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भतीजे चिराग पासवान की राजनीति से मात खाए चाचा पारस के लिए अब लालू ही सहारा, आज फिर हुई मुलाकात.

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Patna :- भतीजे चिराग पासवान की राजनीति से मात खाए पूर्व केंद्रीय मंत्री पशुपति कुमार पारस को भारतीय जनता पार्टी और जनता दल यूनाइटेड ने किसी तरह का भाव नहीं दिया, इससे निराश होकर पशुपति कुमार पारस अब एक बार फिर से लालू यादव के साथ मिलकर राजनीति करने का मन बना लिया है. इस एक सप्ताह में लालू यादव और पशुपति कुमार पारस की दो मुलाकात हो चुकी है, जिसमें पशुपति कुमार पारस और उनके भतीजे प्रिंस के महागठबंधन के साथ मिलकर आगे की राजनीति करने की रणनीति बनाई जा रही है.

 पशुपति कुमार पारस ने मकर संक्रांति के अवसर पर भोज का आयोजन किया था जिसमें निमंत्रण मिलने पर लालू प्रसाद यादव अपने बड़े बेटे तेज प्रताप यादव के साथ शामिल होने पहुंचे थे, उस दिन मीडिया से बात करते हुए लालू यादव ने कहा था कि पशुपति कुमार पारस अगर महागठबंधन में आते हैं तो उनका स्वागत है. आज एक बार फिर से पशुपति कुमार पारस लालू प्रसाद से मिलने राबड़ी आवास पहुंचे और करीब आधे घंटे तक दोनों की बातचीत हुई है. पशुपति कुमार पारस के बेटे को अलौली विधानसभा से चुनाव लड़ने को लेकर लालू यादव ने समर्थन देने का आश्वासन दिया है. पशुपति कुमार पारस और प्रिंस के महागठबंधन में आने पर चिराग पासवान के साथ जुड़ी दलित वोट में बटवारा हो सकता है.

 बताते चलें कि 2020 के विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान के जदयू के उम्मीदवार के खिलाफ अपना प्रत्याशी देने की वजह से ही राजद गठबंधन को कई सीटों पर लाभ मिला था lआरजेडी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी जबकि जेडीयू तीसरे नंबर की पार्टी बन गई थी. अभी के राजनीतिक माहौल के अनुसार भाजपा जदयू और चिराग पासवान, जीतन राम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा एक साथ चुनाव लड़ते हैं तो दलित वोट उनके साथ ज्यादा आने की संभावना है ऐसे में महागठबंधन को नुकसान की आशंका सता रही है, यही वजह है कि लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव समेत महागठबंधन के नेता चाहते हैं कि पशुपति कुमार पारस और उनकी रालोजपा उनके साथ आ जाए, जिससे दलित वोट में बटवारा की संभावना बढ़ सकती है.

 गौरतलब है कि 2019 के लोकसभा और 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान चाचा पशुपति कुमार पारस और भतीजा चिराग पासवान एक ही पार्टी में थे, लेकिन विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान के द्वारा जदयू के खिलाफ  प्रत्याशी दिए जाने के बाद लोजपा की अंदरूनी राजनीति बदलने लगी थी. जेडीयू ने चिराग पासवान को सबक सिखाने के लिए चाचा पशुपति कुमार पारस को पार्टी तोड़ने में परोक्ष रूप से मदद की और केंद्र की मोदी सरकार में पशुपति कुमार को  पारस को मंत्री बनवाने में सहयोग किया, और चिराग पासवान अलग-अलग हो गए थे, लेकिन इस कठिन परिस्थिति में भी  चिराग पासवान ने बीजेपी और पीएम मोदी का दामन थामे रखा. कई विधानसभा के उपचुनाव में चिराग पासवान ने भाजपा प्रत्याशी के पक्ष में प्रचार किया जिसका लाभ भाजपा को मिला और फिर 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने अचानक पशुपति कुमार पारस को गठबंधन से बाहर करते हुए चिराग पासवान को पांच लोकसभा की सीटें दे दी, उसके बाद से पशुपति कुमार पारस की राजनीति हाशिए पर आ गई है. लोकसभा में हुए और उनके भतीजे प्रिंस चुनाव तक नहीं लड़ पाए, यही वजह है कि अब वे 2025 के विधानसभा चुनाव से पहले महागठबंधन के साथ आकर चिराग पासवान के खिलाफ मुखर होकर राजनीति करना चाहते हैं.

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