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सुरक्षा चूक पर संसद में हंगामा, अब तक 141 सांसद निलंबित, सांसदों के निलंबन का 1989 का रिकॉर्ड टूटा

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संसद के शीतकालीन सत्र के 11वें दिन (18 दिसंबर, 2023) सोमवार को लोकसभा और राज्यसभा से कुल 78 सांसदों को निलंबित कर दिया गया. इन निलंबित सांसदों में कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी, तृणमल कांग्रेस के सौगत राय, डीएमके के टीआर बालू, दयानिधि मारन समेत लोकसभा के कुल 33 सांसद हैं. वहीं राज्यसभा से जयराम रमेश, प्रमोद तिवारी, केसी वेणुगोपाल, इमरान प्रतापगढ़ी, रणदीप सिंह सुरजेवाला, मोहम्मद नदीमुल हक़ समेत 45 सांसद शामिल हैं. जिन सांसदों को निलंबित किया गया है वो 13 दिसंबर को संसद में हुई सुरक्षा में चूक के मसले पर दोनों सदनों में हंगामे के बीच केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के बयान की मांग कर रहे थे.

2001 के संसद हमले की बरसी के दिन यानी बीती 13 दिसंबर को दो शख़्स ने लोकसभा के अंदर और दो ने बाहर प्रदर्शन किया था. उसके बाद से विपक्ष लगातार सुरक्षा में हुई उस चूक को लेकर सरकार से जवाब मांग रही है लेकिन सोमवार से पहले 14 दिसंबर को लोकसभा से कुल 13 सांसद निलंबित किए गए थे. तब राज्यसभा से टीएमसी सांसद डेरेक ओ ब्रायन को निलंबित किया गया था. 

और आज यानि 19 दिसंबर को भी विपक्षी सांसदों के निलंबन के मुद्दे पर संसद के दोनों सदनों में हंगामा हुआ. विपक्ष के 49 और सांसद पूरे सत्र के लिए सस्पेंड कर दिए गए हैं. अबतक इस सत्र के लिए विपक्ष के 141 सांसदों को सस्पेंड किया जा चुका है. मंगलवार को लोकसभा के 41 सांसदों को और राज्यसभा के 8 सदस्यों को सस्पेंड किया गया. सोमवार को लोकसभा के 43 सदस्यों को सस्पेंड किया गया थाय मंगलवार को सस्पेंड होने वाले सांसदों में मनीष तिवारी, शशि थरूर, सुप्रिया सुले, डिंपल यादव, कार्ति चिदंबरम, माला रॉय, दानिश अली जैसे सांसद हैं. हंगामे की वजह से लोकसभा की कार्यवाही 2 बजे तक के लिए स्थगित कर दी गई.

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने सांसदों के निलंबन पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए इसे लोकतंत्र पर हमला बताया है. उन्होंने कहा, "सबसे पहले घुसपैठियों ने संसद पर हमला किया. अब मोदी सरकार संसद और लोकतंत्र पर हमला कर रही है.

"निरंकुश मोदी सरकार 47 सासंदों को निलंबित करके सभी लोकतांत्रिक मानदंडों को कूड़ेदान में फेंक रही है." वे बोले, "विपक्ष-रहित संसद के साथ, मोदी सरकार अब किसी भी असमहति को कुचल सकती है."

वहीं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी ने कहा है कि बीजेपी के पास सदन चलाने का नैतिक अधिकार नहीं है. वे बोलीं, "अगर वो (बीजेपी) सभी सांसदों को निलंबित कर देंगे तो सांसद अपनी आवाज़ कैसे उठाएंगे? वो तीन महत्वपूर्ण विधेयक पास कर रहे हैं. लोकतंत्र में एक व्यवस्था होती है. लोगों की आवाज़ को दबा दिया गया है. विपक्ष को पूरी तरह निलंबित करने के बाद उन्हें सदन चलाने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है."

लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने संसद की सुरक्षा में चूक के मामले पर कहा कि ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस घटना को लेकर राजनीति हो रही है. उन्होंने कहा, "उच्चस्तरीय जांच के लिए समिति बनाई गई है और जांच जारी है. पहले भी जब इस तरह की घटनाएं हुई तो लोकसभा अध्यक्ष के ज़रिए ही उनकी जांच प्रक्रिया आगे बढ़ी."

