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वन नेशन वन इलेक्शन पर कांग्रेस को 'झटका', पीएम मोदी के पक्ष में आए कांग्रेसी नेता

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मोदी सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में 'वन नेशन, वन इलेक्शन' पर कोई कमेटी बनाई हैं. कमेटी में कौन-कौन सदस्य होगा इसका नोटीफिकेशन थोड़ी देर में जारी होगा. यह कदम सरकार द्वारा 18 से 22 सितंबर के बीच संसद का विशेष सत्र बुलाए जाने के एक दिन बाद आया है, जिसका एजेंडा गुप्त रखा गया है.

हालांकि अभी से ही देश में एक देश एक चुनाव के मुद्दे पर पार्टियों के बीच में एकरुपता नहीं दिखाई दे रही है. कई पार्टियां इसके खिलाफ में हैं. कांग्रेस इस फैसले के खिलाफ में तो नहीं है, लेकिन इस पर आ रहे बिल की टाइमिंग को लेकर कांग्रेस को आपत्ति है. लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा है कि आखिर एक देश एक चुनाव की सरकार को अचानक जरूरत क्यों पड़ गई. यानि अधीर इसको लेकर सीधे केंद्र सरकार के खिलाफ नहीं हैं. लेकिन छत्तीसगढ़ के कांग्रेस नेता व डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव ने तो सीधा समर्थन कर दिया है.

व्यक्तिगत रूप से समर्थन: सिंहदेव

वन नेशन वन इलेक्शन के मुद्दे पर छत्तीसगढ़ के डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव केंद्र सरकार के समर्थन में खड़े दिख रहे हैं. उनका कहना है कि इस पॉलिसी का व्यक्तिगत तौर पर मैं समर्थन करता हूं और स्वागत भी करता हूं. हालांकि टीएस सिंहदेव का यह भी कहना है कि एक देश एक चुनाव का आइडिया कोई नई बात नहीं है. इस पर पहले से ही चर्चा होती रही है. टीएस सिंहदेव ने व्यक्तिगत तौर पर ही सही, ऐसे वक्त में वन नेशन वन इलेक्शन पॉलिसी पर केंद्र सरकार को समर्थन दिया है, जिस वक्त मुंबई में उनकी पार्टी अन्य 28 पार्टियों के साथ मोदी सरकार को हटाने की जुगत में लगी है.

शुरुआती चार चुनाव साथ हुए हैं

दरअसल, आजादी के बाद से ही देश में वन नेशन-वन इलेक्शन की पॉलिसी लागू थी. राज्यों के साथ ही केंद्र सरकार के लिए चुनाव होते थे. शुरुआत के चार चुनाव ऐसे ही हुए थे. 1952, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ ही हुए. लेकिन 1968 और 1969 में कई विधानसभाओं को समय से पहले ही भंग कर दिया गया. उसके बाद 1970 में लोकसभा भी भंग कर दी गई. इस वजह से एक देश-एक चुनाव की परंपरा टूट गई.

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