एक दिन पहले ही पीएम नरेंद्र मोदी ने अयोध्या में राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा करके हिंदू राजनीति से सर्वसमाज को संदेश दिया था. इसके अगले ही दिन मंगलवार को मोदी सरकार ने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को मरणोपरांत भारत रत्न देने का ऐलान कर दिया. माना जा रहा है कि इस कदम के साथ ही मोदी ने नीतीश और लालू दोनों के खेमों में खलबली मचा दी है. अभी तक पिछड़ा का दांव खेलते हुए यह दोनों नेता बिहार में अपनी सियासी रोटियां सेंक रहे थे. जाति जनगणना के बाद नीतीश कुमार ने पिछड़े समाज की अगुवाई का झंडा बुलंद करने की कवायद शुरू की थी. इससे महागठबंधन को भी एक बड़ी आस बंध रही थी. लेकिन मंगलवार देर शाम केंद्र सरकार ने एक ऐलान ने महागठबंधन की आस पर अड़ंगा लगा दिया.
प्राण प्रतिष्ठा से क्या संदेश
सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा की. इसके बाद पूरे देश में जिस तरह का माहौल है उससे संकेत मिलता है कि 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले पीएम मोदी ने एक बड़ा दांव चल दिया है. मंदिर में जिस तरह से मंगलवार को रामलला के दर्शन के लिए देश के लगभग हर कोने से लोग पहुंचे थे. आलम यह था कि भीड़ को संभालने में पुलिस और प्रशासन के पसीने छूट गए. भीड़ का यह आलम देखकर समझ में आ रहा है कि पीएम मोदी ने देश के लोगों की नब्ज पकड़ ली है. राम मंदिर के दम पर हिंदू जनमानस के साथ-साथ आम भारतीय को भी एक अपने पक्ष में करने वाला एक अहम कदम उठाया है.
नीतीश-लालू पर कैसे करेगा काम
प्राण प्रतिष्ठा के अगले ही दिन मोदी सरकार ने एक और बड़ा दांव खेला. बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और जननायक कहे जाने वाले कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न दिए जाने का ऐलान किया गया. इसे इसलिए बड़ा दांव कहा जा रहा है कि क्योंकि इससे नीतीश और लालू दोनों की रणनीति पर असर पड़ेगा. गौरतलब है कि बिहार में जाति जनगणना के बाद महागठबंधन यहां पर पिछड़ों का अगुआ बन रहा था. नीतीश कुमार और लालू की सियासत भी इसी वोटबैंक पर आधारित रही है. नीतीश सरकार ने कर्पूरी ठाकुर के नाम को भुनाने के लिए उनके गांव में तीन दिवसीय समारोह भी आयोजित किया है. 24 जनवरी को कर्पूरी ठाकुर की जयंती पर वह यहां रैली को संबोधित भी करने वाले हैं. लेकिन एक दिन पहले ही मोदी सरकार ने इस ऐलान के साथ नीतीश के मंसूबे पर पानी फेर दिया है.
ऐसे किया था इतिहास
गौरतलब है कि आरजेडी चीफ लालू प्रसाद और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार दोनों ही कर्पूरी ठाकुर की लीगेसी को फॉलो करते हैं. 90 के दौर से ही दोनों इसी फॉर्मूले को अपनाते हुए बैकवर्ड क्लास के वोटों पर पकड़ बनाए हुए हैं. असल में बैकवर्ड क्लास को दो श्रेणियों में बांटने का फॉर्मूला कर्पूरी ठाकुर ने ही तैयार किया था. इसके जरिए वह वंचित समाज को उचित जगह देना चाहते थे. नीतीश कुमार ने ओबीसी और ईबीसी वर्ग तैयार किया और खुद को अति पिछड़ा वर्ग यानी ईबीसी का प्रतिनिधि बनाया. उधर लालू बैकवर्ड क्लास को लेकर चलते रहे.
पीएम नरेंद्र मोदी बड़े फ़ैसलों के लिए जाने जाते रहे हैं. सादगी और ईमानदारी के प्रतीक बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न (मरणोपरांत) से सम्मानित किए जाने का बड़ा फ़ैसला लेकर मोदी सरकार ने बड़ा संदेश दिया है. दशकों से कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न दिए जाने की मांग उठती रही है, उनकी जन्म शताब्दी से एक दिन पहले उन्हें भारत रत्न देने का ऐलान कर दिया गया है. मोदी सरकार के इस फैसले ने बिहार के सभी राजनीतिक दलों, जिनमें बीजेपी और पीएम मोदी के धुर विरोधी भी शामिल हैं, को उनकी प्रशंसा करने को भी मजबूर कर दिया है.
बिहार में महज़ दो फीसदी आबादी वाली हज्जाम (नाई जाति) में जन्म लेने वाले कर्पूरी ठाकुर सही मायनों में जननायक थे. गरीब, पिछड़े, मज़लूमों के मसीहा के रूप में उन्हें आज भी याद किया जाता है. देश की आज़ादी के आंदोलन में भूमिका निभाने के बाद 1952 में पहली बार सोशियलिस्ट पार्टी से विधानसभा का चुनाव जीतने वाले कर्पूरी ठाकुर कभी चुनाव नहीं हारे और दो बार सूबे के मुख्यमंत्री रहे. जीवन भर ग़ैर-कांग्रेसवाद की राजनीति करने वाले कर्पूरी ठाकुर को सूबे के पहले ग़ैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री बनने का भी मौका मिला था. कहा तो ये भी जाता है उन्होंने ही मुख्यमंत्री रहते हुए अपने सचिवालय के चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों को लिफ्ट उपयोग करने देने का आदेश दिया था. इस तरह के फैसलों से समाज के आखिरी पायदान पर खड़े लोगों को ताक़त देने का संदेश दिया.
बिहार में मैट्रिक में अंग्रेजी की अनिवार्यता खत्म करने का श्रेय
बिहार में मैट्रिक में अंग्रेजी की अनिवार्यता खत्म करने का श्रेय भी कर्पूरी ठाकुर को जाता है. उनके विरोधी इस बात के लिए उनकी आलोचना भी करते थे, लेकिन उनकी सोच थी कि एक भाषा के कारण बच्चों को आगे बढ़ने से नहीं रोका जा सकता है. बिहार आज शराब प्रतिबंधित राज्य है, लेकिन वहां पहली बार शराब को प्रतिबंधित करने का श्रेय भी कर्पूरी ठाकुर को ही जाता है. समाज के अति पिछड़ों की आवाज के रूप में उन्हें आज भी याद किया जाता है.
बेहद अदब से लिया जाता है कर्पूरी ठाकुर का नाम
बिहार की राजनीति में आज भी कर्पूरी ठाकुर का नाम बेहद अदब से लिया जाता है. लालू यादव, नीतीश कुमार राम विलास पासवान समेत अनेक नेताओं को कर्पूरी ठाकुर का ही शिष्य माना जाता है. अब ऐसे समय में जब बिहार की राजनीति को लेकर लगातार सस्पेंस जैसी स्थिति बनी हुई है, ये कयास लगाए जाते हैं कि नीतीश कुमार फिर खुद को असहज पा रहे हैं. ऐसे में क्या जननायक कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने का फैसला भी किसी बड़े परिवर्तन का कारण बनता है, इस पर भी अब सभी की निगाहें रहेंगी. साथ ही बीजेपी के पास भी हमेशा के लिए गर्व के साथ ये कहने का मौका होगा कि अति-पिछड़ों के मसीहा जननायक को भारत रत्न घोषित किए जाने का ऐलान उनकी ही सरकार के दौरान हुआ.