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चाचा पशुपति पारस को लेकर चर्चा तेज, सीट को लेकर फंस रहा पेंच

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लोकसभा की तारीखों का ऐलान होने के साथ ही तमाम राजनीतिक दलों के बीच हलचलें तेज हो गई है और सबसे बड़ा मुद्दा सीटों के बंटवारे से जुड़ा हुआ है. दरअसल, वोटिंग को लेकर डेट्स तो फाइनल कर दिए गए हैं लेकिन पार्टियों के बीच सीटों का बंटवारा अब तक नहीं हो पाया है. चाहे इंडिया गठबंधन हो या फिर एनडीए, सीटों के बंटवारे को लेकर चर्चा जोरों पर है. एक तरफ जहां महागठबंधन में कांग्रेस की मांग अधिक है तो वहीं एनडीए में पशुपति कुमार पारस नाराज चल रहे हैं और यहां लड़ाई चाचा-भतीजे के बीच है. बीते दिनों अपने बयानों से चाचा पशुपति पारस ने साफ कर दिया है कि वह समझौता के लिए तैयार नहीं है. हाजीपुर सीट को किसी भी हाल में नहीं छोड़ना चाहते हैं. ऐसे में सवाल है कि अगर पशुपति पारस ने जिद में आकर एनडीए के रास्ता छोड़ दिया तो क्या महागठबंधन के साथ जाएंगे या अकेले ही चुनावी रणक्षेत्र में निकल पड़ेंगे ?

पशुपति पारस को लेकर चर्चा तेज

सूत्रों के हवाले से आई खबर की माने तो, महागठबंधन पशुपति पारस को अपने खेमे में लाने के लिए बेचैन है. यह भी माना जा रहा है कि, उन्हें हाजीपुर सीट भी दे दी जाएगी, लेकिन उनके साथ दो सांसद नवादा के चंदन सिंह और समस्तीपुर लोकसभा से प्रिंस राज पर समझौता नहीं हो पा रहा है. महागठबंधन की ओर से प्रिंस राज पर दाव लगाया भी जा सकता है, लेकिन नवादा पर संशय है. मीडिया में चल रही खबरों के मुताबिक, आरजेडी नवादा सीट को अपने पास रखना चाहती है और इसकी बड़ी वजह यह मानी जा रही है कि नवादा लोकसभा में छह विधानसभा सीटें हैं. 2020 के विधानसभा चुनाव में तीन सीट गोविंदपुर, नवादा और रजौली पर आरजेडी ने कब्जा जमाया था. एक हिसुआ विधानसभा पर कांग्रेस पार्टी जीत चुकी है. एक सीट बीजेपी और एक सीट जेडीयू को मिली थी.

आखिर क्या करेंगे पशुपति पारस ?

इधर, 2019 के चुनाव में चंदन सिंह ने आरजेडी प्रत्याशी विभा देवी को एक लाख 48 हजार वोटों से हराया था. आरजेडी का मानना है कि, इस बार वह नवादा सीट को अपने कब्जे में कर लेगी. ऐसे में पशुपति पारस के लिए असमंजस की स्थिति बनी हुई है क्योंकि एलजेपी के पुराने सहयोगी सूरजभान सिंह रहे हैं. उनके भाई चंदन सिंह नवादा से सांसद हैं. पशुपति पारस सूरजभान सिंह को नाराज नहीं करना चाहते हैं. ऐसे में महागठबंधन अगर तीन सीट देने पर तैयार नहीं होती है तो पारस की पार्टी के नेताओं का दावा है कि वह अकेले चुनाव मैदान में आ सकते हैं. ऐसे में अब सवाल यह उठता है कि अगर पशुपति पारस ने एकला चलो की राह पर चलने का निर्णय लिया तो उनके साथ के चंदन सिंह कितना सहयोग करेंगे ? खैर, सीटों के बंटवारे को लेकर लगातार संशय बरकरार है. माना जा रहा कि, एक से दो दिनों में सब कुछ क्लियर हो जाएगा. 

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