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दादा 1890 में छपरा से गए थे वेस्टइंडीज, पोता 2025 में अपनी मिट्टी को नमन करने पहुंचा, फिर..

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Chapra :-बिहार के रहने वाले लोग चाहे देश में रहें विदेश में, उन्हें अपनी मिट्टी की सुगंध  अपने देश अपने गांव खींच ही लाती है। बिहार के सारण जिले  के रहने वाला एक परिवार जो वेस्ट इंडिया में जाकर बस गया था लेकिन अपने पूर्वजों को खोजते हुए लगभग डेढ़ सौ साल बाद वेस्टइंडीज के टबेगो से इंडिया पहुंचा और छपरा के एक गांव में अपने बचे हुए परिवार से मुलाकात की, यहां आने पर इस परिवार का भव्य स्वागत हुआ.

सारण जिले के जनता बाजार थाना क्षेत्र के लश्करी गांव निवासी छटांकी मियां 1890 में इंडिया छोड़कर वेस्टइंडीज चले गए थे। समय  के साथ साथ उनके परिवार का संपर्क  अपने पैतृक गांव से टूट गया। छटांकी मियां के परपोते फाजिल जोहार को अपने पूर्वजों से मिलने की इच्छा हुई तो उन्होंने खोज भी शुरू की और इंडिया के लोगों से संपर्क साधना शुरू किया। इसी क्रम में उन्हें अपने गांव का पता चला.अपने गांव अपने माटी पर पहुंचने की ललक  उन्हें भारत ले आई।वेअपनी पत्नी मशीन मरीन के साथ इंडिया पहुंचे और बिहार राज्य सिया वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष सैयद अफजल अब्बास से मिले। सैयद अफजल अब्बास लश्करी गांव के ही रहने वाले थे और उनके प्रयास से फजल जौहर के परिवार का पता चल गया।गांव पहुंचते ही लोगों ने दंपती का स्वागत किया और जिस तरह बेटी घर आती है उसे तरह खोईचा देकर विदा किया गया।

वेस्टइंडीज से आए फाजिल जौहर के रिश्ते में भाई शौकत और परवेज ने अपने घर दोनों का स्वागत किया और पूरा गांव घुमाया।फाजिल  जौहर अपने उसे घर भी पहुंचे जहां उनके पूर्वज रहा करते थे। यहां पहुंचकर सबकी आंखें नम हो गईं।वे दो दिन अपने इस पैतृक गांव में रहे और वापसी पर लौटते हुए अपने साथ गांव की काफ़ी स्मृतियां अपने साथ ले गए। गांव वाले और परिवार के सदस्यों में पारंपरिक रूप से खोईछा  देकर विदाई की।

 छपरा से पंकज श्रीवास्तव की रिपोर्ट

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