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सहरसा के कन्दाहा सूर्य मंदिर का है खास महत्व..

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Saharsa - महापर्व छठ में अस्ताचल और उदयगामी सूर्य की पूजा होती है. इस दौरान देशभर के अलग-अलग सूर्य मंदिरों में भी विशेष आयोजन होता है.सहरसा में भगवान कृष्ण के पुत्र सांब द्वारा स्थापित कन्दाहा का सूर्य मंदिर ऐतिहासिक ही नहीं धार्मिक दृष्टिकोण से देश भर में महत्व रखता है।

 देश के कोणार्क मंदिर की तरह स्थापित इस मंदिर में यूं तो देश भर के पर्यटक पहुंचते है पर छठ पूजा के मौके पर यहां की रौनक कुछ और ही होती है। ऐसी मान्यता है कि यहां मांगी गई मन की हर मुराद पूरी होती है । जिसकी वजह से दूर दराज के पर्यटक यहां पूजा अर्चना के लिए आते है। 

  शास्त्र की मानें तो सहरसा जिले के कन्दाहा ग्राम स्थित अति विशिष्ट सूर्य मंदिर है।सूर्य पुराण और महाभारत के मुताबिक़ श्री कृष्ण के बेटे साम्ब के द्वारा स्थापित इस सूर्य मंदिर की श्रेष्ठता इस बात से प्रामाणित होती है कि इस मंदिर में राशियों में प्रथम मेष राशि के साथ सूर्य की प्रतिमा स्थापित है। मान्यता है कि बैसाख महीने में जब सूर्य मेष राशि में प्रवेश करते हैं तो सूर्य की पहली किरण इसी सूर्य प्रतिमा और उनके रथ पर पड़ती है। 

 सहरसा जिला मुख्यालय से करीब 16 किलोमीटर पश्चिम और उत्तर दिशा में महिषी प्रखंड अंतर्गत कन्दाहा ग्राम में बना है यह अनूठा सूर्य मंदिर। अष्टधातु के इस सूर्य प्रतिमा से लगता है की विशेष आभा टपक रही है। सूर्य की प्रतिमा के ठीक ऊपर मेष राशि मौजूद हैं। कुल बारह राशियाँ सूर्य की प्रतिमा को घेरा बनाकर यहाँ मौजूद हैं। बगल में अष्टभुजी गणेश हैं तो सामने सूर्य यंत्र रखा हुआ है। देवों के देव महादेव भी यहाँ सूर्य के दोनों तरफ विराजमान हैं। सूर्य की दोनों पत्नी संज्ञा और छाया भी यहाँ पर हैं। सूर्य के रथ और रथ में जुटे सातों घोड़े भी यहाँ पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराये हुए है। 

इस मंदिर के जानकार और इतिहास में अभिरुचि रखने वाले इलाके के लोग बताते हैं कि इस मंदिर का निर्माण 1435 ईसवी में हुआ है,हांलांकि कन्दाहा में सूर्य की प्रतिमा को द्वापर युग में श्री कृष्ण के पुत्र सांब ने स्थापित किया था।  यह मंदिर एतिहासिक दृष्टिकोण से अति विशिष्ट और यहाँ की कलाकृति अद्वितीय है।  महा पर्व छठ जिसमें भगवान सूर्य को अर्ध्य दिया जाता है.कन्दाहा गाँव स्थित सूर्य मंदिर पर बड़ी संख्यां में लोग  छठ पर्व मनाते हैं और वहीँ पर सूर्य को अर्ध्य देकर अपने--अपने घर चले जाते हैं।  .

मंदिर के पुजारी इस मंदिर के गुणगान करने से नहीं अघा रहे हैं पुजारी का कहना है की तमाम गुण संपन्न यह मंदिर  इस मंदिर परिसर में एक पवित्र जल कुण्ड बना हुआ था जो अब कुएं की शक्ल में है। इस कुएं के जल की खासियत है कि इसके जल को पीने और शरीर पर लगाने से गंभीर से गंभीर चर्म रोग ठीक हो जाता है।

कन्दाहा सूर्य मंदिर मंदिर को लेकर विद्वानों में मतैक्य नहीं है ।मंदिर के चौखट पर उत्कीर्ण शक संवत 1357 (सन 1435 ई.)के अभिलेख से ज्ञात होता है कि इसे राजा नरसिंह देव ने बनवाया था जिन्होंने कोणार्क सूर्य मंदिर का निर्माण करवाया था वहीँ महाभारत व् पुराण के अनुसार द्वापर युग में  श्री कृष्ण के बेटे साम्बू ने बारह राशि में 12 सूर्य मंदिर का निर्माण करवाया जिसमे प्रथम मेष राशि का मंदिर यहीं है.

लोकआस्था के महापर्व पर नेपाल सहित देश के विभिन्न राज्यों से श्रद्धालु यहां आते है और भगवान भास्कर को अर्ध्य देकर अपनी मन्नते पूरा करते हैं। 

 सहरसा से नीरज की रिपोर्ट

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