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पटना के PMCH पर भरोसा काहे नइखे! प्राइवेट हॉस्पिटल को तरजीह दे गए बिहार के ब्यूरोक्रेट्स

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बिहार के लोगों के लिए पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल आखिरी उम्मीद की तरह है. मगर जो पूरे सिस्टम को चलाते हैं, उनके लिए नहीं। पिछले 10 दिनों में उनकी उम्मीद बनकर उभरा है पटना का पारस अस्पताल. वैसे, कौन कहां इलाज कराएगा और कहां अपने बच्चे को पढ़ाएगा, ये उसकी मर्जी हो सकती है. मगर जब सिस्टम चलाने वालों को ही अपने बनाए सिस्टम पर भरोसा न हो तो फिर संदेह होने लगता है. शक होने लगता है कि क्या वाकई जिस सिस्टम की उंगली पकड़ कर चल रहे हैं, वो भरोसेमंद है?

सरकार नहीं, प्राइवेट पर भरोसा!

बिहार के मुख्य सचिव आमिर सुबहानी की तबीयत बिगड़ी तो सीएम नीतीश ने अस्पताल पहुंचकर उनका हालचाल जाना. आमिर सुबहानी को पारस आस्पताल में भर्ती कराया गया था. 15 सितंबर को मुख्यमंत्री ने वरीय अधिकारियों के साथ मुख्य सचिव के स्वास्थ्य की जानकारी ली. बताया गया कि आमिर सुबहानी को न्यूरो से जुड़ी कोई दिक्कत थी. पारस अस्पताल पहुंचे सीएम ने डॉक्टरों से भी उनके स्वास्थ्य के बारे में जानकारी ली. आमिर सुबहानी ने ट्रीटमेंट के लिए PMCH, NMCH या IGIMS को नहीं चुना बल्कि एक प्राइवेट अस्पताल को चुना.

डेंगू होने पर DM ने प्राइवेट को चुना

इससे पहले पटना के डीएम चंद्रशेखर सिंह की तबियत खराब हुई थी। जांच में पता चला की उनको डेंगू है। इलाज के लिए उन्होंने एक प्राइवेट अस्पताल को चुना. वैसे बीमारी तो कोई भी खतरनाक होती है, मगर डेंगू में केयरिंग की ज्यादा जरूरत पड़ती है. उन्होंने इलाज के लिए बिहार के नामी पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल (PMCH) को नहीं चुना। बल्कि एक प्राइवेट अस्पताल पारस को तरजीह दी। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार उनको देखने के लिए 4 सितंबर को अस्पताल गए. चंद्रशेखर सिंह का हालचाल जाना. वैसे, जिस जिले का जिलाधिकारी चंद्रशेखर हैं, उसी जिले में PMCH भी आता है। जहां उनका रेसीडेंस है, उससे ज्यादा दूर भी नहीं है. बिहार के लोगों की आस्था आज भी PMCH पर है, मगर चंद्रशेखर सिंह ने PMCH के बजाए पारस को चुना.

खुद के बनाए सिस्टम पर भरोसा नहीं?

पटना में PMCH के अलावा NMCH, IGIMS और सदर अस्पताल के साथ कई छोटे बड़े अस्पताल हैं. इन सारी अस्पतालों में डेंगू के इलाज के इंतजाम इन्हीं अफसरों ने किया है. चूंकि आमिर सुबहानी पूरे बिहार के सबसे बड़े अधिकारी हैं तो दूसरे चंद्रशेखर पटना जिले का सबसे बड़ा अफसर. इनके एक इशारे पर क्या कुछ हो सकता है, अंदाजा लगाना मुश्किल हैं. सवाल ये नहीं है कि कौन अफसर का कहां इलाज करा रहा है और किस अफसर का बच्चा किस प्राइवेट स्कूल में पढ़ रहा है. बात मानसिकता की है. जब खुद के बनाए सिस्टम पर खुद ही भरोसा न हो तो फिर ऐसा सिस्टम बनाते ही क्यों हैं?

सुविधा तो ठीक है, मगर सिस्टम...!

दरअसल, जो रूलर क्लास (शासक वर्ग) है, उसको सरकार से सिर्फ सैलरी चाहिए, न कि सुविधा. उसको लगता है कि हम अपनी सुविधा, अपने हिसाब से परचेज कर सकते हैं तो क्यों न उसे अवेल करें. आमिर सुबहानी और चंद्रशेखर की बात नहीं है. ये तो हालिया उदाहरण हैं. इससे पहले भी कई ऐसे नेता, मंत्री, विधायक, सांसदों के उदाहरण भरे पड़े हैं, जो सरकारी सुविधा तो लेते हैं, मगर सरकारी सिस्टम पर भरोसा नहीं करते. अगर सीएम नीतीश आमिर सुबहानी और चंद्रशेखर से मिलने न जाते तो शायद ही किसी को पता चलता.

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