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पूर्णिया के रामनगर में खुले में शौच के खिलाफ युवक-युवतियों का अनोखा सत्याग्रह..

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DESK :- खुले में शौच से मुक्ति के लिए केंद्र की मोदी सरकार और बिहार की नीतीश सरकार ने कई कदम उठाए हैं जिसका असर भी कई इलाकों में दिख रहा है, लेकिन अभी भी कई ग्रामीण सुंदरवर्ती इलाकों में  यह योजना कागजों पर ज्यादा और धरातल पर कम दिख रही है. ऐसे में सीमांचल के पूर्णिया जिले के रामनगर गांव में एक विशेष सत्याग्रह चल रहा है, जिसमें युवक युवतियों और अन्य लोग सुबह-सुबह ही सड़क पर आ जाते हैं और शौच के लिए बाहर निकलने वाले लोगों को रोकते टोकते और जागरूक करते हैं.

इस गांव के प्रसिद्ध किसान हिमकर मिश्र ने खुले में शौच जाने की गंदी आदत छोड़ने के लिए स्थानीय महिलाओं और ग्रामीणों को हर सुबह शौच के वक्त के आसपास मानव श्रृंखला बनाने की पहल शुरु की है।यह क्रम और काम अभी लगातार जारी रखा जायेगा जबतक जवाबदेहों का ध्यानाकर्षण इस पर न हो जाय।लोगों से यह आग्रह सच का है इसलिए यह असली सत्याग्रह है और गाँधीजी के सपनों की बात और स्वच्छता की बात है। हिमकर मिश्र उर्फ भैयाजी और उनके ग्रामीण महिला पुरुषों की इस मानव श्रृंखला लगातार लगने-लगाने की पहलपूर्वक किया जा रहे सत्याग्रह को हर तरह से उचित ठहराना आज ग्रामीण भारत के विकास की हकीकत में सबसे जरुरी समर्थन के रुप मे सामने है।

  ग्रामीण शुचिता के प्रयोजन से किये जा रहे इस सामाजिक सामुदायिक आग्रह से यह शोध यह बोध अवश्य होना चाहिए कि आज की तारीख में भी खुले में महिलाओं के शौच जाने की असली वज़हें आखिर क्या क्या हैं और उसका उचित निवारण कैसे कैसे किया जाना सम्भव है ?

 हिमकर मिश्रा और ग्रामीणों की इस पहल को समर्थन भी मिल रहा है. स्थानीय पत्रकार रहे राजेंद्र पाठक ने प्रसिद्ध उपन्यास राग दरबारी की चर्चा करते हुए हिमाचल मिश्रा के पहल की तारीफ की है. उन्होंने सोशल मीडिया के जरिए लिख कि राग दरबारी एक प्रसिद्ध उपन्यास है ग्राम्य जीवन पर। श्रीलाल शुक्ल अपने इस लोकप्रिय गल्प के आरम्भ में ही मुख्य पात्र के शहर से गांव पहुंचने के क्रम में कहलवाते हैं...गांव आने ही वाला था कि ट्रक की रोशनी में कुछ गठरियाँ या बोरियां सड़क के दोनों किनारों पर दिखने लगीं, ट्रक कुछ और करीब हुआ तो देखा ये गठरियाँ हिल डुल रहीं हैं एक दूसरे के अनुसार।

   यह वर्णन है गांव के बाहर की सड़क के दोनों किनारों पर खुले में सामूहिक शौच करनेवाली महिला मंडली की, अब जबकि शौचालयों के लिए सरकार ने काफी कुछ आवंटन किया है काम किये हैं बावजूद उसका फलाफल हर गांव के बाहर की सड़क को देखकर लगाया जा सकता है। खुले में शौच का कारण हर घर शौचालय नही है या फिर कुछ और और भी वजहें..?जो हो इन वजहों का हटना जरुरी है। इन वजहों पर वाजिब सामाजिक चिंता,प्रेमपूर्वक प्रतिकार,महिला-जागरुकता,जन अपील,और जवाबदेहों का ध्यानाकर्षण अति आवश्यक है।

    अब यह समझने समझाने की ज्यादा जरूरत नही कि किसी गांव के प्रवेशमार्ग का बदबूदार होना गंदा और मलयुक्त होना उस गांव के लिए कितने हर्ज की बात है।

   

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