पटना: बिहार की राजनीति में बाहुबलियों की राजनीति का गढ़ रहा मोकामा विधानसभा सीट आजादी के बाद से अब तक लगातार भूमिहारों के कब्जे में रहा है। इस बार विधानसभा चुनाव में अब इस सीट पर समीकरण बदलता हुआ दिखाई दे रहा है। दरअसल जन सुराज के एक समर्थक दुलारचंद यादव की मौत ने मोकामा विधानसभा सीट पर जातीय और राजनीतिक समीकरणों पर बहुत बड़ा असर डाला है। पहले चरण के मतदान से महज एक सप्ताह पहले इस हत्याकांड ने बिहार की राजनीति में भूचाल ला दिया है। इस सीट पर लगातार भूमिहार का दबदबा रहा है लेकिन इस राजनीतिक हत्या की वजह से अब जातिय गोलबंदी शुरू हो गई है। एक तरफ यादव जाति गोलबंद हो रहा है तो दूसरी तरफ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को अपना समर्थन देने वाला जाति धानुक समुदाय भी गोलबंद हो रहा है।
ऐसा माना जा रहा है कि अब इस सीट पर अब यादव और धानुक समुदाय ने सियासी समीकरण को बदलना शुरू कर दिया है। बता दें कि इस सीट पर एक तरफ जदयू की तरफ से भूमिहार वर्ग से अनंत सिंह मैदान में हैं तो दूसरी तरफ राजद की तरफ से भी भूमिहार वर्ग से ही पूर्व सांसद सूरजभान सिंह की पत्नी वीना देवी जबकि धानुक समाज से पियूष प्रियदर्शी जन सुराज की टिकट पर मैदान में हैं। अब इस सीट पर बदले सियासी समीकरण में एक तरफ जहाँ यादव मतदाता राजद के समर्थन में गोलबंद हो रहे हैं तो दूसरी तरफ अब तक नीतीश कुमार को मानने वाले धानुक समाज के मतदाता पियूष प्रियदर्शी की तरफ झुकने लगे हैं वहीं भूमिहार मतदाताओं का रुझान पहले की तरह ही अनंत सिंह के समर्थन में दिखाई दे रहा है।
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मोकामा विधानसभा सीट पर यादवों की आबादी करीब 24 प्रतिशत है जबकि भूमिहार मतदाताओं की आबादी 30 प्रतिशत। अब तक इस सीट पर भूमिहार मतदाताओं के साथ ही अन्य वर्गों के मतदाता के बल पर ही भूमिहार उम्मीदवार जीतते आये हैं लेकिन इस बार विधानसभा चुनाव में समीकरण बदलता हुआ दिखाई दे रहा है। ऐसे में यहीं से मोकामा का सियासी समीकरण भी उलझता हुआ दिख रहा है। दुलारचंद हत्याकांड के बाद बिहार में 1990 के दशक वाली जातीय गोलबंदी जैसी सियासी तस्वीर भी उभरती हुई दिख रही है।
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