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राष्ट्र निर्माण में डॉ. कलाम के अतुलनीय योगदान को हमेशा स्मरण किया जाएगा : पीएम मोदी

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'सपने वे नहीं होते, जो आपको रात में सोते समय नींद में आए बल्कि सपने वे होते हैं, जो रात में सोने ही न दें.' ऐसी बुलंद सोच रखने वाले 'मिसाइलमैन' अवुल पकिर जैनुलाब्दीन अब्दुल कलाम (एपीजे अब्दुल कलाम) भारतीय मिसाइल प्रोग्राम के जनक कहे जाते हैं. जब कलाम ने देश के सर्वोच्च पद यानी 11वें राष्ट्रपति की शपथ ली थी तो देश के हर वैज्ञानिक का सर फख्र से ऊंचा हो गया था. वे 'मिसाइलमैन' और 'जनता के राष्ट्रपति' के रूप में लोकप्रिय हुए.

भारत के पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम की आज (15 अक्टूबर) को जयंती है. पीएम मोदी समेत कई बड़े नेताओं ने डॉक्टर कलाम को याद करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की. पीएम मोदी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर लिखा, "अपने विनम्र व्यवहार और विशिष्ट वैज्ञानिक प्रतिभा को लेकर जन-जन के चहेते रहे पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम जी को उनकी जयंती पर कोटि-कोटि नमन. राष्ट्र निर्माण में उनके अतुलनीय योगदान को सदैव श्रद्धा पूर्वक स्मरण किया जाएगा."

वहीं, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने उन्हें याद करते हुए X पर लिखा,"ज्ञान और विज्ञान के अद्भुत संयोजन से डॉ एपीजे अब्दुल कलाम जी ने देश की सुरक्षा को अभेद्य बनाने में अहम योगदान दिया. संघर्ष से शीर्ष तक का उनका सफर न केवल देश बल्कि सम्पूर्ण मानव जगत के लिए एक विरासत है."

अमित शाह ने आगे लिखा," ‘मिसाइल मैन’ डॉ कलाम का जीवन देश के युवाओं को नई सोच व समर्पण के साथ राष्ट्र सेवा की प्रेरणा देता रहेगा। पूर्व राष्ट्रपति भारत रत्न डॉ एपीजे अब्दुल कलाम जी की जयंती पर उन्हें नमन."

आइए एक नजर डालते हैं उनके जीवन सफर पर......

आसमान की ऊंचाइयों को छूने के लिए हवाई जहाज और अन्य साधनों से भी जरूरी चीज है हौसला. हौसला आपकी सोच को वह उड़ान देता है जिसका शिखर कामयाबी की चोटी पर है. कामयाबी के शिखर तक पहुंचने की आपने यूं तो हजारों कहानियां पढ़ी होंगी लेकिन ऐसी ही एक जीती-जागती कहानी है पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम की.

भारत के पूर्व राष्ट्रपति, जिन्हें दुनिया 'मिसाइलमैन' के नाम से भी जानती है, का जन्म 15 अक्टूबर 1931 को रामेश्वरम् (तमिलनाडु) में हुआ था. एपीजे अब्दुल कलाम का पूरा नाम डॉक्टर अबुल पाकिर जैनुलाब्दीन अब्दुल कलाम था.

कलाम अपने परिवार में काफी लाडले थे, लेकिन उनका परिवार छोटी-बड़ी मुश्किलों से हमेशा ही जूझता रहता था. उन्हें बचपन में ही अपनी जिम्मेदारियों का एहसास हो गया था. उस वक्त उनके घर में बिजली नहीं हुआ करती थी और वे केरोसिन तेल का दीपक जलाकर पढ़ाई किया करते थे.

अब्दुल कलाम मदरसे में पढ़ने के बाद सुबह रामेश्वरम् के रेलवे स्टेशन और बस अड्डे पर जाकर समाचार पत्र एकत्र करते थे. अब्दुल कलाम अखबार लेने के बाद रामेश्वरम् शहर की सड़कों पर दौड़-दौड़कर सबसे पहले उसका वितरण करते थे. बचपन में ही आत्मनिर्भर बनने की तरफ उनका यह पहला कदम रहा.

 कलाम जब मात्र 19 वर्ष के थे, तब द्वितीय विश्वयुद्ध की विभीषिका को भी उन्होंने महसूस किया. युद्ध की आग रामेश्वरम् के द्वार तक पहुंच गई थी. इन परिस्थितियों में भोजन सहित सभी आवश्यक वस्तुओं का अभाव हो गया था. कलाम एयरोस्पेस टेक्नोलॉजी में आए, तो इसके पीछे उनके 5वीं कक्षा के अध्यापक सुब्रह्मण्यम अय्यर की प्रेरणा जरूर थी.

 अध्यापक की बातों ने उन्हें जीवन के लिए एक मंजिल और उद्देश्य भी प्रदान किया. अभियांत्रिकी की शिक्षा के लिए उन्होंने मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में दाखिला लिया. वहां इन्होंने एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग में अध्ययन किया. 

 1962 में वे 'भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन' में आए. डॉक्टर अब्दुल कलाम को प्रोजेक्ट डायरेक्टर के रूप में भारत का पहला स्वदेशी उपग्रह (एसएलवी तृतीय) प्रक्षेपास्त्र बनाने का श्रेय हासिल है. अब्दुल कलाम भारत के मिसाइल कार्यक्रम के जनक माने जाते हैं.

 उन्होंने 20 साल तक भारतीय अंतरिक्ष शोध संगठन यानी इसरो में काम किया और करीब इतने ही साल तक रक्षा शोध और विकास संगठन यानी डीआरडीओ में भी. वे 10 साल तक डीआरडीओ के अध्यक्ष रहे. साथ ही उन्होंने रक्षामंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार की भूमिका भी निभाई. इन्होंने अग्नि एवं पृथ्वी जैसी मिसाइल्स को स्वदेशी तकनीक से बनाया था.

 अब आइए एक नजर डालते हैं उनके राष्ट्रपति बनने के सफर पर.....


18 जुलाई 2002 को कलाम भारत के 11वें राष्ट्रपति निर्वाचित हुए थे. इन्हें भारतीय जनता पार्टी समर्थित एनडीए घटक दलों ने अपना उम्मीदवार बनाया था जिसका वामदलों के अलावा समस्त दलों ने समर्थन किया था. 25 जुलाई 2002 को उन्होंने संसद भवन के अशोक कक्ष में राष्ट्रपति पद की शपथ ली थी. 25 जुलाई 2007 को उनका कार्यकाल समाप्त हो गया था.

 ऐसे भारतीय मिसाइल प्रोग्राम के जनक और जनता के राष्ट्रपति के रूप में लोकप्रिय हुए पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम का 27 जुलाई 2015 को शिलांग के आईआईएम में एक व्याख्यान देने के दौरान गिरने के बाद निधन हो गया था. उनके योगदान को आज भी देश के सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिक और तकनीकी विकासों में योगदान के रूप में याद किया जाता है.

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