7 नवंबर 2023.....बिहार विधानसभा में जाति आधारित आर्थिक सर्वे की रिपोर्ट सदन के पटल पर पेश कर दी गई. इस रिपोर्ट में एक चौंकाने वाला खुलासा हुआ. जिन सवर्ण जातियों को अब तक आर्थिक रूप से संपन्न बताया जाता रहा था, वही जातियां सवर्णों में सबसे गरीब पाई गईं हैं. ये हम नहीं बल्कि नीतीश सरकार की जाति आधारित आर्थिक सर्वे की रिपोर्ट कह रही है. इस लिस्ट में भूमिहार, ब्राह्मण, राजपूत, कायस्थ, मुसलमानों में सवर्ण शेख, सैयद और पठान के बारे में भी बताया गया है.
आइए विस्तार से समझते हैं नीतीश सरकार के जाति आधारित आर्थिक सर्वे की रिपोर्ट को...
बिहार सरकार की रिपोर्ट के मुताबिक बिहार के सवर्णों में भूमिहार जाति के लोग सबसे ज्यादा गरीब हैं. जबकि अब तक कहा जाता था कि राज्य में भूमिहार जाति के लोग ही सबसे संपन्न हैं. नीतीश सरकार की ही रिपोर्ट के अनुसार सूबे में 27.58 फीसदी भूमिहार गरीबी के शिकार हैं. इनके कुल परिवारों की तादाद 8,35,447 है जिसमें 2,21,211 परिवार गरीब हैं. यही नहीं आगे की रिपोर्ट तो और भी चौंकाने वाली है. सवर्णों में गरीबी के मामले में दूसरे नंबर पर ब्राह्रण हैं, इनकी जाति के 25.32 फीसदी ब्राह्मण गरीब हैं. प्रदेश में कुल 10,76,563 ब्राह्मण परिवार हैं और इनमें से 2,72,576 परिवार गरीब हैं. दरअसल यह आंकड़ा चौंकाने वाला है क्योंकि बिहार में भूमिहारों को ताकतवर जाति में शुमार किया जाता है.
यही नहीं, सवर्णों में गरीबी के मामले में तीसरे नंबर पर राजपूत हैं. इनकी भी 24.89 फीसदी आबादी गरीबी में जी रही है. नीतीश सरकार की रिपोर्ट के मुताबिक राज्य में राजपूतों के 9,53,447 परिवार हैं. इनमें से 2,37,412 परिवार गुरबत में जी रहे हैं. जबकि सरकारी रिपोर्ट में सवर्णों की चौथी जाति कायस्थों को संपन्न बताया गया है. इस रिपोर्ट में कायस्थों के कुल 1,70, 985 परिवार हैं और इनमें से 23,639 परिवार गरीब हैं.
इस रिपोर्ट में बताया गया है कि प्रभुत्व वाली जातियों की बड़ी आबादी गरीबी रेखा से नीचे जीवन गुजार रही है. रिपोर्ट के मुताबिक सवर्णों में सबसे ज्यादा गरीबों की संख्या भूमिहार बिरादरी में है, जहां 27.58 फीसदी लोग गरीब हैं. इसके बाद सामान्य वर्ग में शेख का नंबर आता है. शेख जाति के कुल 25.84 प्रतिशत परिवार गरीब हैं जिसकी कुल संख्या 2 लाख 68 हजार 398 है. ब्राह्मण जाति में कुल 2 लाख 72 हजार 576 परिवार गरीब हैं जबकि राजपूत जाति में कुल 2 लाख 37 हजार 412 परिवार गरीब हैं. सवर्णों में सबसे अमीर जाति कायस्थ है. कायस्थ जाति के सिर्फ 13.83 प्रतिशत परिवार गरीब हैं.
पिछड़े वर्ग में यादव सबसे गरीब जाति है. यादव जाति के कुल परिवारों में से 35.87 परिवार गरीब हैं जिसकी कुल परिवारों की संख्या 13 लाख 83 हजार 962 है. इसके बाद कुशवाहा का नंबर आता है. कुशवाहा जाति के कुल 34.32 प्रतिशत परिवार गरीब हैं. इन परिवारों की कुल संख्या 4 लाख 6 हजार 207 है.