साथ ही विपक्ष को लेकर वे बोले, "सदन में नारेबाज़ी करना, तख़्तियां लाना, विरोध करते हुए वेल में आ जाना ठीक नहीं है. जनता भी ऐसे आचरण को पंसद नहीं करती. सदन में लोकतांत्रिक व्यवस्था के तहत ही चर्चा होनी चाहिए. लोकसभा से जिन सांसदों को निलंबित किया गया है उनका सुरक्षा में चूक के मामले से संबंध नहीं है."

उधर केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि वो (निलंबित सांसद) नहीं चाहते कि सदन ठीक से चले. ये उनकी सोची समझी रणनीति है. गोयल ने कहा, "राज्यसभा से 34 सांसदों को निलंबित किया गया है. 11 सांसदों का मामला प्रिवलेज कमेटी को भेजा गया है. 

हालांकि ये संस्पेंशन चौंकाने वाली बात है. ये बहुत ही दुर्भाग्यशाली है. संसद में हल्ला-गुल्ला होता रहता है लेकिन आज जिस विषय पर हुआ वो अहम हैं. संसद की सिक्यूरिटी का उल्लंघन एक बहुत बड़ा मुद्दा है. अगर विपक्ष के सांसद ये मुद्दा नहीं उठाते हैं तो उनके संसद में रहने का क्या अर्थ है? उनको जनता से भेजा ही है ये मुद्दा उठान के लिए." सांसदों को निलंबन करना सही विकल्प नहीं है और उनकी बात सुननी चाहिए थी.

जानकारों का कहना है कि अगर सांसदों का व्यवहार बिघ्न डालने वाला था भी तो भी ये मुद्दा ऐसा था कि सरकार को कड़वा घूंट पीकर रह जाना चाहिए था. उनकी बात सुननी चाहिए थी और चाहते तो कुछ घंटों के लिए संस्पेंड भी कर देते. जब 1989 में बोफ़ोर्स का मुद्दा उठा था तो विपक्ष के सांसदों ने इस्तीफ़ा दे दिया था. लेकिन ये तो उलटा है, इन्हें सदन से निकाला गया है.

गौरतलब है कि लोकसभा और राज्यसभा के 46-46 सांसद कल निलंबित किए गए थे. वहीं आज लोकसभा के 49 सांसद पूरे सत्र के लिए निलंबित हो गए हैं. इसी के साथ सांसदों के निलंबन के सारे रिकार्ड टूट गए हैं, क्योंकि इससे पहले 1989 में एक दिन में 63 सांसदों को निलंबित किया गया था लेकिन यहां सोमवार को एक अकेले दिन 92 सांसदों को सदन से बाहर कर दिया गया. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या विपक्ष इस वाकये से आक्रोशित हो कर 1989 के इतिहास को दोहराएगा?

दरअसल, विपक्षी सांसद संसद सुरक्षा चूक मामले पर सदन में पीएम मोदी की मौजूदगी में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से बयान की मांग कर रहे हैं. साथ ही विपक्षी सांसद इस मामले पर सदन में चर्चा और आरोपियों के लिए पास की सुविधा प्रदान करने वाले बीजेपी सांसद प्रताप सिम्हा के खिलाफ कार्रवाई की मांग कर रहे हैं. वहीं, सत्तापक्ष का कहना है कि विपक्ष संसद की कार्यवाही रोक समय बर्बाद कर रहा. संसद की कार्यवाई में बाधा उत्पन्न करने वाले सांसदों के खिलाफ स्पीकर ने निलंबन का कदम उठाया है. यह पहली बार है जब दो दिन के भीतर 141 सांसदों को सस्पेंड किया गया है.

मोदी सरकार बनाम मनमोहन

नरेंद्र मोदी सरकार में अलग-अलग समय पर लोकसभा और राज्यसभा स्पीकर ने कुल मिलाकर 26 बार सांसदों पर निलंबन की कार्रवाई की है. मोदी सरकार में कुल 282 सांसदों को निलंबित किया गया, जिसमें 94 राज्यसभा सदस्य और 188 लोकसभा सदस्य शामिल थे. वहीं, मनमोहन सिंह की अगुवाई वाली यूपीए कार्यकाल में 2004 से लेकर 2014 तक 43 सांसद निलंबित किए गए थे, जिसमें 7 राज्यसभा सदस्य और 36 लोकसभा सदस्य थे. इस तरह मनमोहन सरकार की तुलना में मोदी सरकार में कई गुना ज्यादा सांसदों का निलंबन हुआ है. मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में सांसदों के निलंबन का आकड़ा ज्यादा रहा है.

