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MP में यादव मुख्यमंत्री बनाकर BJP ने UP-बिहार को साधा, लोकसभा चुनाव में कितना फिट बैठेगा पासा

मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के आठ दिन बाद बीजेपी ने सीएम के नाम का एलान कर दिया है. सोमवार को भोपाल में पार्टी मुख्यालय में हुई बीजेपी विधायक दल की बैठक में मोहन यादव को मुख्यमंत्री घोषित किया गया. RSS नेता रहे मोहन यादव मध्य प्रदेश प्रदेश के 19वें मुख्यमंत्री होंगे. माना जा रहा है कि केंद्रीय नेतृत्व ने एमपी के साथ-साथ बिहार और यूपी के यादव वोटरों को साधने के लिए ओबीसी वर्ग से आने वाले मोहन यादव को प्रदेश की कमान सौंपने का निर्णय लिया है. 

2024 पर है BJP का फोकस

दरअसल, बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व का पूरा फोकस अगले साल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव पर है. उत्तर भारत के कई राज्यों में जातिगत वोटर अहम भूमिका निभाता है. मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में मिली प्रचंड जीत को बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व लोकसभा चुनाव में भी दोहराना चाहता है. इसलिए पार्टी ने पहले छत्तीसगढ़ के सीएम के नाम को लेकर चौंकाया और फिर मध्य प्रदेश की कमान यादव समाज से आने वाले मोहन यादव को देने का फैसला किया.

यूपी और बिहार में निर्णायक भूमिका निभाता है यादव वोटर

बीजेपी ने मोहन यादव को मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाकर एक साथ कई निशाने साधे हैं. एमपी से सटे यूपी और बिहार में यादव वोटर काफी अहम भूमिका में है. यूपी में अखिलेश यादव की सपा मुख्य विपक्षी दल है तो वहीं बिहार में लालू यादव की पार्टी सत्ता में है. बीजेपी ने मोहन यादव को सीएम बनाकर यादव बहुल उत्तर प्रदेश और बिहार को भी साधा है. यहां यादव समाज के लोग बड़ी संख्या में हैं.

यूपी-बिहार के पास है केंद्र की सत्ता की चाबी

कहा जाता है कि केंद्र की सत्ता का रास्ता यूपी और बिहार से होकर ही गुजरता है. उत्तर प्रदेश में लोकसभा की 80 और बिहार में 40 सीटे हैं. यूपी में लोकसभा की 80 सीटें होने की वजह से केंद्र की सरकार बनाने में प्रदेश की बड़ी भूमिका होती है. यहां ओबीसी वर्ग की जनसंख्या 54 प्रतिशत है. जिसमें 20 प्रतिशत यादव समाज से ताल्लुक रखते हैं.

वहीं, बिहार में 14 प्रतिशत लोग यादव समाज से आते हैं. यहां ओबीसी आबादी 63 प्रतिशत है. यूपी में अखिलेश यादव की पार्टी का यादव समाज से जुड़ाव है, तो बिहार में लालू प्रसाद यादव की पार्टी राजद की सरकार बनती रही है. ऐसे में, मध्य प्रदेश का पड़ोसी राज्य होने के कारण उत्तर प्रदेश में इसका लाभ भाजपा उठाना चाहती है. इसी तरह बिहार की कुल जनसंख्या में 14 प्रतिशत (1.86 करोड़) लोग यादव के समाज के हैं और ओबीसी आबादी 63 प्रतिशत है.

इनके दम पर बिहार में लालू प्रसाद यादव अपनी पार्टी राजद की सरकार बनाते रहे हैं. चूंकि पार्टी अगले वर्ष होने वाले लोकसभा और फिर बिहार में विधानसभा चुनाव में मोहन यादव के माध्यम से यादव मतदाताओं को साधने की कोशिश करेगी.

साल 2024 में होने वाले लोकसभा और बिहार में 2025 में होने वाले विधानसभा चुनाव में यादव वोटर को साधने के लिए बीजेपी ने मध्य प्रदेश में यादव चेहरे को सीएम बनाया है. भाजपा संगठन ने यह संदेश दिया है कि पार्टी ओबीसी वर्ग में भी सभी समाज के लोगों को आगे लाना चाहती है.

बिहार में वर्ष 2025 में विधानसभा चुनाव भी प्रस्तावित हैं. ऐसे में, भाजपा संगठन ने यह संदेश दिया है कि पार्टी ओबीसी वर्ग में भी सभी समाज के लोगों को आगे लाना चाहती है. बता दें के इसके पहले उमा भारती, बाबूलाल गौर, शिवराज सिंह चौहान भी ओबीसी वर्ग से मुख्यमंत्री थे, पर सभी अलग-अलग समाज से थे. अब बाबूलाल गौर के बाद यादव समाज के किसी नेता को इतनी बड़ी जिम्मेदारी मिली है.

विधायक दल की बैठक में क्या हुआ?

बता दें कि सोमवार को जब एमपी में बीजेपी विधायक दल की बैठक शुरू हुई तो कई नामों को लेकर चर्चाएं जोरों पर थी. हालांकि, शिवराज सिंह चौहान ने ओबीसी वर्ग से आने वाले मोहन यादव का नाम विधायक दल के नेता के लिए रखा. वहां मौजूद पार्टी नेताओं ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया. केंद्रीय नेतृत्व के फैसले से वहां मौजूद हर कोई नेता चौंक गया. हालांकि, सभी ने मोहन यादव के नाम के प्रस्ताव का समर्थन किया. इसके पहले एमपी में उमा भारती, बाबूलाल गौर, शिवराज सिंह चौहान भी ओबीसी वर्ग से मुख्यमंत्री थे, लेकिन वह सभी अलग-अलग समाज से थे.

हिंदी प्रदेशों में जातिगत वोटों की भूमिका अहम रहती है. ऐसे में बीजेपी ने मोहन यादव को मध्य प्रदेश की कमान देकर ओबीसी वोटरों को संदेश देना चाह रही है. आंकड़ों में हिंदी प्रदेशों यूपी, मध्य प्रदेश, बिहार, हरियाणा की बात करें तो यहां ओबीसी मतदाता चुनाव की दिशा तय करने में बड़ी भूमिका निभाते हैं. साथ ही बीजेपी ने मोहन यादव के जरिए उत्तर प्रदेश और बिहार में क्रमश: अखिलेश यादव और लालू यादव के वोटर्स में सेंध लगाने की कोशिश की है. उधर, मध्य प्रदेश के लंबे समय तक सीएम रहे शिवराज सिंह चौहान को इस बार यह जिम्मेदारी नहीं दी, लेकिन उन्होंने ओबीसी नेता को ही सीएम बनाया. बता दें कि शिवराज सिंह भी ओबीसी समाज से आते हैं. ऐसे में बीजेपी ने ओबीसी की नाराजगी भी मोल नहीं ली. 

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