नालंदा: नालंदा लिटरेचर फेस्टिवल में शामिल होने के लिए सोमवार को बॉलीवुड के मशहूर फिल्म अभिनेता संजय मिश्रा राजगीर पहुंचे। अपने ठेठ अंदाज और संजीदा अभिनय के लिए पहचाने जाने वाले संजय मिश्रा ने मीडिया से बातचीत में बिहार की फिल्म नीति, यहां के माहौल और साहित्य पर बेवाकी से अपनी राय रखी। उन्होंने साफ कहा कि बिहार में फिल्म सिटी होने से ज्यादा जरूरी है, बिहार में बनी फिल्मों को रिलीज करने के लिए सिनेमा हॉल। फिल्म सिटी के सवाल पर संजय मिश्रा ने कहा कि फिल्म सिटी होना जरूरी नहीं है। जरूरी यह है कि बिहार में फिल्म रिलीज हो। फिल्म बनाकर प्रोड्यूसर क्या करेगा अगर रिलीज के लिए आप उसको जगह नहीं देंगे? कम से कम एक हॉल ऐसा होना चाहिए जहां बिहार में बनी फिल्में लगें, यह बहुत बड़ी बात होगी। उन्होंने जोर देकर कहा कि इंफ्रास्ट्रक्चर से ज्यादा जरूरी प्लेटफॉर्म है।
राजगीर में आए बदलावों पर उन्होंने कहा कि अब यहां फ्लाईओवर दिख रहे हैं, बदलाव काफी दिख रहा है। यह शूटिंग के लिए बहुत खूबसूरत जगह है। उन्होंने देवानंद की फिल्म 'जॉनी मेरा नाम' का जिक्र करते हुए कहा कि वह फिल्म भी यहीं शूट हुई थी, जो बहुत इंस्पायर करती है। अपनी फिल्म 'कोट' की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि उस कहानी को नालंदा की जरूरत थी, इसलिए यहां शूट किया और वह स्क्रीन पर बहुत अच्छी दिखी। हालांकि, उन्होंने यह भी जोड़ा कि सिनेमा की शूटिंग डॉक्यूमेंट्री की तरह नहीं होती, लोकेशन वही चुनी जाती है, जिसकी कहानी को जरूरत हो। बिहार को अक्सर 'क्राइम कैपिटल' कहे जाने के सवाल पर संजय मिश्रा ने तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि यह संज्ञा लोगों ने बहुत पहले दी थी, बहुत पहले सुनते थे। आज मेरी फैमिली यहां रहती है और पूरी तरह सेफ (सुरक्षित) है, तो मैं कैसे मान लूं कि यह क्राइम कैपिटल है? मुख्य रूप से बॉलीवुड के एक्टर संजय मिश्रा का बिहार के दरभंगा से ताल्लुक है और वे बीच बीच में आते रहते हैं, इसलिए उन्हें ऐसा अभी नहीं लगता है. पहले ऐसा था।
नालंदा साहित्य उत्सव पर खुशी जताते हुए उन्होंने इसे बिहार के लिए एक शुभ समय बताया है। उन्होंने कहा कि यह एक बहुत बढ़िया शुरुआत है। अभी तो आज इसका जन्म हुआ है, इसे 100 साल जीना है। उन्होंने बताया कि उनकी मुलाकात एक विदेशी मेहमान से हुई जो यहां की चीजों से काफी प्रभावित थे। युवाओं और साहित्य-विज्ञान के जुड़ाव पर उन्होंने दार्शनिक अंदाज में कहा कि साहित्य और विज्ञान दो अलग चीजें हैं, लेकिन मोबाइल पर किताबें आने से विज्ञान पहले ही साहित्य से जुड़ चुका है। उन्होंने कहा कि साहित्य दिल की सोच है और विज्ञान दिमाग की उपज है। आपको बताते चलें कि राजगीर के अंतरराष्ट्रीय कंवेंशन सेंटर में 21 से 25 दिसंबर तक लिट्रेचर फेस्टिवल का आयोजन किया गया है। इनमें कई देशों के नामचीन हस्तियां साहित्य कला से जुड़े लोग शामिल हो रहे हैं।
नालंदा से मो महमूद आलम की रिपोर्ट