बिहार में जब से जातिगत आधारित गणना की रिपोर्ट आई है, तब से एक नया बखेड़ा शुरू होता नजर आ रहा है. पिछड़ी-अति पिछड़ी जातियां अपने हिस्से की मांग करने लगी है. इस बात की भी मांग शुरू हो गई है कि जिस जाति की जितनी हिस्सेदारी है, उतनी हिस्सेदारी उन्हें राजनीति में भी दी जाए. महागठबंधन के नेता नारा लगा रहे हैं कि 'जिसकी जितनी हिस्सेदारी, उसकी उतनी भागीदारी'. अब नीतीश कैबिनेट में भी हिस्सेदारी की मांग शुरू हो गई. महागठबंधन के अंदर ही हिस्सेदारी की मांग शुरू हो गई है. कांग्रेस पार्टी की ओर से जातिगत जनगणना के आंकड़ों के हिसाब से मंत्रिमंडल में नेताओं को जगह देने की मांग भी शुरू हो गई है.
जिसकी जितनी हिस्सेदारी, उतनी भागीदारी चाहिए
कांग्रेस की तरफ से लगातार मंत्रिमंडल विस्तार की बात कही जा रही है. राहुल गांधी जब विपक्षी गठबंधन की पहली बैठक के दौरान पटना आए थे, तभी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने ये कहा था कि कांग्रेस के दो लोगों को मंत्रिमंडल विस्तार में जगह दी जाएगी. लेकिन अब तक ऐसा नहीं हो सका है. जाति आधारित गणना की रिपोर्ट भी सार्वजनिक कर दी गई है.
अब कांग्रेस के प्रवक्ता असित नाथ तिवारी का कहना है कि जितनी उनकी हिस्सेदारी है, सरकार में उनकी उतनी भागीदारी नहीं है. उन्होंने दावा किया मंत्रिमंडल विस्तार में उनकी दो और दावेदारी बनती है. उनकी पार्टी की तरफ से एक सवर्ण और एक दलित/पिछड़ी जाति से आने वाले कैंडिडेट को मंत्रिमंडल में शामिल किया जाना चाहिए. ताकि जाति आधारित गणना के अनुसार मंत्रिमंडल में भी भागीदारी के अनुसार हिस्सेदारी हो सके.
आंकड़ों में जाति के आधार पर नीतीश कैबिनेट
नीतीश कैबिनेट में कुल 31 मंत्री हैं. कैबिनेट में जातिगत आधार पर कुर्मी समाज की भागीदारी 6.4% है लेकिन आबादी 2.8 फीसदी है. इस तरह कैबिनेट में कोईरी समाज की हिस्सेदारी 6.4% हैं, जाति आधारित गणना के अनुसार 4.2 फीसदी हैं. ऐसे में इन दोनों जातियों की हिस्सेदारी भागीदारी से ज्यादा है. जबकि सवर्ण जातियों का प्रतिनिधित्व आबादी के हिसाब से कम है.
बिहार में यादवों की आबादी 14.27 फीसदी है. लेकिन मंत्रिमंडल में मौजूदगी 26 फीसदी है. वहीं, मुस्लिमों की बात करें तो उनकी संख्या लगभग आबादी के अनुसार ही है. सबसे कम संख्या अति पिछड़ा वर्ग की है. उनकी आबादी बिहार में 36 फीसद है. लेकिन मंत्रिमंडल में जगह 12 फीसदी मिली है.