मौका था बिहार के पहले सीएम श्री कृष्ण सिन्हा की जयंती का......कांग्रेस के पार्टी मुख्यालय सदाकत आश्रम में 26 अक्टूबर को कार्यक्रम आयोजित किया गया था. इसमें प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह ने लालू यादव को मुख्य अतिथि के तौर पर आमंत्रित किया गया था. जब लालू यादव कार्यक्रम में शामिल होने पहुंचे तो बीजेपी के एमएलसी रहे रजनीश कुमार के ससुर रतन सिंह ने लालू यादव को सोने का मुकुट पहनाकर राजनीतिक गलियारों में खलबली मचा दी. आरजेडी के अध्यक्ष और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव को बीजेपी नेता के ससुर ने गले लगाया और सोने का मुकुट पहनाकर उनका स्वागत किया.
बता दें कि रतन सिंह बीजेपी के राष्ट्रीय पदाधिकारी रजनीश कुमार सिंह के ससुर हैं, जिनका पार्टी में राज्य स्तर पर काफी प्रभाव है. रजनीश ने अपने दो कार्यकाल के लिए विधान परिषद की बेगुसराय-खगड़िया स्थानीय प्राधिकरण सीट पर कब्जा किया था.
2001 से लालू यादव मुझे जानते हैं- रतन सिंह
लालू यादव को सोने के मुकुट से सम्मानित करने के बारे में पूछे जाने पर रतन सिंह ने बताया है कि राजद के साथ उनका जुड़ाव काफी पुराना है. उन्होंने कहा, 'लालूजी मुझे 2001 से जानते हैं. देश में पिछड़े, महादलित और वंचित लोगों को सशक्त बनाने और उनका स्तर उठाने में उनका योगदान बहुत बड़ा है. उनके साथ मेरा जुड़ाव पुराना है.'
कौन हैं रतन सिंह?
रतन सिंह लगभग 20 साल पहले जिला परिषद चुनाव से राजनीति में आए थे. तब वो आरजेडी से ही जुड़े थे. जिला पार्षद का चुनाव जीतने के बाद रतन सिंह ने चेयरमैन का चुनाव लड़ा. इस चुनाव में रतन सिंह ने अपने प्रतिद्वंदी सीपीआई कैंडिडेट के खिलाफ आरजेडी और बीजेपी से जुड़े जिला पार्षदों को अपने पक्ष में कर लिया. इसके चलते चैयरमैन बन गए. बाद में पत्नी भी डिस्ट्रिक्ट बोर्ड चेयरमैन बनीं. राजनीति से पहले बाकी बाहुबली नेताओं की तरह उन पर भी कई तरह के केस-मुकदमे हुए और तमाम तरह के आरोप लगे जो कोर्ट में साबित नहीं हो सके.
रतन सिंह को बतौर जिला परिषद अध्यक्ष पूरे जिला में अपना प्रभाव फैलाने का मौका मिला. इसलिए उन्होंने पिछले दो दशक में जिला परिषद की राजनीति नहीं छोड़ी. जब रतन सिंह राजनीति में आए उस समय मंत्री श्रीनारायण यादव आरजेडी के जिला में गार्जियन कहे जाते थे. दूसरी तरफ भोला सिंह थे जो निर्दलीय से शुरू होकर सीपीआई, कांग्रेस, आरजेडी के रास्ते बीजेपी में पहुंच चुके थे. दोनों का समर्थन रतन सिंह को मिला. खिलाफ रह गई सीपीआई लेकिन उसके साथ भी आगे चलकर संबंध सुधर गए.