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अजब- गजब : जब सड़क पर ही किसान चलाने लगे हल, और महिलाएं रोपने लगी धान..

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Gaya - केंद्र की मोदी सरकार और बिहार के नीतिश सरकार अक्सर विभिन्न मंचों से दावा करती है कि वह चकाचक सड़कों का निर्माण कर रही है पर बिहार के गया में कई ऐसी सड़के हैं, जो काफी जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है और इस सड़क से सफर करना खतरे को दावत देना होता है. यही वजह है कि स्थानीय लोगों ने  इन सड़कों पर हल चलाकर और धान की रोपनी कर विरोध जताया है.एक दशक से अधिक समय से तकरीबन 18 से 20 किलोमीटर लंबी सड़क की मरम्मती नहीं हुई है.

 हल चलाया फिर महिलाओं ने धान रोपी

बिहार के गया के मोहनपुर प्रखंड अंतर्गत अमकोला गांव में अजब नजारा देखने को मिला. यहां ग्रामीण पुरुषों ने पहले हल चलाया. इसके बाद ग्रामीण महिलाओं ने धान की रोपनी शुरू कर दी. सड़क के बड़े-बड़े गड्ढो में धान की रोपनी महिलाएं कर रही थी. महिलाओं का कहना था  कि यह सड़क नहीं है  खेत है, इसलिए वे लोग इसमें धान की रोपनी कर रही है. 

20 किलोमीटर की सड़क एनएच से जोड़ती है

मोहनपुर प्रखंड मुख्यालय से शुरू हुई यह सड़क अमकोला समेत दर्जन भर गांवों को जोड़ते हुए 20 किलोमीटर तक लंबी है. यह सड़क नेशनल हाईवे 2 को भी जोङती है, लेकिन पिछले एक दशक से भी अधिक समय से इस सड़क की ओर किसी ने पलट कर नहीं देखा. यह काफी जर्जर स्थिति में आ चुकी है. आरडब्ल्यूडी की योजना से यह सड़क 2011-12 में बनी थी. 12 साल बीत चुके, लेकिन इस सड़क का निर्माण के बाद से इसकी मरम्मती एक बार भी नहीं हुई. नतीजतन अब इस सड़क में पैदल चलना भी दूूभर है. सैकड़ो गड्ढे इस सड़क की दुर्दशा को बताते हैं.

20 हजार से अधिक की आबादी प्रभावित

सड़क की इस स्थिति से 20 हजार से अधिक की आबादी प्रभावित है. इस सड़क पर वाहनों का परिचालन बेहद कम होता है. मुख्य सड़क होने के बावजूद भी वाहन लेकर यहां कोई नहीं आता. यहां के लोगों का कहना है कि इस रोड में सिर्फ ट्रैक्टर या बैलगाड़ी ही चल सकते है. चार पहिया और दुपहिया वाहनों को चलाना काफी मुश्किल है, देखते देखते पलटी खा जाता है.

एंबुलेंस का मुंह तक नहीं देखा

पिछले एक दशक से ज्यादा समय से यह स्थिति बनी हुई है. यहां के लोगों की मानें, तो उनकी पीढ़ी ने एंबुलेंस नहीं देखी है. यहां एंबुलेंस आती ही नहीं. अधिकारियों की गाड़ी भी नहीं आती. प्रशासन के अफसर भी अपवाद स्वरूप ही पहुंचते हैं. यहां की स्थानीय विधायक को कई बार इस सड़क के बारे में कहा गया, लेकिन कुछ नहीं किया. वहीं, केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी सांसद के चुनाव में वोट मांगने आए थे, तब वादा किया था, कि जीतते ही इस सड़क को बनवा देंगे, लेकिन वे भी भूल गए. पिछले 12 सालों से ग्रामीण फजीहत झेल रहे हैं, लेकिन कोई टोह लेने वाला कोई नहीं है. 

हो जाती है मौत, खटिया बनता है सहारा

ग्रामीण बताते हैं, कि सड़क की दुर्दशा होने से यहां लोगों की मौतें आए दिन हो जाती है. समय पर सही इलाज नहीं मिलता है, तो मौत का कारण बन जाती है. यहां लोग किसी मरीज को ले जाने के लिए खटिया का प्रयोग करते हैं. कुछ लोग ट्रैक्टर का प्रयोग करते हैं, क्योंकि इस रोड में ट्रैक्टर ही चल सकता है. ग्रामीणों का कहना है, कि हजारों की आबादी इससे प्रभावित है  लेकिन किसी ने इस इस समस्या को दूर करना जरूरी नहीं समझा. 20 किलोमीटर लंबी सड़क को देखकर समझ जा सकता है, कि हम लोग किस तरह की परेशानियों में जी रहे हैं. पता ही नहीं चलता है, कि सड़क में गड्ढा या गड्ढे में सड़क.

 ग्रामीण जता रहे हैं विरोध

इसे लेकर ग्रामीणों में काफी आक्रोश है और इसी आक्रोश को लेकर लोगों ने विरोध का अनोखा तरीका अपनाया. ग्रामीण पुरुषों ने जहां हल बैल चलाए, इसके बाद ग्रामीण महिलाओं ने सड़क पर बने बड़े-बड़े गडढ़े में धान की रोकने शुरू कर दिया. महिला रेखा देवी, गुड़िया देवी का कहना है, कि यह सड़क नहीं खेत है. इसलिए इसमें वे लोग धान की रोपनी कर रहे हैं. हम लोग विरोध जता रहे हैं, कि कोई देखने वाला नहीं है, ऐसे में जल्द से जल्द सड़क का निर्माण हो.

विधायक से लेकर केंद्रीय मंत्री तक से शिकायत

वही, इस संबंध में मुखिया गिरिजा देवी के प्रतिनिधि संजय कुमार ने बताया कि केंद्रीय मंत्री से लेकर स्थानीय विधायक किसी ने कुछ नहीं किया. दर्जन बार इस सड़क की मरम्मती को लेकर गुहार लगा चुके हैं, लेकिन कोई कुछ नहीं करता. सरकार जहां ध्यान नहीं देती है, तो प्रतिनिधि भी गंभीर नहीं है. यही वजह है, कि हमारे हिस्से में ऐसी सड़क हैं, जहां 10 किलोमीटर की यात्रा करने में डेढ़ घंटे लग जाते हैं. हमारे यहां शादियां में भी दिक्कत होती है. किसी सज्जन कुटुम्ब को ढूंढना काफी मुश्किल होता है, क्योंकि वे सीधे कह देते हैं, कि आपके यहां सड़क सही नहीं है. इसी को लेकर हम लोगों ने आज यह तरीका अपनाया और सड़क पर बने गड्ढे में हल बैल चलवा कर विरोध जताया. वहीं, ग्रामीण महिलाओं ने धान की रोपनी कर आक्रोश जताया है. 

 गया से मनीष की रिपोर्ट 

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