पटना: राष्ट्रीय लोक मोर्चा (RLM) में अंदरूनी कलह का संकेत मिल रहा है। उपेंद्र कुशवाहा के दिल्ली आवास पर आयोजित लिट्टी-चोखा भोज में पार्टी के तीन विधायक — माधव आनंद, रामेश्वर महतो और आलोक सिंह — शामिल नहीं हुए। जानकारी के अनुसार, ये विधायक दिल्ली में तो मौजूद थे, लेकिन भोज में शामिल होने की बजाय उन्होंने बीजेपी के नए कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन नबीन से मिलने का रास्ता अपनाया। यह कदम पार्टी के अंदर मंत्री पद को लेकर नाराजगी की ओर इशारा करता है। दरअसल, माधव आनंद मंत्री बनने की दौड़ में आगे थे, लेकिन उपेंद्र कुशवाहा ने चुनाव के बाद अपने बेटे दीपक प्रकाश को मंत्री पद दिला दिया। इसके साथ ही कुशवाहा ने अपनी पत्नी को सासाराम से विधायक बनवाया, जबकि खुद पहले से ही राज्यसभा सांसद हैं। इस फैसले से पार्टी कार्यकर्ताओं और कुछ विधायकों में नाराजगी देखने को मिली है। रालोमो के विधायक रामेश्वर महतो ने हाल ही में सोशल मीडिया पर बिना नाम लिए परिवारवाद और नेतृत्व की आलोचना की थी।
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उन्होंने लिखा था कि राजनीति में सफलता केवल भाषणों से नहीं, बल्कि सच्ची नीयत और दृढ़ नीति से मिलती है। जब नेतृत्व की नीयत धुंधली हो और नीतियां स्वार्थ की दिशा में मुड़ जाएं, तो जनता को भ्रमित नहीं रखा जा सकता। मधुबनी से रालोमो के टिकट पर विजयी हुए माधव आनंद ने भी अपनी नाराजगी व्यक्त की थी। 3 दिसंबर को मीडिया से बातचीत में उन्होंने कहा था, “मेरी व्यक्तिगत इच्छा है कि मैं मंत्री बनूं। मंत्री बनने की हर काबिलियत मुझमें है। मैं अर्थशास्त्री हूं और 55 देशों की यात्रा कर चुका हूं। उम्मीद है कि भविष्य में मुझे कैबिनेट में मौका मिलेगा।” पार्टी ने डैमेज कंट्रोल के लिए माधव आनंद को विधायक दल का नेता बनाया है, लेकिन यह कदम पार्टी में पहले से चली आ रही नाराजगी को पूरी तरह कम नहीं कर पाया है। विश्लेषकों का कहना है कि उपेंद्र कुशवाहा के फैसलों और परिवारवाद की वजह से पार्टी में आगे भी अंदरूनी तनाव बना रह सकता है।
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