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मां-पिता ने अपनाया था ईसाई धर्म, अब पूरे परिवार ने सनातन धर्म में की वापसी, जानें वजह..

Parents had adopted Christianity, now the whole family has r

Banka -हर रोग से मुक्ति के नाम पर धर्मांतरण के लोभ में फंसे एक व्यक्ति ने परिवार समेत गंगा स्नान कर सनातन धर्म से फिर से नाता जोड़ लिया है। 

यह मामला बांका जिला के एक ढेबाकोलिया गांव का है. यहां क़े सोना लाल मरांडी क़े तीन सदस्यीय परिवार ने ईसाई मत छोड़कर वापस सनातन धर्म स्वीकार कर लिया है। कई लोग सोनालाल की साफगोई से प्रभावित हैं। सोना लाल ने बताया कि उनके पिता ने ही ईसाई मत अपनाया था। इसलिए वह भी ईसाई मत मानने लगे। शादी होने के बाद उनकी पत्नी फूलमनी नाम बदलकर पोलीना बन गई। बेटी का नाम मर्शिला रखा। तीन साल पहले वह लकवाग्रस्त हो गए थे। उन्हें उम्मीद थी कि चर्च में उन्हें चंगाई मिल जाएगी, पर रत्ती भर भी लाभ नहीं मिला। 


अंधविश्वास के चक्कर में चंगाई दिलाने का सारा ढोंग बेनकाब हो गया है। जब उन्हें ईसाई मिशनरियों ने उसी अवस्था में मरने छोड़ दिया गया तब चंगाई दिलाने वाले अंधविश्वास का भूत उतर गया। अंत में गांव के प्रधान चुन्नीलाल मरांडी के नेतृत्व में सोना लाल ने अपने बीवी व बेटी के साथ गंगा स्नान किया। बूढ़ा बूढ़ी धर्मस्थान में मुंडन कराकर सनातन धर्म वापस अपना लिया। अपने घर में देवी दुर्गा का फोटो स्थापित कर दोनों पति-पत्नी हिंदू रीति-रिवाज के अनुसार रोज पूजा करते हैं।


बांका के लकरामा पंचायत के ढेबाकोलिया आदिवासी गृहिणी रानी बेसरा ने बड़े पैमाने पर हो रहे मतांतरण पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा वह हिंदू बनकर पैदा हुई हैं और हिंदू ही मरेंगी। किसी भी कीमत पर प्रलोभन में मतांतरण कर पूर्वजों के कृति को कलंकित नहीं करेंगी। आदिवासी समुदाय की एक बड़ी आबादी मतांतरित हो चुकी है। कई अन्य लोगों को भी इसके लिए प्रेरित किया जा रहा है। लकरामा पंचायत की ही संजू हेंब्रम ने कहा कि अंधविश्वास फैलाकर मतांतरण कराने का धंधा बेनकाब होगा। आज नहीं तो कल सनातन मत को स्वीकार कर लोग घर वापसी करेंगे। उन्होंने सरकार स्कूलों में बेहतर पढ़ाई करवाने की मांग की।


 इस घटना की जानकारी देते हुए सेवानिवृत प्रधानाध्यापक किष्टो प्रसाद यादव ने बताया कि आदिवासियों का मतांतरण कराने के लिए गांव-गांव में एक रैकेट काम कर रहा है। यह सनातन धर्म की निंदा करते हुए चंगाई दिलाने के नाम पर मतांतरण करा रहा है। सरकार ने आदिवासियों के लिए कई महत्वपूर्ण योजनाएं चला रखी है। बावजूद, यह स्थिति चिंताजनक है।

बांका से दीपक की रिपोर्ट

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