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कौन थे वाल्टर हाउजर? अमेरिकी नागरिक की भारत में पूरी की गई आखिरी इच्छा, गंगा में विसर्जित अस्थियां...बेटी शीला ने कहा- 'बिहार हमारा घर है'

Kaun the Walter Hauser? American nagrik ki Bharat mein poori

Patna : भारत के किसान आंदोलन और स्वतंत्रता संग्राम को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने वाले इतिहासकार प्रो. वाल्टर हॉसर की अस्थियां उनके परिवार ने पटना में गंगा नदी में भावुक माहौल में प्रवाहित किया। इस मौके पर स्वामी सहजानंद सरस्वती की 75वीं पुण्यतिथि भी मनाई गई। जिससे यह दिन और अधिक ऐतिहासिक बन गया। स्वामी सहजानंद सरस्वती की प्रसिद्ध आत्मकथा ‘मेरा जीवन संघर्ष’ (1952), जो अब अंग्रेज़ी में ‘My Life Struggle’ नाम से उपलब्ध है। भारत के किसान आंदोलनों की असली आवाज है। इस आत्मकथा का अनुवाद वाल्टर हॉसर और कैलाश चंद्र झा ने मिलकर किया था। जिससे दुनिया भर के लोग भारतीय किसानों की पीड़ा और संघर्ष को समझ पा रहे हैं। हॉसर की बेटी शीला हॉसर ने कहा कि “यह सिर्फ अस्थि विसर्जन नहीं, मेरे पिता की अंतिम इच्छा की पूर्ति है। बिहार उनका घर था और स्वामी सहजानंद उनके जीवन के पथप्रदर्शक। हमारा बचपन इलाहाबाद में बीता है। लेकिन, भारत हमारे दिल के सबसे करीब है। हम सब परिवारजन अमेरिका से पटना आए हैं। क्योंकि, यह श्रद्धांजलि हमारी भावनाओं से जुड़ी है।”



सीताराम आश्रम के सचिव सत्यजीत कुमार सिंह ने बताया कि, आज स्वामी जी की 75वीं पुण्यतिथि है और इस दिन उनके सबसे बड़े शिष्य का अंतिम संस्कार यहीं होना बहुत बड़ी बात है। हॉसर जी ने स्वामी जी के विचारों को विदेशों तक पहुंचाया। आज की पीढ़ी उनके अनुवाद से किसान आंदोलन की आत्मा को समझ पा रही है।”


अमेरिका से आए प्रतिनिधि ने कहा- पटना आकर हमें एक विशेष अपनापन महसूस हुआ। लोगों की आत्मीयता और संस्कृति ने हमें छू लिया। हॉसर परिवार ने हमेशा भारत को घर माना है।”

‘मेरा जीवन संघर्ष’ केवल एक आत्मकथा नहीं, बल्कि यह किसानों द्वारा लिखा गया किसानों का इतिहास है। स्वामी सहजानंद ने ज़मींदारी प्रथा, किसानों के शोषण और उनके सामाजिक-राजनीतिक आंदोलनों को जिस बेबाकी और गहराई से दर्ज किया है, वह आज भी प्रासंगिक है। प्रो. हॉसर ने अपने शोध में इन आंदोलनों को व्यापक दृष्टिकोण से समझा और उन्हें पश्चिमी दुनिया में एक नया परिप्रेक्ष्य दिया। वे अमेरिका के वर्जीनिया विश्वविद्यालय में दक्षिण एशियाई इतिहास के प्रोफेसर एमेरिटस रहे और उन्होंने बिहार के किसान आंदोलन पर कई ग्रंथों की रचना की।


यह कार्यक्रम न केवल भावनात्मक श्रद्धांजलि था। बल्कि, यह एक विचारधारा को सम्मान देने की अभिव्यक्ति भी थी। वह विचारधारा जिसमें किसान के श्रम, आत्मसम्मान और संघर्ष को इतिहास के पन्नों में उचित स्थान दिलाया गया। स्वामी सहजानंद और उनके शिष्य हॉसर का जुड़ाव आज भी प्रेरणा का स्रोत बना हुआ है।



दानापुर से पशुपतिनाथ शर्मा की रिपोर्ट


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