Desk- खुद को PM मोदी का हनुमान कहने वाले केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान अपने ही केंद्र सरकार के फैसले से नाराज हैं, और विपक्षी नेताओं के सुर में सुर मिला रहे हैं. चिराग पासवान के इस रुख से BJP सकते में है. अब देखना है कि केंद्र की मोदी सरकार चिराग पासवान की आपत्ति के बाद आगे क्या कदम उठाती है.
दरअसल चिराग पासवान केंद्रीय सचिवालय में लेटरल एंट्री के जरिए 45 विशेषज्ञों की नियुक्ति में आरक्षण का प्रावधान नहीं होने से नाराज हैं. इस मुद्दे पर विपक्षी दल केंद्र की मोदी सरकार पर पहले से हमलावर है और केंद्र की भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार पर आरक्षण विरोधी होने का आरोप लगा रही है. इस बीच इस मसले पर केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने लेटरल एंट्री के जरिए सरकारी पदों पर नियुक्तियों के किसी भी कदम की आलोचना करते हुए कहा है कि वह केंद्र के समक्ष यह मुद्दा उठाएंगे.
विपक्षी दलों ने आरोप लगाया है कि लेटरल एंट्री के जरिये लोक सेवकों की भर्ती करने का यह कदम राष्ट्र विरोधी कदम है और इस तरह की कार्रवाई से अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग का आरक्षण खुलेआम छीना जा रहा है. इस मुद्दे पर चिराग पासवान ने कहा कि किसी भी सरकारी नियुक्ति में आरक्षण का प्रावधान होना चाहिए. इसमें कोई किंतु-परंतु नहीं है. निजी क्षेत्र में आरक्षण नहीं है और अगर सरकारी पदों पर भी इसे लागू नहीं किया जाता है.यह जानकारी रविवार को मेरे सामने आई और यह मेरे लिए चिंता का विषय है. सरकार के सदस्य के रूप में उनके पास इस मुद्दे को उठाने का मंच है और वह ऐसा करेंगे.इसके साथ ही चिराग पासवान ने कहा कि जहां तक उनकी पार्टी का सवाल है, वह इस तरह के कदम के बिल्कुल समर्थन में नहीं है.
बताते चलें कि संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) ने शनिवार को 45 पदों के लिए विज्ञापन दिया, जिनमें 10 संयुक्त सचिव और 35 निदेशक/उप सचिव के पद शामिल हैं. इन पदों को अनुबंध के आधार पर लेटरल एंट्री के माध्यम से भरा जाना है.
अनुबंध की वजह से इस भर्ती में आरक्षण के नियम का पालन नहीं किया गया है. विपक्षी दलों के नेता इसे मोदी सरकार के खिलाफ बड़ा मुद्दा बनाने कोशिश कर रहे हैं.
गौरतलब है कि लोकसभा चुनाव 2024 के दौरान भी विपक्षी दलों ने बीजेपी पर संविधान खत्म करने और आरक्षण को खत्म करने का आरोप लगाकर प्रचार किया था और इसका असर चुनाव में दिखा भी था जिसकी वजह से बीजेपी की सीट 2019 की अपेक्षा कम हो गई थी. अब विपक्षी दल अपने आरोप को दोहरा रहे हैं कि भाजपा आरक्षण विरोधी है और लैटरल एंट्री के जरिए एससी,एसटी और ओबीसी का अधिकार खत्म कर रही है. अब देखना है कि केंद्र की मोदी सरकार विपक्षी दलों के साथ ही सहयोगी दलों की तरफ से उठ रहे विरोध के स्वर के बाद क्या कदम उठाती है.