चंद्रयान-3 का प्रज्ञान रोवर पहली चुनौती से निपटने में सफल रहा. उसके सामने चांद की सतह पर 100mm का क्रेटर (गड्ढा) आया. प्रज्ञान ने बड़ी सावधानी से उसे पार किया और ISRO कंट्रोल रूम में बैठे वैज्ञानिकों ने राहत की सांस ली. अभी प्रज्ञान रोवर को ऐसी कई चुनौतियों से निपटना है. हमारे सहयोगी 'द टाइम्स ऑफ इंडिया' ने चंद्रयान-3 के प्रोजेक्ट डायरेक्टर, पी वीरमुथुवेल से खास बातचीत की. यह चांद पर लैंडर विक्रम की सटीक लैंडिंग और रोवर की तैनाती के बाद उनका पहला डीटेल्ड इंटरव्यू है. वीरमुथुवेल ने टीओआई को बताया कि अभी तक के साइंटिफिक एक्सपेरिमेंट्स से अच्छे नतीजों की उम्मीद का भरोसा बढ़ा है. उन्होंने कहा, 'इसरो के सैकड़ों सहयोगियों के अथक प्रयास के बिना इसमें से कुछ भी संभव नहीं होता. खासतौर से नेविगेशन-गाइडेंस-एंड-कंट्रोल, प्रपल्शन, सेंसर्स और सभी मेनफ्रेम सबसिस्टम्स के सहयोगियों के बिना.' वीरमुथुवेल ने कहा कि प्रज्ञान के मूवमेंट पूरी तरह ऑटोमेटिक नहीं थे. उन्होंने कहा कि उसके सामने कई चुनौतियां हैं जिनमें से हर एक को ग्राउंड टीमों की भागीदारी के साथ दूर करना होगा.
चांद की सतह पर कैसे चलता है चंद्रयान-3 का प्रज्ञान रोवर, पूरा प्रोसेस समझिए
चंद्रयान-3 के प्रोजेक्ट डायरेक्टर ने बताया कि प्रज्ञान को चांद की सतह पर पॉइंट A से B तक मूव कराने में कई स्टेप्स होते हैं.
हर रास्ते की प्लानिंग के लिए, ऑनबोर्ड कैमरा का डेटा बेंगलुरु के ISRO कंट्रोल सेंटर में डाउनलोड किया जाना चाहिए.
इस डेटा से डिजिटल एलिवेशन मॉडल (DEM) बनाया जाता है। फिर ग्राउंड और मैकेनिज्म टीम तय करती है कि कौन सा रास्ता लेना है और रोवर को फॉलो करने के लिए कमांड देता है.
वीरमुथुवेल ने कहा कि रोवर मूवमेंट की कुछ सीमाएं हैं. हर बार नेविगेशन कैमरा जो तस्वीर भेजता है, उनसे अधिकतम पांच मीटर तक का DEM बनाया जा सकता है.
इसका मतलब यह कि जब भी रोवर को चलने का कमांड दिया जाता है, तो वह अधिकतम पांच मीटर की दूरी ही तय कर सकता है.
वीरमुथुवेल ने बताया कि रोवर के सामने तमाम बाधाओं आदि की चुनौतियां हैं. उन्होंने कहा, 'हम पहले क्रेटर को लेकर बहुत चिंतित थे, लेकिन उस बाधा को दूर कर लिया गया है.'
'रोवर के हर मूवमेंट ऑपरेशन के बीच 5 घंटे का टर्नअराउंड टाइम'
इसरो पहले ही कई रोवर मूवमेंट कर चुका है. वीरमुथुवेल ने कहा कि 'यह (प्रज्ञान) किसी बड़े रोवर जैसा नहीं है. सीमित संसाधनों के भीतर, हमने मिनिएचर सिस्टम स्थापित किए हैं जो अत्याधुनिक हैं. लेकिन कुछ सीमाएं हैं जैसे टेलीमेट्री और टेलीकम्युनिकेशंस की 24x7 अनुपलब्धता, सूर्य को लगातार ट्रैक करने की जरूरत और इसलिए, (रोवर के) हर मूवमेंट ऑपरेशन के बीच का समय लगभग 5 घंटे है.'
प्रोजेक्ट डायरेक्टर ने बताया, 'वहां सूरज स्थिर नहीं है. हर दिन 12° का रोटेशन होता है जिसे ध्यान में रखना जरूरी है क्योंकि लैंडर के तीन तरफ सोलर पैनल लगे हैं. रोवर में तैनाती योग्य सोलर पैनल है, जहां एक तरफ पूरी तरह से सोलर सेल हैं और दूसरी तरफ केवल आधी जगह उपलब्ध है.' रोवर से डेटा रेट भी लिमिटेड है क्योंकि यह केवल विक्रम लैंडर से बात कर सकता है. फिर लैंडर से ISRO कंट्रोल रूम डेटा डाउनलोड करता है. इसमें समय लगता है क्योंकि वैज्ञानिक साइंटिफिक डेटा का एनालिसिस करके अगले कदम का फैसला करते हैं.