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पंडारक का पुण्यार्क सूर्य मंदिर, छठ को लेकर कई कहानियां प्रचलित....

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Barh :- पंडारक का पुण्यार्क में भारत के एक ऐसे दुर्लभ और चमत्कारी मंदिर हैं, जिसका अतीत और वर्तमान दोनों रहस्यमयी है। मंदिर जितना प्राचीन है, उतना ही गौरवशाली और रोचक इसकी कहानी है।
पटना जिला के शहर बाढ़ से महज 12 किलोमीटर दूर पूरब स्थित पंडारक गांव में निर्मित पुण्यार्क सूर्य मंदिर श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र है। इस मंदिर में भगवान भास्कर की काले पत्थर (कसौटी पत्थर) से बनी एक मूर्ति है, जिसे भगवान श्री कृष्ण के पुत्र साम्ब ने द्वापर युग में स्थापित किया था। मंदिर के गर्भ गृह में एक सूर्य यंत्र स्थित है। 

कहा जाता है कि सूर्य की प्रतिमा और सूर्य यंत्र; दोनों इतने प्रभावशाली हैं कि जो भी भक्त या श्रद्धालु सच्चे हृदय से यहां जो मन्नतें मांगता है वह अवश्य पूरी होती है। खासकर छठ पर्व के अवसर पर यहां हजारों की संख्या में लोग दूर-दूर से भगवान भास्कर का दर्शन तथा पूजा पाठ करने पहुंचते हैं। सभी जानते हैं कि लोग आस्था का महापर्व छठ पूजा में भगवान भास्कर को श्रद्धालुओं या व्रतियों द्वारा अर्घ्य समर्पित किया जाता है। इसलिए इस अवसर पर यहां पुण्यार्क सूर्य महोत्सव का भी आयोजन किया जाता है।
इस मंदिर के अतीत की कहानी बड़ी ही दिलचस्प एवं रोचक है। कहानियों को लेकर हमने पाया कि लोगों की मतों में भिन्नताएं हैं। हालांकि भिन्नताएं कम और समानताएं ज्यादा प्रतीत हुई। कहा जाता है कि भगवान श्री कृष्ण की पत्नियों में सबसे सुंदर और रूपवती पत्नी का नाम जांबवंती था। जांबवंती से एक पुत्र था जिसका नाम साम्ब था। साम्ब जांबवंती की तरह ही अत्यंत सुंदर एवं रूपवान था। साम्ब को अपनी सुंदरता का अहंकार हो गया। इसी अहंकार के वशीभूत होकर उन्होंने महर्षि नारद का मजाक उड़ाकर अपमानित कर दिया। उनकी इस उदंडता से महर्षि नारद नाराज हो गए और दंडित करने का उपाय सोचने लगे।
एक दिन महर्षि नारद ने भगवान श्री कृष्ण से कहा कि साम्ब को 100 गोपियों के साथ प्रेम हो गया है। गोपियां भी साम्ब के प्रेम में पागल हो चुकी है। इस वक्त वे जल क्रीड़ा में लीन है। उसके बाद साम्ब के इस प्रेम एवं जल क्रीड़ा को दिखाने के लिए नारद जी भगवान श्री कृष्ण को रैबतक पर्वत पर ले गए, जहां वो सांब के साथ गोपियों की जल क्रीड़ा को देखकर क्रोधित हो गए और साम्ब को कुष्ठ रोग की बीमारी होने से सौंदर्य नष्ट होने का शाप दे दिया।
कुछ अन्य मतों के अनुसार भगवान श्री कृष्ण अपनी गोपियों के साथ महल के अंदर बने जलाशय में जल क्रीड़ा करने गए तथा साम्ब को द्वार पर खड़े रहकर रखवाली करने को कहा गया। उनसे यह कहा गया कि जब तक भगवान श्री कृष्ण जल क्रीड़ा में लीन रहेंगे तब तक किसी का भी अंदर प्रवेश करना मना है। लेकिन तभी महर्षि नारद और दुर्वासा ऋषि वहां आ पहुंचे और भगवान श्री कृष्ण से मिलने की जिद करने लगे। साम्ब ने उन्हें बहुत समझाया-मनाया, फिर भी वे दोनों नहीं माने और अंत में ऋषियों ने कहा कि यदि तुम श्री कृष्ण को बुलाने नहीं जाते हो तो वे उसे शाप दे देंगे। दुर्वासा ऋषि के शाप से बचने के लिए सांब अंदर चले गए। यह देखकर भगवान  श्री कृष्ण क्रोधित हो गए और सांब का सौंदर्य नष्ट होने का शाप दे दिया। शाप के पश्चात सांब को कुष्ठ हो गया। उनका शरीर धीरे धीरे गलने लगा। उनका कष्ट असहनीय हो रहा था। उन्हें नारद मुनि का मजाक उड़ाने का पछतावा होने लगा। तब उन्होंने नारद मुनि से अपनी गलती के लिए क्षमा मांगी।
