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हिंदी को राजकीय भाषा बनाने में अहम योगदान देने वाले डॉ लक्ष्मी नारायण सुधांशु को बिहार के साहित्यकारों ने किया याद..

Laxmi Narayan Sudhanshu was remembered by the litterateurs o

Patna:- बिहार में हिन्दी भाषा के सबसे बड़े ध्वज-वाहक थे डा लक्ष्मी नारायण सुधांशु। उनके ही प्रयास से बिहार की यह राजकीय भाषा बनी। 'राष्ट्र भाषा परिषद' और 'हिन्दी प्रगति समिति' की स्थापना के भी वे ही मुख्य सूत्र-धार थे। राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर' को राज्यसभा में भेजने और प्रो सिद्धेश्वर प्रसाद जैसे नेता को राजनीति में लाने वाले स्तुत्य राजनेता भी थे सुधांशु जी। उन्होंने अपना पूरा जीवन राष्ट्र और राष्ट्रभाषा के लिए समर्पित कर दिया था। वे बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन और बिहार विधान सभा के भी अध्यक्ष रहे। राजनीति में उनका आदर्श 'महात्मा गांधी' और हिन्दी-सेवा में उनका आदर्श 'राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन' थे। 'राजनीति' और 'हिन्दी', उनके लिए 'देश-सेवा'की तरह थी। 

यह बातें, शनिवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित जयंती-समारोह और कवि-सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन-अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। उन्होंने कहा कि हिन्दी के लिए वे किसी भी तरह का त्याग करने के लिए तत्पर रहा करते थे। एक बार उनसे किसी पत्रकार ने पूछा कि यदि आपको 'बिहार विधान सभा' अथवा 'हिन्दी प्रगति समिति' के अध्यक्ष पदों में से कोई एक चुनना पड़े, तो आप किसे चुनेंगे? सुधांशु जी का उत्तर था- “हिन्दी प्रगति समिति! हिन्दी के लिए मैं कुछ भी त्याग सकता हूँ, विधान सभा का अध्यक्ष पद भी"। तब वे दोनों ही संस्थाओं के अध्यक्ष थे। 

स्मृति-शेष कवि विजय अमरेश को स्मरण करते हुए डा सुलभ ने कहा कि अमरेश जी मृदुभावों के एक अत्यंत प्रतिभावान कवि और पटकथा लेखक थे। आकाशवाणी और दूरदर्शन के लिए उन्होंने अनेकों धारावाहिक लिखे। वे मंचों के भी लोकप्रिय संचालक और उद्घोषक थे। उनकी वाणी में सम्मोहन था। 

अतिथियों का स्वागत करती हुईं सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा मधु वर्मा ने कहा कि सुधांशु जी साहित्य और राजनीति के सेतु और आदर्श थे। वे राजनीति में शुचिता के प्रबल पक्षधर थे। उनकी सादगी और शीलता अद्भुत और अनुकरणीय थी। 

इस अवसर पर आयोजित कवि-सम्मेलन का आरंभ चंदा मिश्र की वाणी-वंदना से हुआ। वरिष्ठ कवि डा रत्नेश्वर सिंह, भारतीय प्रशासनिक सेवा के पूर्व अधिकारी और कवि बच्चा ठाकुर, गीतिधारा के प्रसिद्ध कवि प्रणव पराग, प्रो सुनील कुमार उपाध्याय, सुनीता रंजन, नीता सहाय,आनन्द किशोर मिश्र, ई अशोक कुमार, सदानन्द प्रसाद, बाँके बिहारी साव, अरविन्द कुमार वर्मा, शंकर शरण आर्य, सूर्य प्रकाश उपाध्याय आदि कवियों और कवयित्रियों ने अपनी सुमधुर रचनाओं से आयोजन को रसमय बना दिया। मंच का संचालन कवि ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन प्रबंधमंत्री कृष्ण रंजन सिंह ने किया।

सम्मेलन के प्रशासी अधिकारी नन्दन कुमार मीत, हरि कृष्ण सिंह 'मुन्ना',राम प्रसाद ठाकुर, तारकेश्वर पाण्डेय, सरोज कुमार, डा चंद्रशेखर आज़ाद आदि प्रबुद्धजन समारोह में उपस्थित थे।

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