पटना: वर्ष 2005, जब नीतीश कुमार ने पहली बार बिहार की सत्ता संभाली, तब बिहार की बेटियों की साक्षरता दर और स्कूल में दाखिला दर बहुत कम था। सामाजिक, आर्थिक एवं असुरक्षा की भावनाएं मिलकर लड़कियों की शिक्षा और सशक्तिकरण की राह में बड़ी रुकावट बनी हुई थीं। उस समय की सबसे बड़ी चिंता बेटियों की सुरक्षा भी थी। लालू यादव के कार्यकाल में बिहार की पहचान जंगलराज के रूप में होने लगी थी, जहां सड़क से लेकर स्कूल-कॉलेज तक बेटियों के लिए माहौल असुरक्षित था—छेड़छाड़, अपहरण और अपराध की घटनाएं आम थीं। यही वजह थी कि बहुत से परिवार अपनी बेटियों को घर से बाहर पढ़ने या नौकरी करने के लिए कहीं भेजने से हिचकते थे। लेकिन नीतीश कुमार के सत्तासीन होते ही पिछले दो दशकों में हालात बदले। नीतीश सरकार ने न सिर्फ़ शिक्षा, साइकिल और पोशाक जैसी योजनाएँ चलाईं, बल्कि महिला पुलिस भर्ती, विशेष हेल्पलाइन, महिला थाने और तेज़ न्यायिक कार्रवाई जैसे कदम उठाकर समाज में यह भरोसा दिलाया कि बिहार की बेटियाँ अब सुरक्षित हैं और खुलकर सपने देख सकती हैं।
2005 से 2025 तक बेटियों के सशक्तिकरण की यात्रा
नीतीश सरकार ने बेटियों के उत्थान के लिए कई कल्याणकारी योजनाएं चलाईं। जिसमें मुख्यमंत्री बालिका साइकिल योजना (2007), जिसके तहत मिडिल व हाई स्कूल की दूरी तय करने के लिए छात्राओं को साइकिल उपलब्ध कराई गई। मुख्यमंत्री बालिका पोशाक योजना (2011) के तहत छात्राओं को यूनिफॉर्म उपलब्ध कराने के लिए राशि दी गई। पिछले 14 वर्षों में 1.94 करोड़ से अधिक छात्राओं को ₹24 अरब से अधिक की राशि वितरित की गई। मुख्यमंत्री कन्या उत्थान योजना (2018) के अनुसार जन्म से लेकर स्नातक तक बेटियों को वित्तीय सहयोग उपलब्ध कराया जा रहा है। इस योजना का उद्देश्य हर बेटी को पढ़ाई से जोड़ना और कम उम्र में होने वाली विवाह को रोकना था। वहीं जीविका व स्वयं सहायता समूह (SHG) से जुड़ी योजनाओं का विस्तार कर महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में सकारात्मक पहल की गई।
नामांकन बढ़ा, ड्रॉपआउट घटा: बेटियों की शिक्षा का नया अध्याय
नीतीश सरकार की योजनाओं का ही असर है कि 2001 की जनगणना में बिहार में महिला साक्षरता लगभग 33.12% थी। वहीं एक दशक बाद 2011 की जनगणना में यह बढ़कर लगभग 53.33% हो गई। इस अवधि के दौरान महिला साक्षरता दर में लगभग 18.38% की वृद्धि हुई। वहीं कई रिपोर्टों के अनुसार, कक्षा-9 में नामांकन करने वाली लड़कियों की संख्या 2007 में लगभग 1.7 लाख थी, मगर नीतीश सरकार की दूरदर्शी नीतियों और योजनाओं के फलस्वरुप कालान्तर में यह बढ़ कर लगभग 6-7 लाख हो गई।
बिहार बजट में बेटियों के भविष्य में निवेश
महिलाओं के सशक्तिकरण को लेकर नीतीश सरकार की प्राथमिकता बजट में साफ़ झलकती है। वर्ष 2024-25 में महिलाओं के कल्याण पर करीब ₹39,033 करोड़ का प्रावधान किया गया था। अगले ही वर्ष 2025-26 के लिए यह राशि बढ़ाकर ₹48,656 करोड़ कर दी गई। सिर्फ़ इतना ही नहीं, पिछले दो वित्तीय वर्षों (2023-24 और 2024-25) में महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए कुल ₹87,689 करोड़ का आवंटन किया गया। यह आंकड़ा बताता है कि सरकार ने केवल योजनाएं ही नहीं बनाईं, बल्कि उन्हें मजबूत वित्तीय आधार भी दिया।
दो दशकों की इस यात्रा ने साबित कर दिया है कि सही नीतियां और ठोस राजनीतिक इच्छाशक्ति बदलाव ला सकती हैं। नीतीश सरकार की योजनाओं ने न सिर्फ़ बिहार की बेटियों को शिक्षा, सुरक्षा और आत्मनिर्भरता से जोड़ा है, बल्कि समाज में सोच भी बदली है। आज की बेटी साइकिल पर स्कूल जाती है, स्नातक तक पढ़ाई करती है, स्वयं सहायता समूह से जुड़कर परिवार की आय बढ़ाती है और अपने आत्मविश्वास से पूरे बिहार का भविष्य संवार रही है। चुनौतियां अब भी बाकी हैं, लेकिन इस बदले हुए परिदृश्य ने यह भरोसा जगा दिया है कि “सशक्त नारी ही सशक्त बिहार की नींव है।