पहली बार इतनी संख्या में निलंबन

संसद में एक दिन में इतने सांसदों का निलंबन पहली बार हुआ है. संसद के इस शीतकालीन सत्र में सोमवार और मंगलवार को मिलाकर कुल 141 सांसदों को सस्पेंड किया गया है. इससे पहले पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च की रिपोर्ट के अनुसार 1989 में 63 सांसदों को निलंबित कर दिया गया था. इस तरह 1989 में एक दिन में सस्पेंड होने वाले सांसदों की संख्या का रिकॉर्ड टूट गया है. संसद की सुरक्षा चूक मामले में विपक्ष मांग कर रहा था कि केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह बयान दें और चर्चा करें. इसी बात को लेकर विपक्ष और सत्तापक्ष में गतिरोध बना बरकरार है.

1989 में क्यों सांसद निलंबित हुए थे?

साल 1989 में प्रधानमंत्री राजीव गांधी थे, उनके कार्यकाल में एक दिन 63 सांसदों को निलंबित किया गया था. पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या की जांच के लिए बनी जस्टिस ठक्कर आयोग की रिपोर्ट को 15 मार्च 1989 में संसद में पेश किया था. विपक्ष राजीव सरकार को बोफोर्स मुद्दे पर घेर रहा था और हंगामा कर रहा था. ऐसे में 63 सांसदों को निलंबित कर दिया गया, जो अब तक का लोकसभा में सांसदों के निलंबन का एक रिकॉर्ड है, यह रिकॉर्ड शीतकालीन सत्र के 18 दिसंबर 2023 को 78 सांसदों के निलंबन के साथ टूट गया. हालांकि, अब और उस समय के निलंबन में मुख्य अंतर यह है कि इन सांसदों को हफ्ते के बाकी बचे दिनों के लिए निलंबित किया गया था, जो कि तीन दिन था. जबकि इस बार, सासंदों को सदन के बाकी सत्र के लिए ही निलंबित कर दिया गया है. हालांकि. उस समय सांसदों द्वारा अध्यक्ष से माफी मांगने के एक दिन बाद निलंबन रद्द कर दिया गया था.

34 साल पुराना इतिहास दोहराया जाएगा?

मोदी सरकार और विपक्ष के बीच जारी गतिरोध के चलते संसद के दोनों सदनों के 141 सांसदों के निलंबन को विपक्ष बड़ा मुद्दा बनाने में जुटा है. यह निलंबन ऐसे समय हुआ है, जब विपक्षी दलों वाले INDIA गठबंधन की बैठक हो रही है. बैठक में सांसदों के निलंबन के मुद्दे पर चर्चा हो सकती है, जिसमें कोई बड़ा फैसला विपक्ष ले सकता है. 1989 में राजीव गांधी की 400 से ज्यादा सांसदों की प्रचंड बहुमत की सरकार थी, विपक्ष के 63 सांसदों को सदन से सस्पेंड कर दिया गया था. इसके बाद विपक्ष बोफोर्स मुद्दे पर घेरते हुए विपक्षी दलों ने सांसदों ने लोकसभा से जिस तरह सामूहिक इस्तीफा दिया था. 1989 जैसा ही कदम विपक्ष इस बार भी उठाएगा.

जेडीयू नेता केसी त्यागी ने एक अखबार को दिए इंटरव्यू में कहा कि अगर सहमति बनी तो लोकसभा से सामूहिक इस्तीफा जैसा कदम भी उठाया जा सकता है. त्यागी कहते हैं, हालांकि अभी इस मुद्दे पर विचार नहीं हुआ है, लेकिन जिस तरह सरकार विपक्ष के नेताओं और सांसदों को निशाना बना रही है, उसका जवाब देना होगा. राजीव गांधी सरकार ने तत्कालीन विपक्ष को संसद में अपनी आवाज नहीं उठाने दी थी, तब पूरे विपक्ष ने लोकसभा से सामूहिक इस्तीफा दिया था और उसके बाद 1989 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को हार मिली थी. ऐसे में विपक्ष में सहमति बनती है तो फिर से इतिहास दोहाराया जा सकता है.

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