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कैंसर विवाद पर आपस में भिड़े कुशवाहा और लालू, कहा - इलाज के नाम पर घूम फिरकर एक परिवार खा रहा छाली

cancer cnflict war between lalu yadav and upendra kushwaha i

बिहार में जातिगत सर्वे के आंकड़े प्रकाशित होने के बाद राज्य में राजनीतिक पारा चढ़ गया है. विपक्षी दल के तरफ से इसको लेकर सवाल तो उठाए ही जा रहे, सबसे बड़ी बात है कि सत्तारूढ़ गठबंधन की सरकार में शामिल नेता भी इसपर निशाना साध रहे हैं. इसी कड़ी में अब बीते शाम लालू यादव ने एक पोस्ट किया जिसमें उन्होंने यह कहा कि कैंसर का इलाज सिर दर्द की दवा लेने से नहीं होगा. अब इसको लेकर उपेंद्र कुशवाहा ने पलटवार किया है.

दरअसल,जातीय जनगणना के पक्ष में बोलते हुए लालू ने सोमवार को सोशल मीडिया पर एक पोस्ट लिखा जहां पर उन्होंने कहा कि- कैंसर का इलाज सर दर्द की दवा खाने से नहीं होगा. जातिगत जनगणना के विरोध में जो लोग हैं वह इंसानियत, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक बराबरी तथा समानुपातिक प्रतिनिधित्व के खिलाफ है. ऐसे लोगों में रत्ती भर भी न्यायिक चरित्र नहीं होता है. किसी भी प्रकार की असमानता और गैर बराबरी के ऐसे समर्थक अन्यायी प्रवृत्ति के होते हैं जो जन्म से लेकर मृत्यु तक केवल और केवल जन्मजात जातीय श्रेष्ठता के आधार और दंभ पर दूसरों का हक खाकर अपनी कथित श्रेष्ठता को बरकरार रखना चाहते हैं.

वहीं, अब इसको लेकर उपेंद्र कुशवाहा ने भी सोशल मीडिया पर ही उन्हें जवाब देते हुए पूछा है कि- श्रीमान लालू जी, हां महोदय, यह सच है कि कैंसर के इलाज के लिए कैंसर की दवा ही चाहिए. लेकिन इसका यह भी अर्थ नहीं है कि इलाज के नाम पर छाली घुम फिर कर आप और आपका परिवार खाए और बाकी लोगों को मठ्ठा भी नसीब न हो. कैंसर के इलाज के लिए प्रदेश की जनता ने आपको भी डॉक्टर की कुर्सी पर बैठाया था. तब आपकी फीस नौकरी के बदले जमीन थी न. कम से कम आप न्यायिक चरित्र की बात मत कीजिए, शोभा नहीं देता है. अगला डॉक्टर भी आपके परिवार से बाहर आपको दिखता ही नहीं है. आपके परिवार से बाहर भी बहुत बड़ी दुनिया है ,सर. पिछड़े /अति पिछड़े/दलितों की.

आपको बतात्ते चलें कि, बिहार सरकार के आंकड़ों के मुताबिक बिहार में कुल आबादी 13 करोड़ से ज्यादा है. इनमें 27% अन्य पिछड़ा वर्ग और 36% अत्यंत पिछड़ा वर्ग है. यानी, ओबीसी की कुल आबादी 63% है. अनुसूचित जाति की आबादी 19% और जनजाति 1.68% है.  सरकार ने 18 फरवरी 2019 और फिर 27 फरवरी 2020 को जातिगत गणना का प्रस्ताव विधानसभा और विधान परिषद से पास करवा लिया था. इसके बाद इस साल जनवरी में जातिगत गणना का काम शुरू हुआ.


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