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“नीतीश चाचा, हम लोगों का घर मत तोड़ो, हम पढ़ना चाहते हैं” — शेरघाटी से मासूम की आवाज़

नदी किनारे किताबें थामे बैठी मासूम बच्ची की यह तस्वीर शेरघाटी से आई एक ऐसी सच्चाई है, जो सिस्टम और समाज दोनों से सवाल पूछती है। बुलडोजर अभियान के बाद उजड़े घर और पढ़ाई से जूझते बच्चों की अपील सीधे मुख्यमंत्री तक पहुंची है।

“Nitish uncle, don’t demolish our house, we want to study” –
“नीतीश चाचा, हम लोगों का घर मत तोड़ो, हम पढ़ना चाहते हैं” — शेरघाटी से मासूम की आवाज़- फोटो : Darsh News

गया: कभी-कभी कोई दृश्य पूरे सिस्टम से सवाल पूछ लेता है। गया जिले के शेरघाटी प्रखंड से सामने आई यह तस्वीर भी कुछ ऐसी ही है—नदी के किनारे बैठी एक मासूम बच्ची, हाथ में किताब, पास में भाई और आंखों में भविष्य के सपने। यह दृश्य सिर्फ गरीबी की कहानी नहीं कहता, बल्कि विकास की उस कीमत को उजागर करता है, जिसे अक्सर सबसे कमजोर वर्ग चुकाता है। शेरघाटी में हाल ही में चले बुलडोजर अभियान के बाद एक गरीब परिवार का घर टूट गया। बताया जा रहा है कि यह कार्रवाई प्रशासनिक मुहिम के तहत की गई। घर उजड़ते ही बच्चों की दुनिया भी उजड़ गई। सिर से छत छिनी, तो पढ़ाई का ठिकाना भी खत्म हो गया। मजबूरी में ये मासूम बच्चे नदी किनारे बैठकर पढ़ने को विवश हैं। इस पूरे मामले को सबसे ज्यादा झकझोरने वाली है बच्ची की मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से की गई अपील - “नीतीश चाचा, हम लोगों का घर मत तोड़ो। हम बहुत गरीब हैं। हम पढ़ना चाहते हैं, डॉक्टर बनेंगे और फ्री में इलाज करेंगे।”

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यह सिर्फ एक बच्ची की फरियाद नहीं है, बल्कि उन हजारों बच्चों की आवाज है, जो हर साल विकास और अतिक्रमण हटाओ अभियानों के बीच अपना बचपन खो देते हैं। सवाल यह नहीं है कि अतिक्रमण हटाना गलत है या सही, सवाल यह है कि क्या मानवीय दृष्टिकोण को पूरी तरह नजरअंदाज किया जा सकता है? अगर प्रशासनिक कार्रवाई जरूरी थी, तो पहले वैकल्पिक व्यवस्था क्यों नहीं की गई? बच्चों की पढ़ाई, परिवार की छत और जीवन की न्यूनतम गरिमा का क्या? अब निगाहें सरकार और जिला प्रशासन पर टिकी हैं। क्या इस मासूम की अपील सुनी जाएगी, या यह भी फाइलों में दबकर रह जाएगी? क्योंकि अगर किताबें फिर से घर की चारदीवारी में नहीं लौटीं, तो सिर्फ एक घर नहीं, एक सपना भी ढह जाएगा।

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गया से मुकेश कुमार की रिपोर्ट।

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