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Happy Teacher's Day : पौराणिक से लेकर तकनीकी युग तक गुरूजी का स्थान सर्वोपरी, आज का दिन बेहद खास

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माता-पिता हों या भगवान सबसे ऊंचा दर्जा शिक्षक का होता है. ज्ञान की ओर अग्रसर करने का सबसे पहला श्रेय शिक्षक को मिलता है. पौराणिक कथाओं की बात करें तो,, एकलव्य द्रोणाचार्य के प्रिय शिष्य में से एक थे. द्रोणाचार्य ने जब अपने शिष्य एकलव्य से गुरु दक्षिणा के रूप में एकलव्य के दाहिने हाथ का अंगूठा मांग लिया तो एकलव्य ने तुरंत अपना अंगूठा काटकर गुरु के चरणों में भेट कर दी. इस गुरु दक्षिणा के बाद एकलव्य की ख्याति दूर-दूर कर फैली और वह इतिहास पुरुष बन गए. आज भी गुरु और शिष्य की चर्चा होती है तो एकलव्य और द्रोणाचार्य का जिक्र जरूर ही होता है. 

अब यह तो हो गई पौराणिक युग की बात. अगर बात करें आज के जमाने की तो, तकनीक की इस दुनिया में गुरु-शिष्य के परंपरा में बहुत हद तक बदलाव हो गए हैं. दक्षिणा चाहे जो मिले, गुरुजी की पोस्ट को लाइक और कमेंट करने की अपेक्षा रहती है. वे अनुरोध करते हैं कि यूट्यूब चैनल को सब्सक्राइब किया जाए. पोस्ट को देखा जाए. वीडियो को लाइक किया जाए और संभव हो तो कमेंट भी किया जाए. इस कवायद का लाभ गुरुजी को बड़े पैमाने पर मिलता है. यूट्यूब और फेसबुक-इंस्टाग्राम पेज पर जितने ज्यादा व्यूज आयेंगे गुरूजी को उतना ही ज्यादा लाभ मिलेगा.  

खैर, बात चाहे पौराणिक युग की हो या तकनीक युग की गुरूजी का स्थान हमेशा सर्वोपरी होता है. वहीं, शिक्षक को उनके प्रयासों के लिए सम्मान देने और उनका आभार व्यक्त करने के लिए हर साल 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है. इस मौके पर छात्र अपने प्रिय शिक्षकों का आभार व्यक्त करते हैं और शुभकामना संदेश देते हैं. बता दें कि, डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन को बच्चों से बहुत प्यार था और उनके ही कहने पर पहली बार शिक्षक दिवस मनाया गया था. उन्हीं के जन्म दिवस को याद कर प्रत्येक वर्ष  5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है. 

5 सितंबर का दिन शिक्षक और उनके शिष्यों का दिन होता है. वहीं, बच्चों के लिए शिक्षक दिवस का दिन किसी त्योहार से कम नहीं होता. शिक्षक दिवस के दिन की तैयारी बच्चे बहुत पहले से शुरू कर देते हैं और कई जगह बड़े-बड़े कार्यक्रमों का भी आयोजन भी किया जाता है. डांस, म्यूजिक, ड्रामा, मिमिक्री, और न जाने कितनी चीजें की जाती है. इसके साथ ही सोशल मीडिया पर शिक्षक दिवस के पोस्ट की भरमार भी देखने के लिए मिलती है. अगर शिष्य अपने गुरूजी से दूर भी हो तो आज की नई तकनीकें हमेशा उन्हें जोरकर रखती है. सोशल मीडिया के जमाने में अब बहुत हद तक गुरु-शिष्य के रिश्ते को निभाना संभव हो गया है.   

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