इसके अलावा पिछड़ों की बात करें तो 35 फीसदी की संख्या के साथ यादव बिरादरी में गरीबों का बड़ा आंकड़ा है. सरकार द्वारा जारी रिपोर्ट के मुताबिक, सबसे अधिक गरीब परिवार अनुसूचित जाति में हैं. अनुसूचित जाति में 42.93 प्रतिशत परिवार गरीब हैं. इसके बाद अनुसूचित जनजाति में 42.70 प्रतिशत परिवार गरीब हैं. पिछड़े वर्ग में 33.16 प्रतिशत, अत्यंत पिछड़े वर्ग में 33.59 प्रतिशत, सामान्य वर्ग में 25.09 प्रतिशत परिवार गरीब हैं.
कुशवाहा समाज में 34 फीसदी लोग गरीब हैं और कुर्मियों में 29 फीसदी गरीबी रेखा से नीचे हैं. पिछड़ों में सबसे ज्यादा गरीब नाई हैं, जिनकी 38 फीसदी आबादी 6000 रुपये से कम में जीवनयापन कर रही है. रिपोर्ट के मुताबिक अत्यंत पिछड़ा वर्ग में 33.58 फीसदी गरीब परिवार हैं. अनुसूचित जाति में 42.93 फीसदी गरीब परिवार हैं और अनुसूचित जनजाति में 42.70 फीसदी परिवार गरीबी के दलदल में फंसे हैं.
इसके अलावा राज्य में सबसे ज्यादा गरीब मुसहर समुदाय से हैं. इस बिरादरी के 54 फीसदी लोग गरीबी में बसर कर रहे हैं. अब अत्यंत पिछड़ा वर्ग की बात करें तो इसमें सबसे ज्यादा 38 फीसदी नाई गरीब हैं. दूसरे नंबर पर नोनिया हैं, जिनमें 35 फीसदी लोग गरीब हैं. इसके अलावा कहार, धानुक और मल्लाह समुदायों की भी 34 फीसदी आबादी गरीब है. 33 फीसदी कुम्हार, 29.87 फीसदी तेली और 33 फीसदी के करीब कानू भी गरीबी रेखा से नीचे जीवन गुजार रहे हैं.
अब आइए जान लेते हैं कौन बिहार में कितना कमा रहा?
सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक सवर्णों की लगभग 25 प्रतिशत जनसंख्या 6 हजार रुपए प्रतिमाह कमाती है. इसके अलावा 23 प्रतिशत आबादी की मासिक आय 6 हजार से 10 हजार रुपए प्रति महीने के बीच है. 10 हजार से 20 हजार रुपए प्रति महीने कमाने वालों का प्रतिशत 19 है. 16 प्रतिशत परिवार ऐसे हैं जिनकी आय 20 हजार से 50 हजार के बीच है. जबकि 9 प्रतिशत परिवार की आय 50 हजार से अधिक है.
अगर बात पिछड़े वर्ग की करें तो पिछड़े वर्ग के 33 प्रतिशत परिवार ऐसे हैं जिनकी आय प्रति महीने 6 हजार तक है. 29 प्रतिशत परिवार ऐसे हैं जिनकी आय 6 हजार से 10 हजार के बीच है. 18 प्रतिशत परिवार की आय प्रति महीने 10 हजार से 20 हजार के बीच है. 10 प्रतिशत परिवार की मासिक आय 20 हजार से 50 हजार के बीच है जबकि 4 प्रतिशत परिवार ऐसे हैं जिनकी आय 50 हजार से अधिक है.
अत्यंत पिछड़े वर्ग में 33 प्रतिशत आबादी की मासिक आय 6 हजार तक है. 32 प्रतिशत परिवार की मासिक आय 6 से 10 हजार के बीच है. 18 प्रतिशत परिवारों की मासिक आय 10 से 20 हजार की बीच है जबकि 2 प्रतिशत परिवार ऐसे हैं जिनकी मासिक आय 50 हजार से भी अधिक है.
अनुसूचित जाति वर्ग में 42 प्रतिशत परिवारों की आय 6 हजार तक, 29 प्रतिशत परिवारों की आय 6 से 10 हजार, 15 प्रतिशत परिवारों की आय 10 से 20 हजार, 5 प्रतिशत परिवारों की आय 20 से 50 हजार और 1 प्रतिशत परिवार की आय 50 हजार से अधिक है.
