Nalanda : आज कारगिल विजय दिवस की 26वीं वर्षगांठ के अवसर पर बिहार के नालंदा ज़िले के निवासी शहीद हरदेव प्रसाद के परिवार को मुख्यालय बिहारशरीफ के कारगिल चौक स्थित शहीद के स्मारक पर श्रद्धांजलि देने ज़िले के सांसद कौशलेंद्र कुमार, डीएम कुंदन कुमार व एसपी भारत सोनी के अलावा विभागीय अधिकारी मौजूद रहे। इस मौके सभी गणमान्य लोगों ने शहीद हरदेव प्रसाद की वीरता को याद कर कहा कि, नए पीढ़ी के युवाओं को प्रेरणा लेनी चाहिए।
शहीद हरदेव प्रसाद की पत्नी मुन्नी देवी ने बताया कि, कारगिल युद्ध से 10 दिन पूर्व सोमालिया से घर लौटे और युद्ध शुरू होने की सूचना मिलते की परिवार की चिंता किए बग़ैर देश की रक्षा के लिए युद्ध में चले गए। उसी दौरान दुश्मनों से लोहा लेते हुए ज़ख़्मी हो गए। इसके बावजूद लड़ाई लड़ते रहे। जब वह गंभीर रूप से ज़ख़्मी हो गए तो उन्होंने सहयोगियों को ख़ुद के ज़ख़्मी होने की बात बताई। वहीं फ़िर उनके द्वारा इलाज के लिए ले जाया गया। लेकिन इस दौरान रास्ते में ही मौत हो गई।
आपको बता दें कि, 12 जून 1999 में शाम 3 बजे हिलसा डीएसपी ने घर पर आकर परिवार को भाई के कारगिल युद्व में दुश्मनों से लोहा लेते हुए बम से हमला में शहीद होने की बात बताई गई। फ़िर गांव परिवार में मातम छा गया। वहीं घर के तीन सदस्यों को शहीद के शव को लाने के लिए भेजा गया। हेलीकॉप्टर के ज़रिए शहीद का शव ज़िले के एकंगरसराय प्रखंड अंतर्गत कुकुरबर गांव पहुंचा। जहां शहीद के परिवार को श्रद्धांजलि देने लालू यादव सहित कई केंद्र और राज्य के नेता पहुंचे थे। उस वक्त उनके द्वारा कुकुरबर गांव को आदर्श गांव बनाने, गांव में स्कूल और स्वास्थ केंद्र के साथ शहीद का स्मारक के अलावा शहीद हरदेव के भाई को नौकरी देने की बात कही गई थी. जो आज तक अधूरी है।
मुन्नी देवी ने आगे यह भी बताया कि, कुकुरबर गांव में ढाई से 300 घरों की आबादी है, लेकिन अब तक न तो स्कूल का निर्माण हुआ न ही स्वास्थ केंद्र और शहीद की श्रद्धांजलि के लिए स्मारक बन पाया है। जिसकी उम्मीद सरकार से करता हूं। उनका कहना है कि, पहले घर पर लोग श्रद्धांजलि देने आते थे। अब कोई पूछने या देखने तक नहीं आता है। इसलिए अपमानित महसूस करती हूं। अब 15 अगस्त या 26 जनवरी के अवसर पर अनुमंडलीय कार्यालय में शॉल बूके देकर सम्मानित किया जाता है।
2008 में पिता और 2012 में माता का निधन हो गया था। उनके नाम से गांव में स्कूल, गैस एजेंसी, सरकारी नौकरी, पटना में भवन, एकंगरसराय चौराहे पर शहीद का स्मारक, यात्री शेड आदि घोषणाओं की झड़ी लगा दी गई थी। हालांकि उसके बाद शहीद की पत्नी मुन्नी देवी को एकंगरसराय में तृतीय श्रेणी की नोकरी, कुकुरबर गांव के पास यात्री शेड, पटना में आवास, मुख्य सड़क से घर तक पीसीसी ढलाई, नगद के सिवा कुछ नहीं मिला। बाकी सरकारी घोषणाएं सिर्फ फाइलों में सिमट कर रह गई।
देश में जम्मू कश्मीर के अलावा पंजाब और लद्दाख तक अपनी सेवा दे चुके थे। शहीद हरदेव प्रसाद का परिवार अब गांव में नहीं रहता है। उनकी पत्नी मुन्नी देवी एकंगरसराय अस्पताल में कार्यरत थी और अब वो पटना चली गई हैं। शहीद हरदेव प्रसाद को 3 संतान है, जिनमें एक पुत्र सुधांशु कुमार जो दिल्ली पढ़ाई कर रहे हैं और दो पुत्री है उनमें एक की शादी हो चुकी है। बता दें कि, हरदेव को पहली बार 1988 में बिहार रेजिमेंट दानापुर के प्रथम बटालियन में नियुक्ति मिली थी। इसके बाद वे आसाम, दिल्ली के अलावा भूटान और सोमालिया में शांति सैनिक के तौर पर उत्कृष्ट प्रदर्शन के बल पर 1994 में सम्मानित किए गए थे।
नालंदा से मो. महमूद आलम की रिपोर्ट