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'अवसरवादी बाबा': शिवानंद तिवारी की तेजस्वी को नसीहत पर बचाव में उतरे मामा सुनील, सोशल मीडिया पर लिखा...

विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद तेजस्वी यादव बिहार से बाहर हैं. इस पर पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष शिवानन्द तिवारी ने उन्हें सोशल मीडिया के जरिये कुछ नसीहत दी थी जिसके बाद अब तेजस्वी के मुंहबोले मामा ने मोर्चा थामा है और...

'Opportunistic Baba': Uncle Sunil defends Shivanand Tiwari's
'अवसरवादी बाबा': शिवानंद तिवारी की तेजस्वी को नसीहत पर बचाव में उतरे मामा सुनील, सोशल मीडिया पर लिखा- फोटो : Darsh News

पटना: बिहार विधानसभा चुनाव में हार के बाद राजद नेता तेजस्वी यादव लगातार बिहार और देश से बाहर हैं। उनके बाहर जाने के मामले में कभी लालू यादव के करीबी रहे पार्टी के पूर्व उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी ने तेजस्वी को नसीहत देते हुए कार्यकर्ताओं के साथ बिहार में रह कर उनका मनोबल बढाने की बात कही। अब इस मामले में लालू परिवार के करीबी और तेजस्वी यादव के मुंहबोले मामा सुनील सिंह ने मोर्चा संभाल लिया है। उन्होंने शिवानन्द तिवारी को अवसरवादी तक कह दिया। 

राजद के पूर्व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी के सोशल मीडिया पोस्ट के जवाब में सुनील सिंह ने भी सोशल मीडिया पोस्ट किया और लिखा कि जब तक उन्हें भाजपा या जदयू की तरफ से कुछ बनाये जाने का आश्वासन नहीं मिलेगा तब तक वे राजद के विरुद्ध रुदाली विलाप करते रहेंगे। सुनील सिंह ने सोशल मीडिया पर पोस्ट कर लिखा है कि 'तथाकथित अवसरवादी तिवारी बाबा को जब तक JDU या BJP कुछ बनाने का आश्वासन नहीं देगा,तब तक ये RJD के विरुद्ध रूदाली विलाप करते रहेंगे!' 

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बता दें कि बीते दिनों राजद के पूर्व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शिवानन्द तिवारी ने अपने सोशल मीडिया पोस्ट के माध्यम से तेजस्वी यादव को संबोधित करते हुए लिखा था कि 2010 में लालू यादव के नेतृत्व में पार्टी 22 सीटों पर ही सिमट गई थी। 2025 के चुनाव में पार्टी ने उससे बेहतर प्रदर्शन किया है और तेजस्वी यादव एक मान्यताप्राप्त नेता प्रतिपक्ष हैं। चुनावों में हार जीत तो एक सामान्य प्रक्रिया है और ऐसे में तेजस्वी यादव को बिहार में रह कर अपने सहयोगी दलों के साथ बैठना चाहिए था। पार्टी के निचले स्तर के कार्यकर्ताओं से बात कर उनका हौसला बढ़ाना चाहिए था लेकिन आप ने तो चुनाव हारने के बाद मैदान ही छोड़ दिया।

अब पार्टी की कमान तेजस्वी यादव के हाथ में है और पिछले चुनाव में ही यह घोषणा हो गई थी कि अगर पार्टी की सरकार बनती है तो तेजस्वी ही मुख्यमंत्री बनेंगे। पराजित पक्ष के नेता की भूमिका विजयी पक्ष के नेता की भूमिका से अधिक होती है क्योंकि उसे अपने सहयोगियों और कार्यकर्ताओं के मनोबल को बनाये रखने की भी जवाबदेही निभानी होती है। तेजस्वी को जिस समय अपने पार्टी के कार्यकर्ताओं के मनोबल को बढ़ाना चाहिए उस वक्त उन्होंने मैदान ही छोड़ दिया।

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