लिट्टी-चोखा, दही-चूड़ा और मखाना खीर तो ठीक है, ये घर या बाहर कहीं भी अक्सर उपलब्ध हो जाता है. अगर आप 'हाथी कान पूरी या पूड़ी' की खाने की चाहत रखते हैं तो आपको परोजन (शादी-ब्याह या किसी खास मौके पर सामूहिक भोज) का इंतजार करना होगा. वो भी बिहार के सभी इलाकों में इसे नहीं पकाया जाता है. इसका प्रचलन भोजपुरी भाषी जिलों (भोजपुर, रोहतास, कैमूर, बक्सर, छपरा, सिवान, गोपालगंज) में है. मगर भोजपुर जिले में इसका प्रचलन ज्यादा है. परोजन के मौके पर 56 भोग में 'हाथी कान पूड़ी' भी शामिल रहता है. बिहार के डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने इसकी एक तस्वीर सोशल मीडिया पर शेयर की है.
तेजस्वी ने की 'हाथी कान पूड़ी' की तारीफ
बिहार के जिन लोगों का भी ग्रामीण परिवेश से वास्ता रहा है, वो 'हाथी कान पूड़ी' के बारे में जानते हैं. हालांकि 'हाथी कान पूड़ी' का प्रचलन धीरे-धीरे कम होता जा रहा है. डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने 'हाथी कान पूड़ी' खाते हुए एक तस्वीर सोशल मीडिया पर साझा की है.
ट्विटर हैंडल पर उन्होंने लिखा है कि 'बिहार के किस क्षेत्र में 'हाथी कान पूरी' (आम बोलचाल में हाथी कान पूड़ी) परंपरागत रूप से परोसी जाती है? विशाल हाथी कान पूड़ी के साथ बुंदिया, कोहड़ा-घुघनी और आलू-बैंगन की सब्जी, मिश्रित चटनी और दही का स्वादिष्ट भोजन वर्णन से परे है.'
ऐसे पकाया जाता है 'हाथी कान पूड़ी'
वैसे 'हाथी कान पूड़ी' तैयार करने का खास तरीका है. आटे के गोला बिल्कुल भी सख्त नहीं होने चाहिए. फिर इसे हाथ की कारीगरी से बड़ा आकार दिया जाता है. कुछ लोग इसे बड़ा करने के लिए बेलने की भी मदद लेते हैं. फिर उसे खौलते तेल में सावधानी से डालकर तला जाता है.
आरा शहर या भोजपुर जिले के गावों में इसे विशेष असवरों पर जरूर बनाया और परोसा जाता है. भोज के मौके पर इसे लोग बड़े चाव से खाते हैं. हालांकि, जो पहचान लिट्टी-चोखा, दही-चूड़ा और मखाना खीर को मिली वो शोहरत 'हाथी कान पूड़ी' को नहीं मिली.