2025 में होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव से पहले बिहार की सियासत में जमकर उथल-पुथल देखने के लिए मिल रही है. तमाम राजनीतिक पार्टियों की ओर से तैयारी की जा रही है और तरह-तरह की रणनीतियां बनाई जा रही है. ऐसे में हम बात करेंगे पूर्व केंद्रीय मंत्री व आरएलजेपी के अध्यक्ष पशुपति कुमार पारस की, जिन्हें एक समय में एनडीए में जो तवज्जो दिया जाता था वह अब नहीं मिल पा रहा. एनडीए के घटक दलों ने भी उन्हें साइडलाइन कर दिया. जिसका नतीजा यह देखने के लिए मिला कि, पशुपति पारस ने एनडीए से नाराज होकर अपने नेताओं की बड़ी बैठक बुलाई.
बैठक को संबोधित करते हुए पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष व पूर्व केंद्रीय मंत्री पशुपति कुमार पारस ने कहा कि, बैठक को हम लोगों ने पार्टी के भविष्य की रणनीति एवं पार्टी के संगठन को सशक्त करने केलिए मुख्य रूप से बुलायी है. साथ ही यह भी कहा कि, हमारी पार्टी सभी 243 सीटों पर संगठन को मजबूत करने की तैयारी कर रही है. राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी राज्य में हर राजनीतिक स्थिति और चुनौती का डटकर सामना करेगी.
कुछ साल पहले की बात करें तो, 2021 में जब चाचा पशुपति पारस ने बगावत की तो उन्हें पद और प्रतिष्ठा दोनों से सम्मानित किया गया. पारस को मोदी कैबिनेट में रामविलास ओहदे का मंत्री बनाया गया. पारस की सुरक्षा बढ़ाई गई, लेकिन अब न पारस के पास पद है और न ही प्रतिष्ठा. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि कभी मोदी-नीतीश के पास रहे पशुपति एकदम से साइड लाइन क्यों हो गए ? क्या चिराग पासवान ही असल वजह हैं या मामला कुछ और है... बता दें कि, पशुपति पारस के साथ इस तरह के बर्ताव के लिए 3 वजहें निकलकर सामने आई है...
1. सीट बंटवारे में जिद पर अड़े रहना
2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने पशुपति पारस और चिराग पासवान के बीच समझौते की कवायद शुरू की. बीजेपी का मानना था कि पासवान के जो वोटबैंक है, वो मजबूती से चिराग के साथ इंटैक्ट है. ऐसे में चिराग को नकार पाना सियासी तौर पर नासमझी भरा फैसला होगा. कहा जाता है कि बीजेपी ने इसके लिए कई तरह की कवायद की, लेकिन पशुपति पारस राजी नहीं हुए. पारस हाजीपुर सीट पर अड़ गए, जिसे चिराग लेना चाहते थे. आखिर में बीजेपी ने पारस को छोड़कर चिराग से समझौता कर लिया. समझौते में चिराग पासवान को मनपसंद की 5 लोकसभा सीटें दी गई. चिराग 2024 के चुनाव में इन सभी सीटों पर जीत हासिल करने में सफल रहे.
2. आरजेडी से भी समझौता न करना
बीजेपी से गठबंधन टूटने के बाद पशुपति पारस ने आरजेडी से गठबंधन करने की पहल की. कहा जाता है कि लालू यादव उन्हें अपने सिंबल पर लड़ाना चाहते थे. लालू का कहना था कि पशुपति पारस के पास रामविलास पासवान का कोई मजबूत जनाधार नहीं है और न ही पारस की पार्टी के सिंबल को लोग जानते हैं. लालू के ऑफर को पशुपति पारस स्वीकार नहीं कर पाए. रोचक बात है कि इसी बीच पारस के एक सांसद वीणा देवी चिराग की तरफ शिफ्ट हो गईं, जिससे उनकी मोल-भाव करने की स्थिति और कमजोर हो गई. आखिर में पशुपति पारस को इंडिया गठबंधन से भी सीटें नहीं मिल पाई.
3. आखिर में चुनाव न लड़ने का फैसला
इंडिया और एनडीए से ठुकराए जाने के बाद पशुपति पारस ने चुनाव नहीं लड़ने का फैसला कर लिया. सियासी जानकारों का कहना है कि यह एक सियासी तौर पर एक नेता के लिए यह एक सुसाइड की तरह का फैसला है. पशुपति के चुनाव न लड़ने से इन अटकलों को और ज्यादा बल मिला, जिसमें उनके पास जनाधार न होने की बात कही जा रही थी. चुनाव न लड़ने का फैसला कर पशुपति पारस ने एनडीए को समर्थन दे दिया. हालांकि, चिराग के साथ मजबूती से मैदान में उतरी एनडीए ने पशुपति को भाव देना बंद कर दिया.
खैर, पशुपति कुमार पारस के पास अभी खेल करने के लिए विधानसभा 2025 का चुनाव है. पारस ने हाल ही में घोषणा करते हुए कहा था कि अगर उन्हें एनडीए में सम्मान नहीं मिलता है तो 2025 के चुनाव में वे अकेले 243 सीटों पर मैदान में उतरेंगे. बिहार में पासवान समुदाय की आबादी करीब 5 प्रतिशत है. जाति का दलित बहुल 40-50 सीटों पर सीधा असर है. पारस अगर यहां कुछ कर पाए तो खेल हो सकता है. क्या कुछ आने वाले दिनों में गतिविधियां होती है, वह तो देखने वाली बात होगी.