पुजारी ने तब बताया कि महर्षि नारद ने भगवान श्री कृष्ण को समझाया और पुत्र सांब को शापमुक्त करने के उपाय बताने को कहा। तब भगवान श्री कृष्ण ने सांब को कुष्ठ से मुक्ति हेतु 12 वर्षों तक सूर्य की उपासना करने का उपाय बताया। उसके बाद सांब ने उड़ीसा में चंद्रभागा नदी के तट पर स्थित सुरम्य वन में निराहार रहकर 12 वर्षों तक सूर्य की उपासना की। उन्होंने सूर्य के 21 नाम के मंत्र का जाप किया, जिसे एकाविंशति मंत्र के नाम से जाना जाता है। सूर्य देव प्रसन्न हुए और शाप मुक्त होने का आशीर्वाद दिया। इसके बाद सूर्य की भक्ति में लीन सांब ने तीन प्रमुख सूर्य मंदिर की स्थापना के साथ पूरे भारतवर्ष में कुल 12 सूर्य मंदिरों की स्थापना की। इसका विवरण सांब पुराण, भविष्य पुराण एवं सूर्य पुराण में मिलता है। प्रथम सूर्य मंदिर का निर्माण कोणार्क में कराया गया था। बिहार में कुल पांच सूर्य मंदिर स्थापित हैं, जहां छठ पूजा के अवसर पर हजारों लाखों की संख्या में श्रद्धालु उपासना के लिए पहुंचते हैं। एक मंदिरों में : बड़ार्क (बड़गांव, नालंदा), पुण्यार्क (पंडारक),  देव का सूर्य मंदिर देवार्क (औरंगाबाद), उलार का सूर्य मंदिर उलार्क (पालीगंज, पटना) तथा ओंगरी का सूर्य मंदिर ओंगार्क है।
इन कहानियों के आधार पर पुरातत्त्ववेत्ताओं द्वारा मंदिरों की खोज की गई, जिनमें से भारत में कुल 11 सूर्य मंदिरों के ही प्रमाण मिले। बताया जाता है कि एक मंदिर भारत पाक विभाजन के बाद पाकिस्तान में चला गया।
उपरोक्त सभी सूर्य मंदिरों में पंडारक में स्थित  पुण्यार्क सूर्य मंदिर पूरे भारत में एकमात्र ऐसा मंदिर है जो गंगा नदी के तट पर स्थित है। इस मंदिर की प्रमुख विशेषता यह है कि मंदिर के मुख्य गर्भ गृह में स्थापित अष्टदल सूर्य यंत्र के अलावा कसौटी पत्थर की बनी काले रंग की सूर्य की प्रतिमा है। प्रतिमा के दोनों हाथों में पद्म है, सर पर त्राण, कमर में कटार, गले में माला है। प्रतिमा के नीचे सात घोड़े की आकृति बनी हुई है। इसके साथ ही दाएं और बाएं दंड, देवियां अनुचारियां एवं सारथी है एवं प्रतिमा के ऊपर गंधर्व की आकृति बनी हुई है। स्थानीय वरिष्ठ पत्रकार सत्य शरण शर्मा ने बताया कि 1934 के भूकंप में मंदिर का हिस्सा क्षतिग्रस्त हो गया था। पहले यह मंदिर बहुत छोटा था बाद में ग्रामीणों के सहयोग से स्वतंत्रता सेनानी चौधरी रामप्रसाद शर्मा ने मंदिर का जीर्णोद्धार कराया।
          हालांकि, आज भी इस पुण्यार्क सूर्य मंदिर की पौराणिकता अक्षुण्ण है। छठ के अवसर पर यहां बड़ी संख्या में लोग पूजा अर्चना के लिए आते हैं। जो भी भक्त यहाँ जिस कामना के साथ आते हैं वो पूरा हो जाता है। आज भी गर्भ गृह में निर्मित अष्टदल सूर्य यंत्र जो कि पहले हवन कुंड था, उसके पिंड पर हाथ रखने से ताप का अनुभव होता है। छठ के अवसर पर यहां कई कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।
बाढ़ से कृष्णदेव पंडित की रिपोर्ट 

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