीतल ज्यादा पैमाने पर बनता है जिससे पीतल नगरी के नाम से प्रसिद्ध है पहले की अपेक्षा पीतल का डिमांड कम हो गया है लोग फैशन के दौर में भाग रहे हैं स्टील में खाना खा रहे हैं फाइबर में खाना खा रहे हैं लोगों को बीमारी पसंद है बीमारी ले रहे हैं हमारे जो पूर्वज बनाते थे पीतल और कांसे में खाना खाने के लिए कई तरह की बीमारियां ठीक हो जाती थी पहले की अपेक्षा डिमांड काम हो गई है स्टील और फाइबर की बिक्री ज्यादा हो गई है उसके कारण पीतल का डिमांड कम हो गया है अभी भी यहां हाथ से बर्तन बनता है जैसे देश में तरक्की होता है इस पैमाने पर हमारे गांव में भी पहले से ज्यादा विकास हो रहा है हाइड्रोलिक प्रेस से बर्तन चपता है हम लोग का सारा परिवार इसी में लगा हुआ है हम लोग पीतल के कारोबार पर ही आत्मनिर्भर हैं.
दुकानदार शुभम कुमार ने बताया कि त्योहार को लेकर तैयारी पूरी कर ली गई है स्टेनलेस स्टील के बर्तनों के आ जाने से पीतल के बर्तनों में कोई तरह की बिक्री में कमी नहीं आई है और ज्यादा हो गया है महंगा हो या सस्ता हो कोई खाना छोड़ सकता है बर्तन बेसिक नीड्स है स्टेनलेस स्टील और पीतल की बिक्री दोनों बराबर ही होती हैं सब बिकता है जितना मेटल है वह सब बिकता है
दानापुर से पशुपति की रिपोर्ट