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नियोजित शिक्षकों ने मांग को लेकर सरकार और केके पाठक को दिया चैलेंज, रखी अपनी बात

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बिहार में नियोजित शिक्षकों से जुड़ा विवाद तो जैसे थमने का नाम ही नहीं ले रहा है. शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव केके पाठक और सरकार के रवैये से नियोजित शिक्षक काफी ज्यादा आहत हैं. करीब डेढ़ दशक से ज्यादा समय से शिक्षण कार्य में लगे नियोजित शिक्षकों की नाराजगी सिर्फ इसलिए नहीं है कि उन्हें राज्यकर्मी का दर्जा पाने के लिए सक्षमता परीक्षा जैसे मानदंड से गुजरना पड़ रहा है. बल्कि उनकी नाराजगी शिक्षा विभाग के एसीएस केके पाठक के फरमान भी तुगलकी लग रहे हैं. कभी स्कूलों के समय को लेकर तो कभी छुट्टियों में कटौती को लेकर शिक्षक परेशान रह रहे हैं. राज्य सरकार ने उन्हें राज्यकर्मी का दर्जा देने की बात कह कर वाहवाही तो खूब लूटी, लेकिन शिक्षकों को सरकार की मंशा में ही खोट नजर आती है. जिसके बाद अब नियोजित शिक्षकों ने सरकार और केके पाठक की 'अक्षम' साबित करने की चुनौती देते हुए अपनी बात रखी हैबता दें कि, शिक्षक संघों के ग्रुप में कई तरह की मांगों से जुड़ा मैसेज सोशल मीडिया में लगातार तैर रहा है.

दक्षता और सक्षमता पर उठ रहे सवाल

ऐसे में सवाल है कि आखिर सक्षमता परीक्षा की जरुरत ही क्यों है ? इसे लेकर नियोजित शिक्षकों का कहना है कि, उन्हीं के कारण बीते 20 साल से लगातार बिहार की शिक्षा का स्तर ऊंचा होता रहा है. इसके बावजूद आश्चर्य होता है कि उनकी दक्षता और सक्षमता पर सवाल उठाए जा रहे हैं. उनसे सरकारी शिक्षक का ओहदा पाने के लिए अब सक्षमता परीक्षा पास करने को बाध्य किया जा रहा है. उन्हें इस पर भी आश्चर्य है कि नियोजित शिक्षकों ने पहले ही दक्षता परीक्षा और पात्रता परीक्षा पास कर ली है, फिर उनकी सक्षमता परीक्षा क्यों ली जा रही है.

सरकार की मंशा में दिख रही खोट

वहीं, सरकार की ओर से इस रवैये को लेकर शिक्षकों को बिहार सरकार की मंशा में ही खोट नजर आती है. दरअसल, वे इसमें मुख्यमंत्री और उनके मंत्रिमंडल की कोई अघोषित चाल नजर आती है. शिक्षकों का सरकार से सवाल है कि जब स्कूल सरकारी तो कुछ शिक्षक ही सरकारी क्यों होंगे ? सरकारी शिक्षकों से कहीं अधिक योग्यताधारी या समान योग्यताधारी नियोजित शिक्षक भी हैं तो उन्हें सरकारी क्यों नहीं सरकार मानती है ? क्यों उनके लिए सक्षमता परीक्षा पास करने की गैर जरूरी शर्त थोपी गई है. इतना ही नहीं, सरकार को जब जहां जरूरत पड़ती है या चुनाव आयोग को इलेक्शन के कामों में लगाना पड़ता है तो नियोजित शिक्षक सरकारी शिक्षकों की ही तरह काम करते हैं. पर, पढ़ाई के लिए नियोजित शिक्षकों को अब सक्षमता परीक्षा से गुजरने को कहा जा रहा है. अगर सच में नियोजित शिक्षक अक्षम हैं तो सरकार इनसे बच्चों को पढ़ाने का काम सौंप कर क्या गुनाह नहीं कर रही ? इस गुनाह के लिए तो शिक्षा विभाग, सरकार और सीएम पर क्या मुकदमा नहीं चलना चाहिए ?

क्या है नियोजित शिक्षकों का तर्क

इधर, नियोजित शिक्षकों के तर्क पर थोड़ा गौर करें तो उसमें भी कहीं ना कहीं दम जरुर ही दिखता है. उनके तर्क को खारिज नहीं किया जा सकता. उनका कहना है कि, शिक्षा मंत्री ने आश्वासन दिया नियोजित शिक्षक अब सरकारी बन जाएंगे. लेकिन, इसके लिए उन्हें सक्षमता परीक्षा तो देनी ही होगी. शिक्षकों का कहना है कि अभी तक वे मैंगो माने आम पढ़ाते रहे हैं तो राज्य कर्मी बनने के बाद क्या मैंगो माने केला पढ़ाने लगेंगे ? आदमी वही है, पढ़ाई भी वही यानी समान काम, पर दर्जा के मामले में तिरस्कार. इस बीच शिक्षकों को यह संदेह है कि, सक्षमता परीक्षा के बहाने सरकार उन्हें नौकरी से हटाना चाहती है. प्रमोशन का हक, ऐच्छिक स्थानांतरण का हक और समान काम के लिए समान वेतन का शिक्षकों का हक सरकार मारना चाहती है. लगातार 20 वर्षों तक उनके शिक्षण अभ्यास और अनुभव का कोई मोल नहीं है ?

अभी तो और बढेगी टेंशन

एक और संदेह नियोजित शिक्षकों को यह भी है कि, सरकार शिक्षा के निजीकरण की ओर बढ़ रही है. स्कूलों के पास सरकारी जमीन होते हुए भी उन्हें भूमिहीन बता कर पहले किसी अन्य विद्यालय में शिफ्ट करना और फिर मर्ज यानि कि उसका विलय कर उसे समाप्त कर देने की कोशिश हो रहा है. खैर, नियोजित शिक्षकों के मांग को लेकर कई तरह के पहलू हैं. एक तरफ जहां तमाम विरोध-प्रदर्शन के बावजूद उन्हें सक्षमता परीक्षा देना पड़ा तो वहीं दूसरी ओर नियोजित शिक्षक की परेशानी अभी और भी ज्यादा बढने की बात कही जा रही है. दरअसल, नियोजित शिक्षकों को परीक्षा देने के बाद कई सारे जांच स्तरों से गुजरना है, जिसके कारण उनकी टेंशन बढी हुई है. इधर, नियोजित शिक्षक अपनी मांग पर भी लगातार बने हुए हैं.   

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