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भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने लेनिन की मृत्यु पर मनाया शताब्दी वर्ष

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भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की पटना जिला परिषद द्वारा लेनिन की मृत्यु के शताब्दी वर्ष ( 1924-2024)  के मौके पर ' सामाजिक परिवर्तन में लेनिन का योगदान और आज का महत्व ' विषय पर शिक्षण सत्र का एक दिवसीय आयोजन किया गया। दो सत्रों में विभाजित इस कार्यक्रम में बड़ी संख्या में पटना जिला के विभिन्न अंचलों और प्रखंडों से  किसान, मजदूर, छात्र व युवा संगठनों के प्रतिनिधि शामिल हुए।पहले सत्र में आगत अतिथियों का स्वागत  करते हुए शिक्षा विभाग के संयोजक भोला शर्मा ने कहा " लेनिन के योगदान से हम सभी परिचित हैं। आज से सौ साल पहले का. लेनिन की मृत्यु हुई थी। उसके बाद भी उनकी शिक्षाओं का महत्व आज भी बना हुआ है।"  विषय प्रवेश करते हुए भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के पटना जिला सचिव विश्वजीत कुमार ने कहा " लेनिन का जन्म 1870 में हुआ था। लेनिन के नेतृत्व में रूस की समाजवादी क्रांति संपन्न हुई थी जिसका विश्वव्यापी महत्व है।  लेनिन की किताब ' साम्राज्यवाद पूंजीवाद की उच्चतम अवस्था', 'राज्य और क्रांति', 'क्या करें' बेहद महत्वपूर्ण है। हमारे क्रांतिकारी भगत सिंह फांसी के तख्ते पर जाने के पहले लेनिन की किताब पढ़ रहे थे। जल्लाद ने जब कहा सरदार जी चलिए आपका समय हो गया है ! भगत सिंह ने जवाब दिया  ' ठहरो ! एक क्रांतिकारी दूसरे क्रांतिकारी से मिल रहा है। "मुख्य वक्ता के बतौर बोलते हुए  अनीश अंकुर ने कहा " लेनिन के नेतृत्व में रूस ने मार्क्सवाद को बड़ी कुर्बानी और शहादत के बाद प्राप्त किया था। लेनिन के बड़े भाई अलेकजेंडर उल्यानोव को  रूस के शासक जार के आदेश पर फांसी दे दी गई थी। इन दोनों भाइयों को रूस के साहित्यकार निकोलाई चेरनीशेवस्की के उपन्यास 'क्या करें' की यह पंक्ति शालीन आदमी क्रांतिकारी होता है। लेनिन की पहली लड़ाई अपने भाई के संगठन से ही हुई क्योंकि वे लोग बिना जनता को जागरूक किये हुए व्यक्तिगत आतंक की बदौलत रूस के समस्याओं का निदान चाहते थे। लेनिन ने जितनी भी किताबें लिखी उन सबके पीछे कोई न कोई सैद्धांतिक जरूरत थी। 1905 की क्रांति के असफल होने के बाद उसका गहरा अध्ययन किया और उससे सबका लेकर 1917 की नवंबर क्रांति को संपन्न कर दिया। लेनिन इस कारण क्रांति में सफल हुए क्योंकि उनके अंदर सैद्धांतिक स्पष्टता थी जबकि जर्मनी की पार्टी रूस के मुकाबले बहत बड़ी होती हुई भी सफल नहीं हो पाई।  हमें लेनिन की यह बात याद रखनी चाहिए कि क्रांतिकारी सिद्धांत के बिना क्रांतिकारी व्यवहार नहीं हो सकता है।"दूसरे सत्र में मार्क्सवाद पर बरिष्ठ भाकपा नेता का. जब्बार आलम ने कहा " मार्क्सवाद समझने और देखने की वैज्ञानिक दृष्टि है। विज्ञान का मतलब है कि यह तर्कपरक होता है। मार्क्सवादी दर्शन में पदार्थ प्रमुख माना जाता है और चेतना उसकी प्रभाव माना जाता है। भाववादी दर्शन में जगत को माया कहा जाता है जबकि हमलोग मानते हैं कि इस जगत को जाना जा सकता है। लेनिन का सबसे बड़ा योगदान यह है कि उसने मार्क्सवाद को विकसित किया था और उसके सिद्धांतों को जमीन पर उतारा। मार्क्सवाद मानता है की चेतना का निर्माण पदार्थ से होता है। भाववादी लोग  मानते हैं जगत का निर्माण किसी सृष्टिकर्ता ने किया है। पदार्थ के तीन गुण  होते हैं।  मार्क्स कहा करते थे यह गतिशील, परिवर्तनशील और विकासशील होता है। " सभा में शिक्षाविद अक्षय कुमार, अधिवक्ता लक्ष्मीकांत तिवारी, मदन प्रसाद सिंह, मीर सैफ अली, अर्जुन राम, मोहम्मद कैसर, शविना आदि ने भी संबोधित किया और राज्य सचिव मंडल सदस्य का. रामलला सिंह, एटक बिहार अध्यक्ष गजनफर नवाब, राजू प्रसाद, वशिष्ठ कुमार, सत्येंद्र कुमार, भूषण पांडेय, राजकुमार, जितेंद्र कुमार, मंगल पासवान, देवरत्न प्रसाद, अविशेक कुमार, प्रशांत कुमार सहित एक सौ तीस प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया।

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