बिहार स्वास्थ्य सेवा संघ ने आह्वान पर 21 नवंबर को हड़ताल किया था. इससे ओपीडी सेवा बाधित हो गई थी. इस कारण सैकड़ों मरीजों को वापस लौटना पड़ा था. बिहार सरकार ने इस मुद्दे को गंभीरता से लिया है. स्वास्थ्य विभाग अपर मुख्य सचिव प्रत्यय अमृत ने कड़ा एक्शन लेते हुए सभी मेडिकल कॉलेज के प्रिसिंपल और अस्पतालों के सिविल सर्जन को लेटर भेजा है. इसमें कहा गया है कि हड़ताल करने वाले डॉक्टरों के लिए नो वर्क-नो पे पॉलिसी लागू कर दी गई है. जिस दिन वह हड़ताल पर रहेंगे, उस दिन उन्हें सैलरी नहीं मिलेगी.
मंत्री तेजस्वी यादव के स्वास्थ्य विभाग की ओर से कहा गया है कि बिहार स्वास्थ्य सेवा संघ ने एक दिन के लिए कार्य बहिष्कार की घोषणा की थी. ऐसा निर्णय लेने से पहले संघ ने सरकार को समुचित रूप से इसे संज्ञान में नहीं लाया है. इसलिए यह निर्णय पूरी तरह से अवैध है. इसलिए 21 नवंबर को कार्य बहिष्कार करने वाले डॉक्टर (बिहार सरकार के अंतर्गत कार्यरत) का वेतन अवरुद्ध किया जाता है.
जान जोखिम में डालकर डॉक्टर काम नहीं कर सकते हैं
इधर, बिहार सरकार ने इस लेटर का बिहार स्वास्थ्य सेवा संघ ने विरोध किया है. संघ के अपर महासचिव डॉ. हसरत अब्बास ने कहा कि जान जोखिम में डालकर डॉक्टर काम नहीं कर सकते हैं. पूर्णिया में डॉक्टर पर जानलेवा हमला हुआ. उनकी हालत गंभीर है. इस घटना के बाद से डॉक्टर खुद को असुरक्षित महसूस करने लगे है. ऐसे में बिहार सरकार ने एक दिन का वेतन काटने का निर्णय लिया है, यह गलत है. बता दें कि 21 नवंबर को डॉक्टर पर हुए जानलेवा हमले के विरोध का पूरे बिहार के डॉक्टरों ने विरोध किया था. सभी सरकार अस्पताल में ओपीडी सेवा बाधित हो गई थी और प्राइवेट अस्पताल भी बंद थे. इससे मरीजों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ा था.