अनुसूचित जनजाति वर्ग में 42 प्रतिशत परिवार ऐसे हैं जिनकी आय 6 हजार तक है. 25 प्रतिशत ऐसे हैं जिनकी आय 6 से 10 हजार है. इसके अलावा 16 प्रतिशत 10 से 20 हजार, 8 प्रतिशत 20 से 50 प्रतिशत और 2.53 प्रतिशत 50 हजार से अधिक कमाते हैं.
कौन सरकारी नौकरी में सबसे आगे
जाति के हिसाब से सरकारी नौकरी में सबसे आगे कायस्थ जाति के लोग हैं. 6.68 प्रतिशत कायस्थ जाति के लोग सरकारी सेवा में हैं. इसके बाद भूमिहार का नंबर आता है. 4.9 प्रतिशत भूमिहार सरकारी नौकरी में हैं. राजपूत 3.81 प्रतिशत, ब्राह्मण 3.60 प्रतिशत, कुर्मी 3.11 प्रतिशत, सैयद 2.42 प्रतिशत, कुशवाहा 2.04 प्रतिशत, बनिया 1.96 प्रतिशत, मलिक मुस्लिम 1.39 प्रतिशत और यादव 1.55 प्रतिशत सरकारी सेवा में हैं.
इसके अलावा शिक्षा की अगर बात करें तो बिहार की कुल आबादी के 22.67 प्रतिशत ने 1 से 5 तक की पढ़ाई की है. इसके अलावा 14.33 प्रतिशत लोगों ने कक्षा 6 से 8 तक की शिक्षा ग्रहण की है. 14.71 प्रतिशत आबादी ने कक्षा 9 से लेकर 10 तक की पढ़ाई की है, जबकि 9.19 प्रतिशत लोग 12वीं पास हैं. स्नातक धारकों की कुल संख्या केवल 7 प्रतिशत है.
बता दें कि इस डेटा में बिहार से बाहर रहने वाले 53,72,022 लोगों को भी जोड़ा गया है. जाति जनगणना की आर्थिक और शैक्षिक रिपोर्ट जारी करते वक्त विधानसभा में जमकर हंगामा हुआ. बीजेपी विधायकों ने सरकार के खिलाफ नारे भी लगाएं.
अब किस आधार पर दिया जाएगा आरक्षण?
दरअसल, बिहार सरकार के सर्वे में कुल 63 फीसदी आबादी पिछड़ों और अत्यंत पिछड़ों की है. ऐसे में सर्वे रिपोर्ट में जनरल से लेकर एससी तक सभी जातियों में बड़ी संख्या में गरीब पाए जाने से यह सवाल भी खड़ा हो रहा है कि अब आरक्षण किस आधार पर देने की चर्चा होगी. अब तक सरकार यह कहती रही है कि पिछड़ों को उनकी आबादी के अनुपात में आरक्षण मिले क्योंकि उनमें गरीबों की संख्या अधिक है.
बिहार में सवर्ण 15 फीसदी के करीब हैं. जाति की बात हुई तो जातीय जनगणना का श्रेय लेने की होड़ भी शुरू हुई. जेडी यू, आरजेडी के साथ बीजेपी भी क्रेडिट लेने की दौड़ में शामिल हुई. सवर्णों में भी 25.9 फीसदी परिवार गरीबी रेखा के नीचे हैं. गरीब सवर्णों में भूमिहार पहले और ब्राह्मण दूसरे नंबर पर है.
बिहार में भूमिहार जाति सबसे बड़ी भूस्वामी जाति रही है. प्रदेश में सबसे अधिक दबंग, जमीन-जायदाद, ठेकेदारी आदि का सबसे अधिक इसी जाति के पास है. सामान्य तौर पर सभी को लगता है कि बिहार में भूमिहार सबसे अधिक संपन्न हैं. पर इस रिपोर्ट को सही माने तो सामान्य वर्ग में सबसे खराब स्थिति में भूमिहार ही हैं. और तो और अति पिछड़े वर्ग और भूमिहार तबके के गरीबी रेखा से नीचे के लोगों की तुलना की जाए तो अंतर केवल 6 परसेंट का रह जाता है. यानी कि अति पिछड़े तबके और भूमिहारों में गरीबी करीब-करीब बराबर ही है. यही हाल ब्राह्रमण और राजपूतों का भी है. एक सामान्य परसेप्शन रहा है कि ब्राह्रमणों के पास राजपूतों के मुकाबले जमीन बहुत कम रही है. पर यहां तो दोनों तबकों में गरीबी एक्युरेट बराबर है.