नई दिल्ली में G20 समिट की शुरुआत हो चुकी है. प्रधानमंत्री मोदी ने भारत मंडपम में विदेशी मेहमानों का स्वागत किया. PM ने अपने उद्घाटन भाषण में मोरक्को भूकंप में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि दी. उन्होंने कहा दुख की घड़ी में हम मोरक्को के साथ हैं और लोगों की हरसंभव मदद करेंगे.
जी20 सम्मेलन में अफ्रीकन यूनियन को जी20 में शामिल कर लिया गया है. सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने इसका प्रस्ताव रखा, जिसे सभी सदस्य देशों ने स्वीकार कर लिया. शिखर सम्मेलन में अपने संबोधन में पीएम मोदी ने कहा कि 'आप सभी के समर्थन से, मैं अफ्रीकी संघ को जी20 में शामिल होने के लिए आमंत्रित करता हूं.'
इसके बाद विश्व नेताओं की तालियों की गड़गड़ाहट के बीच विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कोमोरोस संघ के राष्ट्रपति और अफ्रीकी संघ के अध्यक्ष अजाली औसमानी को जी20 के सदस्य देशों के साथ आसन पर बिठाया. प्रधानमंत्री मोदी ने भी गले लगकर अफ्रीकी संघ के अध्यक्ष को जी20 में शामिल होने पर बधाई दी.
बतौर अध्यक्ष PM ने जैसे ही इसे पारित किया, अफ्रीकन यूनियन के हेड अजाली असोमानी ने पीएम मोदी को गले लगा लिया. अफ्रीकन यूनियन को G20 में शामिल करने के लिए चीन और यूरोपियन यूनियन ने भी भारत का समर्थन किया.
पीएम मोदी ने कहा कि कोरोना के बाद विश्व में विश्वास का संकट पैदा हो गया है. यूक्रेन युद्ध ने इस संकट को और गहरा कर दिया है. जब हम कोरोना को हरा सकते हैं तो आपसी चर्चा से विश्वास के इस संकट को भी दूर सकते हैं. ये सभी के साथ मिलकर चलने का समय है. प्रधानमंत्री ने कहा- आज हम जिस जगह इकट्ठा हुए हैं, यहां कुछ किमी दूर ढाई हजार साल पुराना स्तंभ है. इस पर प्राकृत भाषा में लिखा है कि मानवता का कल्याण सदैव सुनिश्चित किया जाए. ढाई हजार साल पहले भारत की धरती ने ये संदेश पूरी दुनिया को दिया था. 21वीं सदी का यह समय पूरी दुनिया को नई दिशा देने वाला है.
प्रधानमंत्री ने विदेशी मेहमानों का स्वागत किया
शनिवार सुबह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत मंडपम पहुंचे विदेशी राष्ट्राध्यक्षों को रिसीव किया. उन्होंने ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक को गले लगाया, तो अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन को भारत मंडपम में बने कोणार्क चक्र के बारे में जानकारी दी.
अफ्रीकन यूनियन क्यों है अहम
अफ्रीकन यूनियन के सदस्य देशों की संख्या 55 है और इनमें 1.3 अरब जनसंख्या निवास करती है. 2050 तक इस जनसंख्या के दोगुनी होने का अनुमान है, ऐसे में इतने बड़े समूह को जी20 में शामिल करने की मांग लंबे समय से हो रही थी. वैश्विक भू-राजनीति में अफ्रीकन यूनियन की अहमियत लगातार बढ़ रही है. जिसके चलते दुनिया के बड़े देश लगातार अफ्रीका में निवेश कर अपनी पकड़ बनाने की कोशिश कर रहे हैं. चीन, अफ्रीका का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है तो रूस, अफ्रीका का सबसे बड़ा हथियार निर्यातक है. खाड़ी देश, अफ्रीका में सबसे बड़े निवेशक हैं. वहीं तुर्किए का सबसे बड़ा सैन्य अड्डा सोमालिया में है. इस्राइल और ईरान भी अफ्रीका में अपना पहुंच बढ़ा रहे हैं. यही वजह है कि जी20 में अफ्रीकन यूनियन को शामिल करने की मांग स्वभाविक थी.
प्राकृतिक संसाधनों के मामले में अफ्रीकी देश सबसे संपन्न हैं और जलवायु परिवर्तन के सबसे ज्यादा प्रभावित देशों में भी अफ्रीकी देश शामिल हैं. अफ्रीकी देश कांगो में ही दुनिया के कुल कोबाल्ट का आधा हिस्सा मौजूद है. लीथियम आयन की बैट्रियों में कोबाल्ड बेहद जरूरी तत्व है. ऐसे में कह सकते हैं कि जब दुनिया में इलेक्ट्रिक वाहनों पर निर्भरता लगातार बढ़ रही है तो अफ्रीकी देश बेहद अहम हो जाते हैं. जी20 का गठन वैश्विक अर्थव्यवस्था को स्थिर रखने और उसे बेहतर करने के लिए किया गया था. इसके चलते भी अफ्रीकन यूनियन की अहमियत है. कर्ज की समस्या से निपटने में भी अफ्रीकी यूनियन को जी20 में शामिल करना जरूरी है.